Kali Puja: जानिए, दीपावली के दिन क्यों की जाती है काली पूजा

दीपावली (Dipawali) का त्यौहार कार्तिक अमावस्या की रात को भारत के अधिकतर राज्यों में मनाया जाता है, जिसमें देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जबकि पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा में इस त्यौहार पर मां काली की पूजा होती है।, जिसे काली पूजा (Kali Puja) के नाम से जाना जाता है। यह पूजा आधी रात में की जाती है। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी पूजा (Lakshmi Puja) दशहरे की ठीक 6 दिनों के बाद की जाती है, जबकि दीपावली के दिन काली पूजा का महत्व है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन काली पूजा क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है आइए जानते हैं…

दीपावली के दिन काली पूजा क्यों?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब राक्षसों का वध करने के बाद महाकाली का क्रोध कम नहीं हो रहा था तब स्वयं भगवान शिव ने मां काली का क्रोध शांत करने के लिए अपने आप को उनके चरणों के नीचे लाने का निर्णय लिया और उनके क्रोध को शांत करने के लिए उनके चरणों के नीचे लेट गए। वहीं, भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही मां महाकाली का क्रोध भी समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी पूजा की शुरुआत हुई, जबकि इसी रात उनके रौद्र रूप काली की पूजा का भी विधान कुछ राज्यों में है।

काली पूजन का महत्व

िंदू मान्यता अनुसार जब धरती पर दुष्टों और पापियों का कहर बरस रहा था तो उनके कहर को समाप्त करने के लिए और दुष्टों और पापियों का संघार करने के लिए मां दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था और उनका संघार किया था। मान्यता है कि मां काली की पूजा मात्र से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है और शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा यह भी जाता है की मां काली का पूजन करने से जन्म कुंडली में बैठे राहु और केतु भी शांत हो जाते हैं। वहीं, अधिकतर जगहों पर तंत्र साधना के लिए मां काली की उपासना भी की जाती है।

काली पूजा करने की विधि

मां काली की पूजा दो तरीकों से की जाती है एक सामान्य और दूसरी तंत्र से संबंधित। वहीं, सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। मां काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 मिट्टी की दीपक 108, बेलपत्र एवं माला, 108 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। इसके साथ ही फल, मिठाई, खीर, तली हुई सब्जी, खिचड़ी और अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है।

मां काली की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली ।

तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥

तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी ।

दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी ॥

सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली ।

दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥

माँ बेटे का है इस जग में, बडा ही निर्मल नाता ।

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पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता ॥

सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली ।

दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥

नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना ।

हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना ॥

सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली ।

सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली ।

तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ॥