तृतीय ज्योतिर्लिंग: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

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भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं और इन बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में तीसरे स्थान पर विराजमान हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga)। यह ज्योतिर्लिंग एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ भगवान शिव स्वयं महाकाल अर्थात काल के भी स्वामी के रूप में निवास करते हैं। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में स्थित है। उज्जैन शहर को पुराने समय में अवंती कहा जाता था।

ज्योतिर्लिंग क्या होता है?

‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।

हम हमने पहले के लेखों में पहले और दूसरे ज्योतिर्लिंग की कथा बता चुके हैं।
प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की कथा जानने के लिए यहाँ क्लिक करके हमारा लेख पढ़ें
दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन की कथा जानने के लिए यहाँ क्लिक करके हमारा लेख पढ़ें

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Credit: Incredible India

पौराणिक कथा (Mahakaleshwar Jyotirlinga Katha)

इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई इसका वर्णन हमें शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता के 16वें अध्याय में मिलता हैं जहाँ सूतजी महाराज ने Mahakaleshwar Jyotirlinga की महिमा का उल्लेख किया है।
कथा कुछ इस प्रकार है कि,

पुराने समय में अवंती नगरी में वेदप्रिय नामक एक ब्राह्मण निवास करते थे। वे अत्यंत धार्मिक थे और अपने घर में नियमित रूप से अग्नि की पूजा तथा एक लिंग बनाकर भगवान शिव का पूजन किया करते थे। उनके चार पुत्र — देवप्रिय, प्रियमेध, संस्कृत और सुवत्र। इन ब्राह्मण के सभी पुत्र अपने पिता की तरह ही अत्यंत विद्वान और धर्मनिष्ठ थे।

इसी समय रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक एक राक्षस ब्रह्मा जी को प्रस्सन करने के लिए तप कर रहा था। उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके ब्रह्मा देव से अजेयता का वरदान प्राप्त कर लिया। यह वरदान प्राप्त करने के बाद वह शक्ति के मद में चूर हो गया और धर्म का काम करने वाले साधु संतों को परेशान करने लगा। उसने चार और राक्षस उत्पन्न किए और अपनी राक्षसी सेना के साथ यहाँ वहां आतंक फ़ैलाने लगा। इसके बाद वह राक्षस अपनी सेना लेकर अवंती नगरी में आया और वहां के संतों, ऋषियों और ब्राह्मणों का वध प्रारंभ कर दिया।

उत्पात मचाते हुए वह राक्षस वेदप्रिय की कुटिया पर भी आया किन्तु वेदप्रिय के पुत्र, जो शिव भक्त थे, भयभीत नहीं हुए। उन्होंने युद्ध का मार्ग न चुनकर भक्ति और तप का सहारा लिया। वे एकाग्रचित्त होकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गए।

जब दूषण और उसकी सेना ने उन चारों ब्राह्मणो पर आक्रमण करने का प्रयास किया, तभी उनके घर में शिवलिंग के चारों ओर एक गड्ढा उत्पन्न हो गया जिसमें राक्षस गिरने लगे। उसी क्षण भगवान शिव उस गड्ढे से प्रकट हुए।

उन्होंने राक्षसों की ओर देखा और कहा —
मैं महाकाल हूँ, काल का भी नाश करने वाला।

भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से दूषण का वध किया और उसकी सेना भयभीत होकर भाग गई।

शिव का महाकाल रूप और ज्योतिर्लिंग की स्थापना

भगवान शिव ने वेदप्रिय के पुत्रों से कहा,
“मैं महाकाल महेश्वर हूं और तुम चारों भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हें मोक्ष प्रदान करता हूं। बोलो तुम्हें क्या वरदान चाहिए। इस पर चरों ब्राह्मण पुत्रो ने भगवान शिव से कहा कि हम चाहते हैं कि आप सिर्फ हमें नहीं अपितु सभी भक्त जनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए यहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करें। भगवान शिव ने उनकी इक्छा से प्रस्सन होकर कहा मैं मेरे भक्तो का कल्याण करने के लिए यहीं महाकाल के रूप में निवास करूंगा।”

जैसे ही शिव जी उस स्थान में निवास करने लगे, वहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई और दूर-दूर तक इस स्थल की दिव्यता फैल गई। उस दिन से यह स्थान महाकालेश्वर कहलाया।

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महाकालेश्वर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

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Credit: MP Tourism

भारत के सभी बारह ज्योतिर्लिंग में यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी (दक्षिण की ओर मुख किए हुए) है। दक्षिणमुखी भगवान शिव का ही एक रूप है जिसमें उन्होंने ब्रह्मा जी के चारों मानस पुत्रो को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति कराई थी। भगवान शिव के दक्षिणामूर्ति रूप के बारे में और अधिक जानने के लिए हमारा ये लेख पढ़ें।

उज्जैन को कालों का काल अर्थात महाकाल की नगरी कहा जाता है।

यहाँ शिव केवल मृत्यु के देवता नहीं, मोक्ष के दाता भी हैं।

महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) तंत्र साधना, मुक्ति मार्ग और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों का मुख्य केंद्र है। यहाँ की भस्म आरती विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान शिव को भस्म से स्नान कराया जाता है — यह आरती प्रातः काल 4 बजे होती है और विशेष आरक्षण के माध्यम से देखी जा सकती है।

मंदिर घूमने का सर्वोत्तम समय

महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Jyotirlinga) की यात्रा अक्टूबर से मार्च के बीच करना सर्वोत्तम रहता है। इस समय मौसम अनुकूल रहता है।

दर्शन और आरती की जानकारी:

मंदिर खुलने का समय: प्रातः 4:00 बजे से रात्रि 11:00 बजे तक

भस्म आरती: प्रातः 4:00 से 6:00 बजे (पूर्व बुकिंग अनिवार्य)

महाशिवरात्रि, श्रावण मास और नवरात्रि में यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। मंदिर के बारे में और अधिक जानने के लिए हमारा ये लेख पढ़ें।

पर्यटन की दृष्टि से:

उज्जैन में काल भैरव मंदिर, संध्या घाट, हरसिद्धि मंदिर और रामघाट जैसे अन्य तीर्थस्थल भी महाकालेश्वर के समीप हैं।

उज्जैन रेलवे और रोड नेटवर्क से भलीभांति जुड़ा है, तथा निकटतम एयरपोर्ट इंदौर में है।


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