हरतालिका तीज: वैवाहिक और आध्यात्मिक प्रतिबद्धता का उत्सव

हरतालिका तीज के त्यौहार पर महिलाए देवी पार्वती की पूजा करते हुए

हिंदू धर्म में पति और पत्नी के बीच के संबंध को एक पवित्र बंधन के रूप में देखा जाता है, जो परस्पर सम्मान, प्रेम, और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भारतीय समाज में पति को अक्सर शक्ति या ताक़त के स्तंभ के रूप में देखा जाता है जिसका दायित्व अपनी पत्नी को समर्थन और सुरक्षा प्रदान करना है।
हरतालिका तीज जैसे त्योहारों को मनाना इस पवित्र बंधन के महत्व पर जोर देता है और साथ ही साथ इस बात को भी दर्शाता है कि एक सुखी वैवाहिक संबंध व्यक्तिगत खुशी और सामाजिक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।

हरतालिका तीज का अर्थ क्या है?

हरतालिका तीज एक हिंदू त्योहार है जो विशेष रूप से विवाहित महिलाओं मानती हैं । ये त्यौहार देवी पार्वती के भगवान शिव के साथ मिलन को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। यह त्यौहार अविवाहित महिलाएं भी मना सकती हैं यदि वे भगवान शिव जैसे भोले और प्रेम करने वाले वर की कामना करती हैं। ‘हरतालिका’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘हरत’ जिसका अर्थ है ‘अपहरण’ और ‘आलिका’ जिसका अर्थ है ‘सहेली का नाम ‘

हरतालिका तीज भाद्रपद के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर में पड़ती है। इस अवसर पर महिलाएं व्रत रखती हैं और अनुष्ठान करती हैं ताकि वे वैवाहिक सुख और अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना कर सकें।

हरतालिका तीज के पीछे की कहानी

देवी पार्वती भगवान शिव को प्रस्सन करने के लिए उनकी पूजा करती हुई
© HarGharPuja

हरतालिका तीज की कथा देवी पार्वती और भगवान शिव से निहित है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, देवी पार्वती, जो हिमालय राज की पुत्री थीं, अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव की पत्नी थीं और जिन्होंने अपने पिता के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था। अपने इस नए जन्म में, पार्वती बचपन से ही भगवान शिव की बहुत पूजा करतीं थीं, और जब वे बड़ी हुईं, तो उन्होंने तपस्वी जीवन जीने वाले भगवान शिव से ही विवाह करने का संकल्प लिया।

देवी पार्वती के पिता अपनी पुत्री के लिए भगवान विष्णु को उपयुक्त पति के रूप में पसंद करते थे किन्तु इसके बावजूद पार्वती शिव के प्रति अपनी भक्ति में अडिग रहीं। अपने समर्पण को दिखाने और शिव का प्रेम जीतने के लिए, उन्होंने हिमालय में कठोर तप किया, लेकिन शिव प्रसन्न नहीं हुए। पार्वती के उदास चेहरे को देखकर, उनके पिता चाहते थे कि वे भगवान विष्णु से विवाह करें, जबकि वे शिव को अपना पति बनाने के लिए दृढ़ संकल्प थीं।

जब देवी पार्वती ने अपनी सहेलियों से अपने दुखी होने का कारण साझा किया तो उनकी एक सहेली ने उनका अपहरण कर लिया और उन्हें एक घने जंगल में ले गई, ताकि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न करवा सकें। जंगल में पार्वती ने रेत से एक शिवलिंग बनाया और पुनः घोर तप करना शुरू कर दिया । इस बार उनकी गहन भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया।

‘हरतालिका’ नाम इस अपहरण की घटना और शिव-पार्वती के दिव्य मिलन को ही दर्शाता है। इस त्यौहार में पार्वती के धैर्य, भक्ति और प्रेम का उत्सव मनाया जाता है, जो अंततः भगवान शिव के साथ उनके मिलन का कारण बना। इस त्यौहार को मनाने वाली महिलाएं पार्वती की भक्ति का अनुकरण करना चाहती हैं और शिव जैसे पति की कामना करती हैं।

हरतालिका तीज के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठान

हरतालिका तीज विभिन्न अनुष्ठानों और परंपराओं से चिह्नित होती है, जिन्हें विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। हरतालिका तीज के मुख्य अनुष्ठान इस प्रकार हैं:

निर्जला व्रत (बिना पानी का उपवास): हरतालिका तीज का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू है निर्जला व्रत, जहां महिलाएं पूरे दिन और रात बिना भोजन या पानी के उपवास रखती हैं। इस निर्जला व्रत को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और यह माना जाता है कि यह उनके पतियों के लिए दीर्घायु और समृद्धि लाता है। यह उपवास रखने वाली महिलाएं अपने पति की तरक्की एवं वैवाहिक सुख की प्रार्थना करती हैं।

शिव-पार्वती पूजा: महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करने के लिए एकत्रित होती हैं। पार्वती की मूर्ति, जिसे तीज माता भी कहा जाता है, को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। देवी-देवताओं को फलों, फूलों, मिठाइयों और अन्य वस्तुओं का भोग अर्पित किया जाता है। महिलाएं शिव और पार्वती को समर्पित प्रार्थनाएं करती हैं और भक्ति गीत गाती हैं।

संध्या पूजा (शाम की प्रार्थना): संध्या का समय संध्या पूजा से चिह्नित होता है, जहां महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं, जो अक्सर हरे या लाल रंग के होते हैं, जो उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक हैं। वे अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी (हिना) लगाती हैं जो कि एक पारंपरिक प्रथा है और जिसे शुभ माना जाता है। विवाहित महिलाएं आभूषण पहनती हैं, जो उनके वैवाहिक स्थिति और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।

झूला और गायन: हरतालिका तीज के दौरान एक और लोकप्रिय प्रथा घरों और बगीचों में झूले लगाने की होती है। महिलाएं इन खूबसूरत झूलों पर झूलती हैं और पारंपरिक तीज गीत गाती हैं, जो पार्वती और शिव की कथा को दर्शाते हैं और वैवाहिक जीवन की खुशियों का उत्सव मनाते हैं।

2024 में हरतालिका तीज की तारीख और मुहूर्त

2024 में हरतालिका तीज शुक्रवार, 6 सितंबर को मनाई जाएगी। यह त्यौहार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर में आता है।

हरतालिका पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 6 सितंबर, 2024 को सुबह 06:02 बजे से 08:33 बजे तक है। तृतीया तिथि 5 सितंबर, 2024 को दोपहर 12:21 बजे से शुरू होकर 6 सितंबर, 2024 को दोपहर 03:01 बजे समाप्त होगी।

निष्कर्ष

हरतालिका तीज केवल एक त्योहार नहीं है; यह प्रेम, भक्ति, और विवाह की पवित्रता का उत्सव है। यह पति-पत्नी के बीच के आध्यात्मिक और भावनात्मक संबंध की याद दिलाता है, विवाहित जोड़ों से आग्रह करता है कि वे अपने संबंध को आपसी सम्मान, विश्वास, और समझ के माध्यम से मजबूत करें।
सभी अनुष्ठानों को समर्पण के साथ मनाकर और उपवास करके, महिलाएं अपने विवाहित जीवन के दीर्घ, समृद्ध, और खुशहाल होने की कामना करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे शिव और पार्वती का दिव्य मिलन हुआ था । यह त्यौहार हिंदू संस्कृति में प्रेम, प्रतिबद्धता और आध्यात्मिक भक्ति के स्थायी मूल्यों का प्रतीक है।