Katyayani Devi Puja: नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, जानें पूजन विधि और मंत्र

Katyayani devi puja

शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि इन 9 दिनों मां के अलग-अलग अवतारों की पूजा करने से मन की सभी मुरादें पूरी हो जाती है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों, मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के सबसे उग्र अवतार का प्रतीक हैं। देवी के इस रूप को यश और सफलता का स्वरूप माना जाता है। देवी कात्यायनी के आशीर्वाद से भक्तों के पापों का शुद्धिकरण होता है। आइए जानते हैं मां कात्यायनी की पूजा विधि, भोग और मंत्र के बारे में… 

मां कात्यायनी कौन हैं? 

मां कात्यायनी कौन हैं? 
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देवी दुर्गा के उग्र स्वरूपों में से एक मां कात्यायनी हैं। उन्हें ‘महिषासुरमर्दिनी’ भी कहा जाता है क्योंकि देवी ने महिषासुर का वध किया था। उन्हें शेर पर सवार दिखाया गया है, उनके बाएं हाथ में तलवार और कमल है और उनके दाहिने हाथ में अभय और वरद मुद्राएं हैं। मां कात्यायनी को बुराई का नाश करने वाली देवी भी कहा जाता है। वामन पुराण के अनुसार, महिषासुर के दुष्ट कर्मों से क्रोधित देवताओं ने सामूहिक रूप से अपनी शक्ति का उपयोग करके मां कात्यायनी को प्रकट किया। मां दुर्गा के इस अवतार को कात्यायनी या कात्यायन की पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।

मां कात्यायनी भोग

1. नवरात्रि के 6वें दिन सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और नए वस्त्र पहनें। 

2. ऐसी मान्यता है कि कात्यायनी देवी को पीला रंग बहुत पसंद है, इसलिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।

3. पूजा स्थल को साफ करें और मां कात्यायनी की मूर्ति पर नए फूल, हल्दी का तिलक और भोग चढ़ाएं। 

4. कात्यायनी देवी की आरती और मंत्रों का जाप करें। मंत्रों का जाप और पूजा करते समय हथेलियों में फूल रखना शुभ माना जाता है।

5. मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी को शहद बेहद प्रिय है, इसलिए नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा में प्रसाद और भोग के रूप में शहद चढ़ाना चाहिए। 

मां कात्यायनी के मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कात्यायनी की प्रार्थना

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

मां कात्यायनी बीज मंत्र

क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम

ओम देवी कात्यायन्यै नमः॥

एत्तते वदनम साओमयम् लोचन त्रय भूषितम।

पातु नः सर्वभितिभ्य, कात्यायनी नमोस्तुते।।

मां कात्यायनी का विशेष मंत्र

कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी।

नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

देवी कवच

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥

कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

मां कात्यानी आरती

Katyayani Devi Puja
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मां कात्यायनी की आरती

जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।

जय जगमाता, जग की महारानी।

बैजनाथ स्थान तुम्हारा।

वहां वरदाती नाम पुकारा।

कई नाम हैं, कई धाम हैं।

यह स्थान भी तो सुखधाम है।

हर मंदिर में जोत तुम्हारी।

कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।

हर जगह उत्सव होते रहते।

हर मंदिर में भक्त हैं कहते।

कात्यायनी रक्षक काया की।

ग्रंथि काटे मोह माया की।

झूठे मोह से छुड़ाने वाली।

अपना नाम जपाने वाली।

बृहस्पतिवार को पूजा करियो।

ध्यान कात्यायनी का धरियो।

हर संकट को दूर करेगी।

भंडारे भरपूर करेगी।

जो भी मां को भक्त पुकारे।

कात्यायनी सब कष्ट निवारे।

मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥

स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥

मां कात्यायनी का स्त्रोत

कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।

स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्। 

सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। 

परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता। 

विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥

कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते। 

कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना। 

कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी। कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥ 

ऋषि कात्यायन के घर मां कात्यायनी ने लिया था जन्म

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि कात्यायन मां दुर्गा के परम उपासक थे। देव ऋषि कात्यायन ने देवी दुर्गा की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर देवी मां देव ऋषि के सामने प्रकट हुईं, जिसके बाद देवी मां ने ऋषि कात्यायन से वरदान मांगने को कहा। जिसके बाद देव ऋषि ने देवी मां से वर मांगते हुए कहा कि आप मेरे घर पुत्री के रूप में जन्म लीजिए। देव ऋषि की बात सुनकर मां प्रसन्न हुईं और देव ऋषि के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। ऋषि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण ही देवी मां को मां कात्यायनी कहा जाता है।

विवाह में आने वाली बाधाएं होती हैं दूर

देवी कात्यायनी को साहस, वीरता और नकारात्मक शक्तियों पर विजय का प्रतीक माना जाता है। माना जाता है कि देवी कात्यायनी की पूजा करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और विवाह के योग बनते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कन्याओं को घर पर आमंत्रित कर उन्हें उपहार देना काफी अच्छा माना जाता है। इससे देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।