गणेश चतुर्थी: पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ गणपति का उत्सव

हमें गणेश जी की मिट्टी से बानी हुई मूर्ति ही स्थापित करनी चाहिए

गणेश, जिन्हें गणपति या विनायक के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी का गज मुख बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, जबकि उनका मानव शरीर धैर्य और अनुकूलनशीलता का प्रतीक है।

गणेश जी के जन्म और उनके हाथी के सामान शीष की कहानी बहुत ही रोचक और प्रतीकात्मक है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने स्नान के समय उनके शरीर पर लगे हुए चन्दन को छुड़ाकर एक मूर्ति बनाई और फिर मूरत में प्राणो का संचार किया और इस प्रकार जन्म हुआ गणेश भगवान का।  जन्म के पश्च्यात माता पार्वती ने उन्हें द्वार पर पहरा देने को कहा। जब भगवान शिव पार्वती जी के मिलने के लिए घर लौटे तो उन्हें गणेश ने प्रवेश देने से रोका दिया एवं इस बात कर आक्रोशित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया जिससे कि उनकी वहीँ मृत्यु हो गई।

बाद में, जब माता पार्वती ने शोक जताया और शिव को सच्चाई का पता चला, तो शिव ने गणेश को क्षमा करते हुए उनके मानव मुख के स्थान पर एक हाथी का मुख लगा दिया जिससे उन्हें पुनः जीवन की प्राप्ति हुई। 

गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है?

गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, भगवान गणेश के जन्म का उत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह त्योहार आमतौर पर हिंदू पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है जो कि अधिकतर अगस्त या सितंबर के महीने में आता है, । यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें लोग गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना कर भक्ति भाव से पूजा करते हैं।

गणेश चतुर्थी को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ घरों और सार्वजनिक स्थानों पर गणेश की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। इन मूर्तियों की पूजा अर्चना की जाती है, और दस दिनों तक विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। त्योहार के अंतिम दिन गणेश विसर्जन किया जाता है, जिसमें मूर्तियों को जलाशयों में विसर्जित किया जाता है ।

पर्यावरण पर प्लास्टर की गणेश मूर्तियों का प्रभाव

पर्यावरण पर प्लास्टर की गणेश मूर्तियों का प्रभाव
Credit: Hindustan Times

गणेश चतुर्थी एक अत्यंत खुशी और भक्ति का पर्व है, लेकिन आजकल प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और रासायनिक रंगों से बनी मूर्तियों के कारण पर्यावरण पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कई रिपोर्टों और अध्ययनों ने यह बताया है कि इन मूर्तियों के विसर्जन से जल स्रोतों में प्रदूषण फैलता है और जलीय जीवन को नुकसान होता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, आजकल बनने वाली गणेश जी की मूर्तियां बायोडिग्रेडेबल नहीं होती हैं। जब इन्हें जल में विसर्जित किया जाता है, तो यह धीरे-धीरे जल को दूषित करती हैं। इस अध्ययन में बताया गया कि विसर्जन के दौरान रासायनिक रंगों और प्लास्टर से जल में घुलनशील जहरीले तत्व बढ़ जाते हैं, जो जलीय जीवन के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो रहे हैं। 

एक और अध्ययन ने यह पाया कि आज कल की बनी मूर्तियों में इस्तेमाल किए जाने वाले भारी धातु, जैसे सीसा और पारा, जल जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं। इन रासायनिक तत्वों के कारण मछलियों और अन्य जलीय जीवों की मृत्यु दर में वृद्धि होती है । इसके साथ ही, प्लास्टर की मूर्तियों के कारण जल स्रोतों में कचरे की मात्रा भी बढ़ती है।

इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों के लाभ

इको-फ्रेंडली गणेश मूर्ति
Credit: “Carrier Meals” YouTube Channel

प्लास्टर की गणेश मूर्तियों से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के मद्देनज़र हमें इको-फ्रेंडली मूर्तियां खरीदनी एवं विसर्जित करनी चाहिए । इको-फ्रेंडली मूर्तियां प्राकृतिक, जैविक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री जैसे मिट्टी, कागज़ या अन्य प्राकृतिक पदार्थों से बनाई जाती हैं। ये मूर्तियां आसानी से जल में घुल जाती हैं और प्रदूषण का कारण नहीं बनतीं। इन मूर्तियों को सजाने के लिए भी प्राकृतिक रंगों और सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे जल प्रदूषण का खतरा कम हो जाता है।

एक अध्ययन के अनुसार, मिट्टी और बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों से बनी इको-फ्रेंडली मूर्तियां पारंपरिक मूर्तियों की तुलना में बहुत कम पर्यावरणीय प्रभाव डालती हैं। अध्ययन में बताया गया कि ये मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं और जल को प्रदूषित नहीं करतीं। साथ ही, ये मूर्तियां जलीय जीवन को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती हैं।

निष्कर्ष 

गणेश चतुर्थी न केवल भगवान गणेश के जन्म का उत्सव है, बल्कि यह जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने और समृद्धि की ओर अग्रसर होने का प्रतीक भी है। इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों की ओर बढ़ता रुझान एक सकारात्मक कदम है, जो न केवल हमारी धार्मिक आस्था का सम्मान करता है, बल्कि पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे उत्सव केवल आनंद और भक्ति तक सीमित न रहें, बल्कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता का संदेश भी दें। इसी के साथ, गणेश चतुर्थी का उत्सव न केवल हमारे जीवन को समृद्ध बनाएगा, बल्कि हमारी धरती को भी सुरक्षित रखने में सहायक होगा।