Ashtahnika Parv: जैन धर्म का अष्टान्हिका पर्व क्या है? जानें इसका महत्व

अष्टान्हिका पर्व जैन धर्म की सबसे पुराने पर्व में से एक है। यह पर्व वर्ष भर में तीन बार यानी कार्तिक मास, फाल्गुन महीने और आषाढ़ महीने में मनाया जाता है, और प्रत्येक पर्व का आयोजन आठ दिनों तक चलता है। यह पर्व भगवान महावीर स्वामी को समर्पित है। इस पर्व के दौरान विशेष पूजा की जाती है, और मंदिरों में अभिषेक के साथ-साथ शुद्धि के लिए धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। अनुयायी अपने शरीर और मन की शुद्धि के लिए उपवास करते हैं।

जैन धर्म में महत्व

8 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाने वाला अष्टान्हिका पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है। इस पर्व के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी द्वारा की गई थी, जिसने अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए प्रयास किए थे। जिसका जैन धर्म में और भी ज्यादा उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं मैना सुंदरी ने अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग को निरोग करने के लिए 8 दिनों तक सिद्ध चक्र विधान मंडल और तीर्थंकरों के अभिषेक के जल के छीटें देने तक साधना की थी।

ध्यान और आत्मशुद्धि व्रत

मैना सुंदरी के व्रत के बाद फल मिलने के बाद से जैन धर्म का पालन करने वाले धर्मावलंबी ध्यान और अपनी आत्मा शुद्धि के लिए 8 दिनों तक कठिन तप और व्रत करते हैं। जैन धर्म में इस पर्व को आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। इस पर्व का उद्देश्य व्यक्ति को आत्म-अनुशासन सिखाना और उसे ईश्वर की निकटता का अनुभव कराना है। यह पर्व व्यक्ति को अपने अंदर के नकारात्मक भावों को दूर करने और अपने आत्मा के शुद्ध स्वरूप को पहचानने का अवसर प्रदान करता है।

अष्टान्हिका पर्व का पालन करने से व्यक्ति के पाप कर्म नष्ट होते हैं। जैन अनुयायी मानते हैं कि इस पर्व के दौरान की गई तपस्या और साधना से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है। जैन धर्म में इस व्रत की बहुत ज्यादा मान्यता है।

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बड़े संकट भी टलते हैं

इस व्रत को करने के संबंध में जैन धर्म को मानने वालों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से स्वयं देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में लगातार 8 दिनों तक धर्म का कार्य करते हैं, इसलिए जो भी भक्त नंदीश्वर दीप तक नहीं पहुंच सकते वह अपने आसपास के ही जैन मंदिरों में पूजा करके इसका फल लेते हैं। इस व्रत का पालन करके अपनी हर बुरी आदत और बुरे विचारों से खुद को मुक्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस व्रत को करने से जीवन के बड़े से बड़े संकट जल्द ही खत्म हो जाते हैं।

आषाढ़ अष्टाह्निका इतिहास

अष्टाह्निका की शुरुआत प्राचीन जैन परंपरा और शास्त्रों से हुई है। ऐसा माना भी जाता है कि यह जैन धर्म के आध्यात्मिक गुरुओं जो अध्यात्म का पालन करते है, तीर्थंकरों जो तीर्थों के बारे में जानकारी रखते हैं द्वारा बनाई गई एक महत्वपूर्ण प्रथा है, जिसका उद्देश्य अनुयायियों को जैन सिद्धांतों के लिए अपनी आस्था और अपनी समझ को गहरा करने में मदद करना है। सदियों से, अष्टाह्निका को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, जो जैन आध्यात्मिकता और अनुशासन को दर्शाता है