जानिये गणपति विसर्जन का महत्व

गणेश चतुर्थी के उत्सव के आखिरी दिन गणेश विसर्जन होता है।

गणेश विसर्जन, गणेश चतुर्थी उत्सव के समापन के दिन होता है। महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में विसर्जन उत्सव को बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह अनुष्ठान गणपति जी के दस दिनों के पूजन के बाद उनकी विदाई का प्रतीक है। यह उत्सव सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है; अपितु यह भक्ति, अनासक्ति और जीवन चक्र के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाता है।

गणेश जी की उत्पत्ति की कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश की उत्पत्ति की कहानी बड़ी ही रोचक है । भगवान गणेश का निर्माण माता पार्वती ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से किया था। इसके पश्च्यात उन्होंने इस मूर्ति में प्राण डाले और इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ। जन्म के बाद पार्वती जी ने गणेश को अपनी रक्षा का कार्य सौंपा और कहा कि जब तक मैं स्नान करके बहार नहीं आ जाती तुम गुफा के द्वार पर पहरा देते रहना और किसी को भी भीतर मत आने देना ।

कुछ समय पश्च्यात जब भगवान शिव लौटे कैलाश से लौटे और उन्होंने गुफा में भीतर जाने का प्रयास किया तो गणेश ने उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया और इस पर दोनों के बीच एक वाद विवाद शुरू हो गया जो जल्द ही एक युद्ध में बदल गया और अंततः भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश का सिर काट अपने त्रिशूल के प्रहार से काट दिया । जब भोलेनाथ ने गणेश पर हमला किया तब वह इस बात से अनभिज्ञ थे कि गणेश, उनकी पत्नी पार्वती का ही पुत्र है जो कि अपनी माँ की आज्ञा का पालन ही कर रहा था।

जब यह बात पार्वती को पता चली तो उन्होंने दुखी और हताश होकर गणेश को पुनर्जीवित करने की मांग की। अपनी गलती सुधारने और पार्वती को शांत करने के लिए, शिव ने गणेश के सिर को एक हाथी के सिर से बदल दिया, जिससे कि उन्हें पुनः जीवन की प्राप्ति हुई।

गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है ?

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्म के रूप में मनाई जाती है, जिन्हें बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। इस उत्सव की शुरुआत गणेश की मूर्तियों को घरों और सार्वजनिक पंडालों में स्थापित करने से होती है। भक्त पूजा, मिठाइयाँ (विशेष रूप से मोदक ) चढ़ाते हैं और आरती करते हैं। पूरे उत्सव के दौरान विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है।

गणेश चतुर्थी के पहले दिन ‘प्राणप्रतिष्ठा’ की जाती है, जिसमें मूर्ति में जीवन का आह्वान किया जाता है। अगले १० दिन तक प्रार्थना, भजन और सामुदायिक गतिविधियों से भरे होते हैं, जो एकता और आध्यात्मिकता की भावना को बढ़ावा देते हैं।

इस उत्सव का एक सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू भी है। यह समुदायों के एक साथ आने, एक साथ जश्न मनाने और उनके आपसी संबंधों को मजबूत करने का मौका भी देता है। यह दृश्य विशेष रूप से सार्वजनिक उत्सवों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जैसे मुंबई और पुणे में, जहां हजारों लोग इस उत्सव में भाग लेते हैं, यहाँ सार्वजनिक पंडाल लगते हैं जहाँ भव्य रूप से सजी हुई गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है। इन पंडालों में सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोग अपनी प्रार्थनाएँ अर्पित करने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए एकत्र होते हैं।

गणेश विसर्जन का महत्व

गणेश चतुर्थी के उत्सव के आखिरी दिन गणेश विसर्जन होता है।
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गणेश विसर्जन की प्रक्रिया में भगवान गणेश की मूर्ति को नदी, समुद्र या झील की जलधारा में विसर्जित किया जाता है। इस विसर्जन के कई प्रतीकात्मक उद्देश्य हैं:

  • सृजन और विघटन का चक्र: गणेश विसर्जन जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक है। मूर्ति की अस्थायी स्थापना भौतिक रूप का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि विसर्जन वापिस से परब्रह्म में लौटने का प्रतीक है। विसर्जन जीवन की अस्थिरता और आध्यात्मिक अनासक्ति के महत्व पर जोर देता है। यह चक्र यह याद दिलाता है कि सभी रूप अस्थायी हैं और भौतिक दुनिया में सब कुछ उन तत्वों में विलीन होने के लिए नियत है, जिनसे इसकी उत्पत्ति हुई थी।
  • नवीनीकरण और नई शुरुआत: जैसे ही उत्सव समाप्त होता है, भक्तों को याद दिलाया जाता है कि समाप्तियाँ सिर्फ समापन नहीं बल्कि नई शुरुआत का भी संकेत देती हैं। यह एक आध्यात्मिक प्रतीक है पुरानी चीजों को छोड़ने और नई चीजों के लिए जगह बनाने का । मूर्ति का विसर्जन अहंकार के विघटन और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है, जो भक्तों को जीवन की एक नई यात्रा के लिए तैयार करता है।
  • अस्थिरता पर जोर: गणेश विसर्जन का एक सबसे महत्वपूर्ण शिक्षण अस्थिरता पर जोर देना है। एक ऐसी दुनिया में जहां लोग अक्सर भौतिक संपत्ति, रिश्तों और यहां तक कि अपनी पहचान से चिपके रहते हैं, विसर्जन यह याद दिलाने के लिए कार्य करता है कि भौतिक दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। यह परिवर्तन को अपनाने के महत्व को सिखाता है, जो आज की तेज-तर्रार, तेजी से बदलती दुनिया में विशेष रूप से प्रासंगिक सबक हैं।

निष्कर्ष

गणेश विसर्जन सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं है; यह जीवन की अस्थिरता, आध्यात्मिक विकास के महत्व का एक मार्मिक अनुस्मारक है। यह भक्तों को सिखाता है कि भगवान गणेश के आशीर्वाद को न केवल उत्सव के दौरान बल्कि अपने पूरे जीवन में संजोकर रखना चाहिए। जैसे ही भगवान गणेश की मूर्ति पानी में घुल जाती है, वैसे ही उनके भक्तों की चिंताएँ और बाधाएँ भी घुल जाती हैं।