Amla Navami: अक्षय नवमी या आंवला नवमी कब मनाया जाता है? जानें पूजा विधि

Akshaya Navami

Akshay Navmi 2024: हिंदू धर्म में हर साल अक्षय नवमी या आंवला नवमी का पर्व कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री हरि की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है, जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल अक्षय नवमी 10 नवंबर दिन रविवार को मनाई जाएगी। इसलिए जो लोग अक्षय नवमी का व्रत कर पूजा करते हैं, वह 10 नवंबर के दिन यह व्रत रखेंगे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन से ही द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था और स्वयं भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था। इस दिन से ही वृंदावन की परिक्रमा का प्रारंभ भी होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के पेड़ में भगवान श्री विष्णु का वास होता है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठना और बैठकर भोजन करना बेहद ही शुभ माना जाता है।

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क्या है अक्षय नवमी का महत्व?
अक्षय नवमी (Akshay Navmi) को लेकर यह मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन किए गए पुण्य कार्य का फल जिसे अक्षय फल के नाम से जानते हैं वह सभी को प्राप्त होता है। जिसके साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा अर्चना करने से आपके जीवन में सुख संपत्ति और रोगों से मुक्ति मिलती है। इस दिन अगर आप कोई दान कर रहे हैं या तप कर रहे हैं तो ऐसा करने से आपको सभी पापों से मुक्ति मिलती है। आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ में भगवान श्री विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए इस दिन आंवले का दान और उसका सेवन जरूर करना चाहिए। इस दिन अगर आप अपने परिवार के साथ आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करते हैं तो इससे आपके घर में खुशहाली आती है।

क्या है अक्षय नवमी का महत्व?अक्षय नवमी शुभ मुहूर्त कब?
आंवला नवमी पूजा विधि क्या है?पौराणिक कथा

अक्षय नवमी शुभ मुहूर्त कब?

अक्षय नवमी का आरंभ हिंदू पंचांग के अनुसार 9 नवंबर की रात को 10:45 पर होगा, जिसका समापन 10 नवंबर की रात 9:01 पर होगा। इसलिए उदय तिथि को मानते हुए अक्षय नवमी के पर्व को 10 नवंबर दिन रविवार को मनाया जाएगा।

आंवला नवमी पूजा विधि क्या है?


आंवला नवमी में या अक्षय नवमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके ध्यान करके आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के पेड़ पर दूध, जल, अक्षत, सिंदूर और चंदन अर्पित कर आंवले के पेड़ पर मौली बांधकर भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके बाद धूप या दिए से आरती कर 11 बार वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन कद्दू और सोने का दान देना बेहद ही शुभ माना जाता है।

पौराणिक कथा
दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन थे। जिनके इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार जंगल में मुकुंद देव शिकार खेलने के लिए गए, इस दौरान राजकुमार की नजर एक व्यापारी कनकाधिप की पुत्री किशोरी पर पड़ी जिसे देखते ही मुकुंद देव मोहित हो गए और उसे किशोरी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

तब उस किशोरी ने राजकुमार को बताया कि उसके भाग्य में पति का सुख नहीं लिखा है, किशोरी को ज्योतिषी ने कहा है कि अगर वह विवाह करती है तो उसके विवाह मंडप में बिजली गिरेगी जिससे उसके वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी। लेकिन मुकुंद देव उसकी बात न मानते हुए विवाह के प्रस्ताव पर अडिग रहे। इसके बाद मुकुंद देव ने अपने आराध्य सूर्य देव और किशोरी ने भगवान शिव की आराधना की। इसके बाद भगवान शिव ने किशोरी से सूर्य की आराधना करने को कहा।

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भोलेनाथ के कहने पर उस किशोरी ने गंगा के तट पर सूर्य की आराधना करना शुरू की, तभी वहां पर विलोपी नामक एक असुर ने किशोरी पर आक्रमण किया, जिसे देख सूर्य देव ने उसे वहीं भस्म कर दिया। किशोरी की आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने किशोरी से कहा कि कार्तिक शुक्ल की नवमी को आंवला के पेड़ के नीचे विवाह का मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो।

भगवान सूर्य के कहे अनुसार दोनों ने मिलकर वहां मंडप बनाया। मंडप बनते ही आसमान पर एकदम से बादल घिर आए। इसके बाद बिजली भी चमकने लगी जैसे ही आकाश से बिजली उस मंडप की ओर गिरने लगी आंवले के पेड़ ने उसे रोक लिया। इसके बाद से ही आंवले के पेड़ की पूजा की जाने लगी।