वाल्मीकि जी कौन हैं और उनकी जयंती क्यों मनाई जाती है?

On the occasion of Valmiki Jayanti we remember Rishi Valmiki who wrote Ramayana

वाल्मीकि जयंती पर ऋषि वाल्मीकि को याद किया जाता है। वाल्मीकि जी को आदिकवि के रूप में जाना जाता है, जिनका नाम भारतीय साहित्य और संस्कृति में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने महान ग्रंथ रामायण की रचना की, जो भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा है और हमें जीवन के उच्चतम मूल्यों से परिचित कराती है। वाल्मीकि जी न केवल एक कवि थे बल्कि एक संत, दार्शनिक, और समाज सुधारक भी थे।

इस लेख में समझते हैं उनके जीवन को और जानते हैं वाल्मीकि जयंती के बारे में।

वाल्मीकि जी का जीवन परिचय

नारद मुनि वाल्मीकि जी को परम ज्ञान देते हुए
Credit: HarGharPuja

वाल्मीकि जी का वास्तविक नाम “रतनाकर” था और उनके जीवन की शुरुआत एक सामान्य व्यक्ति के रूप में हुई थी। वह अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए पहले डाकू हुआ करते थे। कहा जाता है कि नारद मुनि के उपदेशों से उनका जीवन बदल गया। उन्होंने तपस्या और ध्यान में लीन होकर आत्म-साक्षात्कार किया और फिर एक महान ऋषि बन गए। वाल्मीकि जी ने अपने जीवन को सेवा और साधना के माध्यम से जनता की भलाई के लिए समर्पित किया।

सरस पक्षियों की कथा

एक सारस पक्षी दूसरे की मृत्यु पर विलाप करता हुआ
Credit: HarGharPuja

महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसे सरस पक्षी घटना कहा जाता है। यह घटना उनकी करुणा और संवेदनशीलता को दर्शाती है और यह भी कि कैसे उनके भीतर की कविता का जन्म हुआ। एक दिन वाल्मीकि जी अपने शिष्यों के साथ गंगा के तट पर तपस्या कर रहे थे। उसी समय, उन्होंने देखा कि सरस पक्षी का एक जोड़ा प्रेमपूर्वक आसमान में उड़ रहा था। अचानक एक शिकारी ने तीर चलाकर नर पक्षी को मार डाला, और वह ज़मीन पर गिर पड़ा। मादा पक्षी अपने साथी की मृत्यु देखकर अत्यंत दुःखी हो गई और विलाप करने लगी।

यह दृश्य देखकर वाल्मीकि जी के हृदय में अपार करुणा उत्पन्न हुई, और उनके मुख से अनायास ही एक श्लोक निकल पड़ा:

“मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः, यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्”

इस श्लोक का अर्थ है: “हे शिकारी, तुझे कभी शांति प्राप्त नहीं होगी, क्योंकि तूने प्रेम में लिप्त एक निर्दोष सरस पक्षी का वध किया है।”

यह घटना उनके जीवन में परिवर्तन का बड़ा कारण बनी और इसी श्लोक को रामायण की रचना का आधार माना जाता है। इसे संस्कृत साहित्य का पहला श्लोक भी कहा जाता है, और इसी कारण से वाल्मीकि जी को आदिकवि कहा जाता है।

रामायण की रचना

वाल्मीकि जी की सबसे बड़ी उपलब्धि रामायण की रचना है। यह महाकाव्य भगवान श्री राम के जीवन, उनके आदर्शों, संघर्षों और धर्म की महत्ता को बताता है। रामायण न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में पढ़ी और सराही जाती है। वाल्मीकि जी ने इस ग्रंथ के माध्यम से धर्म, कर्तव्य, सत्य और प्रेम की अनमोल शिक्षा दी है।

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वाल्मीकि जयंती का महत्त्व

वाल्मीकि जयंती पर ऋषि वाल्मीकि की एक रामायण लिखते हुए तस्वीर
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वाल्मीकि जयंती, महर्षि वाल्मीकि जी की जन्मतिथि के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह दिन उनकी शिक्षाओं और उनके योगदान को सम्मान देने का दिन है। उनकी जयंती हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है, जिसे “परगट दिवस” के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से मंदिरों और आश्रमों में उनके उपदेशों और रामायण के पाठ का आयोजन किया जाता है। वाल्मीकि जी की शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि व्यक्ति चाहे किसी भी पृष्ठभूमि से हो, अगर उसके जीवन में आत्म-ज्ञान और सच्ची भक्ति है, तो वह महानता की ओर बढ़ सकता है।

2024 में वाल्मीकि जयंती 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी।

वाल्मीकि जयंती मनाने का उद्देश्य

वाल्मीकि जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज में उनके योगदान को याद करना और उनकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाना है। उनके जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि चाहे जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो, सही मार्ग पर चलकर और अपने कर्तव्यों का पालन करके सफलता पाई जा सकती है। उनके द्वारा लिखी गई रामायण आज भी हमें सही जीवन जीने की राह दिखाती है।


महर्षि वाल्मीकि जी एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने न केवल भारतीय साहित्य को समृद्ध किया बल्कि समाज में नैतिक और धार्मिक मूल्यों की स्थापना भी की। उनकी शिक्षाओं को अपनाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। वाल्मीकि जयंती उनके अद्वितीय योगदान को याद करने का एक अवसर है और हमें उनके मार्गदर्शन का पालन करते हुए सत्य और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा देती है।

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