वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
गणेश जी को हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत उनकी आराधना के बिना पूरी नहीं होती। उन्हें विनायक, विघ्नहर्ता, गजानन और गणपति जैसे कई नामों से जाना जाता है। भगवान श्रीगणेश आराध्य हैं, प्रात:वंदनीय हैं।
विघ्नहर्ता गजानन सभी देवताओं में सबसे पहले पूज्य माने जाते हैं। उनके बिना कोई भी शुभकार्य करना पूर्णत:वर्जित है। हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी -देवताओं का शास्त्रों में उल्लेख आता है। लेकिन इन सभी देवताओं में सबसे पहले गणनायक भगवान गणेश की पूजा किए बिना सारे शुभ काम अधूरे हैं।
इसलिए, इस आर्टिकल में हम आपको भगवान गणेश के प्रथम पूज्य होने की कथा और महिमा के बारे में जानकारी देंगे। इस आर्टिकल को पढ़कर आप भी भगवान गणेश की भावपूर्ण भक्ति की महिमा का अनुभव कर सकेंगे।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश हैं विघ्नहर्ता
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कलियुग में भक्ति का मार्ग ही सांसारिक प्राणियों को अनंत सुख की ओर ले जाता है। भगवान गणेश की भक्ति उनके प्रति अपार श्रद्धा का भाव प्राणियों के लिए औषधि के समान है। गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं वे सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
भगवान गणेश जिनका सुंदररूप देखकर भक्त भक्ति के भाव रंग जाता है। भगवान शिव जी के पुत्र श्रीगजानन जितने सरल हैं उतनी ही सरलता से उन्हें प्रसन्न भी किया जा सकता है। वैदिक धर्म में भक्ति और अध्यात्म की दो धाराएं समाहित हैं।
जीवन के उतार-चढ़ाव, कष्ट, पारिवारिक समस्याएं, आर्थिक परेशानियों को देखकर कई बार इंसान हार मान जाता है। लेकिन इन परेशानियों का समाधान भगवान गणेश की सच्चे मन से की गई भक्ति की ताकत में है।
जीवन में आए हर दुखों का निवारण भगवान श्री गजानन के पास है। वे गणनायक है विनायक है।
सर्वप्रथम क्यों की जाती है भगवान श्री गणेश जी की पूजा
हिंदू धर्म की पौराणिक कथा
धर्म पुराणों में भगवान गणेश के जीवन की कई कथाओं का वर्णन विस्तार से प्राप्त होता है। उनकी भक्ति और आराधना के विविधरूप पौराणिक कथाओं में आपको मिल सकते हैं।
एक बार की बात है कि, सभी देवताओं में इस बात को लेकर विवाद खड़ा हुआ कि पृथ्वी पर सबसे पहले पूजा किसकी होनी चाहिए। सभी देवताओं के बढ़ते विवाद को देखकर नारद मुनि प्रकट हुए और उन्होंने देवताओं को भगवान भोलेनाथ की शरण में जाने को कहा।
उन्होंने कहा कि भगवान शिव जी ही इस विवाद को दूर कर सकते हैं। सभी देवतागण कैलाश पर्वत पर भगवान शिव जी के पास अपनी समस्या को लेकर उपस्थित हुए। जब भगवान शिव ने देवताओं के इस झगड़े को सुलझाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने इसके लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की।
प्रतियोगिता के अनुसार सभी देवताओं को अपने-अपने वाहन पर बैठकर पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए कहा गया। जो भी देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर सबसे पहले वापस आएगा उसे ही धरती पर प्रथम पूजनीय देवता का स्थान दिया जाएगा।
सभी देवता शीघ्रता से ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने निकल पड़े उन्हें विश्वास था कि वो ही सबसे पहले ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर भगवान शिव के पास उपस्थित होंगे।
लेकिन भगवान गणेश ने विचार किया कि मेरे लिए तो इस जगत में ब्रह्माण्ड कोई है तो वो मेरे माता-पिता भगवान शिव जी और माता पार्वती जी ही हैं। उन्होंने उनकी सात परिक्रमा लगाईं और हाथ जोड़कर मां पार्वती और भोलेनाथ के सामने नतमस्तक हो गए।
भगवान शिवजी ने जैसे ही गणेश जी को सामने देखा तो उन्होंने कहा कि तुमने ब्रह्माण्ड का चक्कर क्यों नहीं लगाया तो गजानन बोले कि, माता-पिता को ब्रह्माण्ड व पूरे लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
उनसे बढ़कर तीनों लोकों में कोई और नहीं है, और उन्हें देवताओं के समान पूजा जाता है आप मेरे माता-पिता है। आप ही मेरे लिए ब्रह्माण्ड हैं, आपकी परिक्रमा ही ब्रह्माण्ड की परिक्रमा है।
जब सभी देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर वापस लौटे तब वहां गणेश जी पहले से मौजूद थे और भगवान शिव ने गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया। जिसे सुनकर सभी देवता अचंभित हो गए कि चूहे की सवारी से पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर इतनी जल्दी कैसे लगाया जा सकता है।
तब भगवान शिव ने बताया कि, माता-पिता को ब्रह्माण्ड व पूरे लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उन्हें देवताओं के समान पूजा जाता है। गणेश जी ने ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने की बजाय माता-पिता की परिक्रमा की है।
भगवान शिव की बात सुनकर सभी देवता उनके निर्णय से सहमत हो गए और तभी से गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता माना गया है।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
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