Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह का मुहूर्त,कथा एवं पूजन विधि

Tulsi Vivah 2024

Tulsi Vivah 2024 Date: तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह वही दिन है जब देव उठनी एकादशी भी मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और तुलसी के पौधे का विवाह किया जाता है, जोकि एक प्रतीकात्मक विवाह है और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ माना गया है। यह विवाह मुख्य रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से किया जाता है ताकि जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य, और शांति का वास हो।

इस साल 12 नवंबर 2024 को तुलसी विवाह कराया जाएगा। इस दिन देवउठनी एकादशी भी है। इस दौरान कुछ जगहों पर 13 नवंबर 2024 को भी तुलसी विवाह किया जाएगा। माना जाता है कि तुलसी विवाह करवाने से साधक को कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है। साथ ही तुलसी जी और शालिग्राम की कृपा से विवाह में आ रही बाधाएं भी दूर होती हैं। 

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तुलसी विवाह एकादशी तिथि 2024 

पंचांग के अनुसार कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 नवंबर को शाम 06:46 मिनट से होगी। इसका समापन 12 नवंबर को दोपहर बाद 04:04 मिनट पर होगा। 

तुलसी विवाह एकादशी मुहूर्त 2024

ज्योतिष गणना के अनुसार एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह का शुभ समय शाम 5 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।

तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah 2024 Story)

वृंदा और जलंधर की कथा

Lord Vishnu and Jalandhar fighting
Credit: HarGharPuja

तुलसी विवाह की कहानी वृंदा और जलंधर के विवाह से आरंभ होती है। तुलसी जिनका कि वास्तविक नाम वृंदा था, वह, असुर राज काली के पुत्र जलंधर की पत्नी थीं। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था और उसने कई बार देवताओं को पराजित किया था। जलंधर की शक्तियों का स्रोत उसकी पत्नी वृंदा का तप और उसकी पतिव्रता एवं सतीत्व था । वृंदा ने अपने पवित्र तप और दृढ़ संकल्प के कारण अपने पति को अपार शक्ति प्रदान की थी। कहा जाता है कि वृंदा का तप इतना प्रभावी था कि जलंधर युद्ध में अमर हो जाता था, क्योंकि वृंदा का तप उसे हर प्रकार की रक्षा प्रदान करता था।

जलंधर की बढ़ती शक्ति से देवता बहुत भयभीत थे और उसे हराने का कोई उपाय नहीं ढूंढ पा रहे थे। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।

भगवान विष्णु का वृंदा के पास आना

भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई और वे जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास आए। भगवान विष्णु ने छल से जलंधर का रूप लेकर वृंदा के तप को भंग कर दिया, और जैसे ही वृंदा का तप टूटा, जलंधर कमजोर हो गया। इस कारण से जलंधर को युद्ध में पराजित करके उसका वध कर दिया गया।

वृंदा का शाप और भगवान विष्णु का तुलसी रूप में बदलना

Vishnu Ji and Tulsi Ji Vivah
Credit: ZeeNews

जब वृंदा को छल का पता चला तो वह बहुत दुखी और क्रोधित हुई। अपने पति की मृत्यु का कारण जानने के बाद उसने भगवान विष्णु को शाप दिया कि उन्हें एक दिन पत्थर में परिवर्तित होना पड़ेगा। यह शाप बाद में भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप में सत्य सिद्ध हुआ।

वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा कि उनकी वजह से उसके पति का जीवन समाप्त हुआ और उसका तप भंग हुआ। विष्णु जी इस घटना से बहुत दुःखी हुए और वृंदा के त्याग तथा उसकी निष्ठा को सम्मान देने के लिए उन्होंने वृंदा को अमर तुलसी के रूप में आशीर्वाद दिया। विष्णु जी ने वचन दिया कि तुलसी का विवाह हर वर्ष उनके साथ होगा, और वे शालिग्राम रूप में हर समय तुलसी के संग रहेंगे। तभी से तुलसी विवाह का आयोजन एक पवित्र अनुष्ठान के रूप में मनाया जाने लगा।

तुलसी विवाह का प्रतीकात्मक महत्व

तुलसी विवाह केवल धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह उस प्रेम, त्याग, और निष्ठा का प्रतीक है जो वृंदा ने अपने पति के लिए दिखाया था। साथ ही यह विवाह भगवान विष्णु के प्रति उनकी भक्ति का भी प्रतीक है, जिसमें भगवान विष्णु ने उनकी पवित्रता का सम्मान करते हुए हमेशा के लिए उन्हें पवित्र तुलसी के रूप में स्वीकार किया।

तुलसी विवाह विधि (Tulsi Vivah 2024 Rituals)

तुलसी विवाह की पूजा विधि में तुलसी जी को सजाना, उन्हें भगवान विष्णु के साथ विवाह में बांधना और सभी धार्मिक क्रियाओं का पालन करना शामिल होता है। नीचे तुलसी विवाह करने की संपूर्ण विधि दी गई है:

तुलसी विवाह कराने के लिए सर्वप्रथम एक लकड़ी की चौकी लें। इसके बाद उसपर लाल रंग का साफ आसन बिछाएं। इसके बाद तुलसी के गमले को गेरू से रंग दें। फिर उसके चौकी के ऊपर स्थापित कर दें। वहीं आप एक और चौकी लें। इसपर साफ या नया आसन बिछा लें।

अब इसपर भगवान शालिग्राम को स्थापित कर दें। दोनों चौकियों को एक दूसरे के पास में रखें। दोनों के ऊपर गन्ने से मंडप सजाएं। इसके बाद आप एक साफ कलश में जल भरें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते डाल दें। इसे पूजा स्थल पर स्थापित कर दें।

अब शालिग्राम जी और माता तुलसी के सामने दीपक जलाएं। फिर दोनों को रोली या कुमकुम से तिलक करें। इस दौरान तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं। धीरे-धीरे चूड़ी, बिंदी आदि चीजों से श्रृंगार करते जाएं।

इसके बाद सावधानी से चौकी समेत शालिग्राम जी को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं। फिर दोनों की आरती करें। अंत में सुख सौभाग्य की कामना करते हुए फूल का छिडकाव करें, और सभी में प्रसाद का वितरण कर दें। 

तुलसी विवाह का महत्व और लाभ

Tulsi Vivah 2024

तुलसी विवाह का आयोजन करने से घर में सुख, समृद्धि और वैवाहिक जीवन में स्थायित्व आता है। यह विवाह आयोजन करने वाले भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और उनके जीवन में सकारात्मकता का वास होता है।

इस प्रकार तुलसी विवाह के माध्यम से भगवान विष्णु और तुलसी माता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर सकते हैं और दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं।