ऋषि पंचमी की पूजा विधि: मिलेगी अनजाने में किए पापों से मुक्ति

गणेश विसर्जन, गणेश चतुर्थी उत्सव के समापन के दिन होता है। महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में विसर्जन उत्सव को बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

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वैदिक हिंदू सनातन धर्म में पूजा-पद्धति भक्ति के मार्ग का एक सोपान है। इसमें पूजा करने वाला भगवान की आराधना से अपने जीवन को सही दिशा देता हैं। भगवान के गुणों से प्रीति भाव रखना ही पूजा है।

“पूजा” का तात्पर्य  वैदिक सनातन हिन्दू धर्म में प्रचलित षोडशोपचार पूजा विधि के अनुसार, वैदिक व शास्त्रीय संस्कृत मंत्रोच्चार के साथ अपने घर पर अथवा मन्दिर, आश्रम आदि पूजा स्थलों पर प्रतिष्ठित देवी-देवताओं की तस्वीरों और मूर्तियों का पूजन-अर्चन, आरती और प्रसाद आदि से है। 

इस आर्टिकल में हम आपको अनजाने में किए गए पापकर्म से मुक्ति दिलाने वाली ऋषि पंचमी की शास्त्रों में बताई गई पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताएंगे। आप भी इस व्रत को करके अनजाने पाप कर्मों से मुक्ति पा सकते हैं।

ऋषि पंचमी का महत्व

सनातन हिंदू परंपरा के अनुसार, जो महिलाएं मासिक धर्म या पीरियड का अनुभव कर रही हैं, उन्हें धार्मिक गतिविधियों को करने या घरेलू कार्यों (रसोई के काम सहित) में शामिल होने से मना किया जाता है। 

जब तक वे उस अवस्था में हैं। यहां तक कि उन्हें पाठ-पूजा से जुड़ी चीजों को छूने की भी मनाही होती है। यदि किसी मजबूरी से या गलती से या अन्य कारणों से वे ऐसा कर लेती हैं, तो वे रजस्वला दोष की भागी होती हैं। इस दोष से छुटकारा पाने के लिए महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखती हैं।

कौन हैं सप्त ऋषि?

विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार हैं

वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।

विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।

अर्थ: सातवें मन्वन्तर के सप्तऋषि ये हैं, 

  1. वशिष्ठ
  2. कश्यप
  3. अत्रि
  4. जमदग्नि
  5. गौतम
  6. विश्वामित्र
  7. भारद्वाज।

वहीं, महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि – कश्यप, वशिष्ठ, मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है।

सप्त ऋषियों का वर्णन:

वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।

इसके अलावा मान्यता है कि, अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

1. वशिष्ठ

राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ हैं। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों (श्री राम एवं श्री लक्ष्मण) को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में असुरों का वध करने के लिए भेज दिया था। 

कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।

2. विश्वामित्र

ऋषि होने से पहले विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है।

विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज है, उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से नाराज होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में हजारों साल से आज तक अनवरत वास कर रही है।

3. कण्व 

माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्व ऋषि ने ही प्रारंभ किया था। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

4. भारद्वाज

वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थी। भारद्वाज ऋषि राम के अवतार से पहले हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर के बीच का समय था। 

माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम ‘रात्रि’ था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। 

अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। ‘भारद्वाज-स्मृति’ एवं ‘भारद्वाज-संहिता’ के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने ‘यन्त्र-सर्वस्व’ नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। 

इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने ‘विमान-शास्त्र’ के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में हाई और लो लेवल पर उड़ने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।

5. अत्रि

ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, दुर्वासा , चन्द्र और दत्तात्रेय के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे। 

इस पर अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। 

अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के कारण ही विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।

6. वामदेव 

वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं।

7. शौनक

शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे।

ऋषि पंचमी की पूजा कैसे करें?

  1. सुबह उठकर अगर संभव हो तो नदी पर जाकर स्नान करें अन्यथा घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलकर  स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. घर में ही पूजा स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं। फिर उस पर मिट्टी की सप्त ऋषियों की सात मूर्तियां बनाकर स्थापना करें।
  3. फूल, धूप, दीप, फल, मिठाई, जल, आदि से सप्त ऋषियों का पूजन करें|
  4. तत्पश्चात गायत्री मन्त्र का पाठ करें|
  5. ऋषि पंचमी व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें।
  6. निर्जल या फलाहार व्रत करें|
  7. गौ दान करना भी शुभ माना जाता है, यदि आप गौ दान न कर पाएं तो गौ सेवा अवश्य करें|
  8. सात ऋषियों को भोजन कराएं|
  9. भोजन कराने के पश्चात बनाई गई मूर्तियों का एक गमले में रख विसर्जन करें| जिससे उन मूर्तियों की शुभता आपके घर में भी पौधे के रूप में बनी रहेगी।