Sankashti Ganesh Chaturthi: भगवान गणेश को समर्पित संकष्टी गणेश चतुर्थी का यह पवित्र त्यौहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह चतुर्थी हर महीने की कृष्ण पक्ष की चौथ को मनाई जाती है। इस व्रत को संकट को हरने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता हैं। संकष्टी शब्द का अर्थ है ‘संकटों को हरने वाला’ और भगवान गणेश तो स्वयं विघ्नहर्ता हैं, जो भक्तों के जीवन से सभी कष्टों को दूर करते हैं। इसलिए अपने जीवन से दुखों को दूर करने और संकटों से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत का पालन किया जाता है। इस वर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी 27 नवंबर को मनाई जाएगी।
Table of Contents
संकष्टी गणेश चतुर्थी महत्व
संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा करने से जीवन से सभी संकट दूर होते हैं और सफलता सुख शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान गणपति को प्रथम पूज्य देव माना गया है और यह दिन विशेष रूप से उनके भक्तों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। गणपति का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन व्रत रखने और पूजा करने का विधान है। इस पर्व का विशेष महत्व है।
इस दिन चांद को देखना बेहद शुभ माना जाता है। इसे “चंद्रोदय व्यूअर” के नाम से जाना जाता है। चांद के दर्शन के बिना व्रत अधूरा माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत का पालन करने से राजा इंद्रद्युम्न को पुत्र की प्राप्ति हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत का पालन करने से परिवार में सुख शांति धन और ऐश्वर्य बना रहता है।
संकष्टी पूजन सामग्री
भगवान गणेश की एक मूर्ति या फोटो, लाल वस्त्र, फुल विशेष रूप से लाल, 21 गांठ दूर्वा, रोली, सिंदूर, चंदन, अक्षत, मोदक, लड्डू और नारियल, घी का दीपक और धूप, पान, सुपारी, कलश और जल को अवश्य अपने साथ रखें।
पूजा विधि
संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है।
- व्रत का पालन करने वाले को सुबह जल्दी उठकर नहाकर साफ कपड़े पहनने चाहिए।
- उसके बाद पूजा स्थल को साफ करके भगवान गणेश की मूर्ति या उनकी फोटो को स्थापित करना चाहिए।
- भगवान गणेश की मूर्ति को चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें।
- इसके बाद दीपक जलाएं।
- पूजा शुरू करने से पहले व्रत का संकल्प लें और अपने हाथों में जल और पुष्प लेकर भगवान गणेश को नमन कर उनसे व्रत को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
- इसके बाद भगवान गणेश को अक्षत, फूल, दुर्गा और रोली अर्पित करें।
- उन्हें मोदक या लड्डू का भोग लगाएं।
- इसके बाद 108 बार ओम गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें।
- गणेश जी से जुड़ी कथा सुनें और सुनाएं।
- इसके बाद आरती कर अपने परिवार जन को आरती दिखाएं।
- आरती के बाद भगवान गणेश को प्रणाम कर उन्हें धन्यवाद दें।
व्रत का पारण चांद को अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। चांद का दर्शन करने के बाद अपने व्रत को पूरा कर भगवान गणेश को अर्पित प्रसाद ग्रहण कर करें।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों के छोटे भाई नकुल और सहदेव ने इस व्रत को किया था। इस व्रत को करने के बाद उन्हें कठिनाइयों से मुक्ति मिली और उनके परिवार में सुख शांति बनी रही। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार चन्द्र देव ने गणेश जी के रूप को देखकर उनका मजाक उड़ाया था।
इसके बाद गणेश जी ने क्रोध में आकर चांद को श्राप दिया और कहा कि उनका स्वरूप जो भी देखेगा उसे कलंक का सामना करना पड़ेगा। इसके बाद चंद्र देव ने गणेश जी की स्तुति की और उनसे माफी मांगी। चंद्र देव की इस प्राथना से गणेश जी प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि संकष्टी चतुर्थी पर जो भी चंद्रमा की पूजा करेंगे, उनके पाप मिट जाएंगे और उनका कलंक समाप्त हो जाएगा।
अपने पूजा पाठ एवं अनुष्ठानों के लिए हमारी शुद्ध एवं सुगन्धित धुप एवं सामग्री कप्स ज़रूर खरीदें