तीज क्या है? जानिए इसके प्रकार, कारण, तिथि और सांस्कृतिक महत्व

भारत उत्सवों का देश है। 

यहां पर हर मौसम और महीने के अपने त्योहार हैं। त्योहारों को यदि ध्यान से देखें तो, कोई भी पक्ष अनछुआ नहीं रह जाता है। हर मौसम में वैभव बिखेरती प्रकृति से लेकर लोक त्यागकर स्वर्ग में बसे पूर्वजों तक को पूजने की परंपरा भारत में रही है। 

लेकिन, महिलाओं को जो उल्लास तीज मनाकर मिलता है, वो अन्य किसी पर्व में देखना दुर्लभ है। सुहाग के जोेड़े में सजी-धजी महिलाएं जब माता पार्वती को पूजने निकलती हैं तो उनके खिले चेहरों की खुशी को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। 

तीज पर्व का महत्व ऐसा है कि, आम बोलचाल में भी इसे तीज-त्योहार कहते हैं। यानि कि, तीज का महत्व सभी त्योहारों से आगे स्थापित किया गया है। सावन में मनाई जाने वाली तीज, भारत की अपनी परंपरा है जिसमें, रीति-रिवाज, प्रकृति पूजन, नाच-गाना और खुशियों की पूरी दुनिया छिपी हुई है।

इस आर्टिकल में हम भारत में मनाए जाने वाले तीज पर्व के बारे में बताएंगे। तीज पर्व के प्रकार, कारण, तिथि और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा करेंगे।

तीज क्या है? 

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तीज, संस्कृत भाषा के शब्द तृतीय का अपभ्रंश है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘तीसरा’। ये हिंदू कैलेंडर के अनुसार अमावस्या के बाद पड़ने वाले तीसरे दिन को दर्शाता है। जिस तीज त्योहार की हम चर्चा कर रहे हैं, असल में वह तीन हिंदू त्योहारों का संयुक्त नाम है। 

ये तीनों हिंदू त्योहार मुख्य रूप से सनातन धर्म के प्रमुख देवता भगवान शिव और उनकी पत्नी माता पार्वती को समर्पित है। तीज पर्व का उत्सव महिला प्रधान है। ये पर्व महिलाओं द्वारा उत्तम पति की प्राप्ति और उनकी मंगल कामना हेतु किया जाता है।

इस पर्व को मनाने के लिए मायके में आकर महिलाएं गाना-बजाना, झूला झूलना, लोक नृत्य करना, व्रत-पूजन और अनुष्ठान भी करती हैं। इस पर्व में महिलाएं उपवास रखकर माता पार्वती से मानसून के मौसम में अच्छी बारिश भी मांगती हैं, ताकि उनके मायके-ससुराल का परिवार सुखी-संपन्न रहे।

तीज कितने प्रकार की होती है?

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तीज को क्षेत्र और परंपरा के आधार पर सनातन संस्कृति में अलग-अलग नामों और प्रकार से मनाया जाता है। हर स्थान पर परंपरा के कारण पूजा के नियमों और व्यवहार में थोड़ा-बहुत परिवर्तन आ जाता है। लेकिन, तीज की मूल भावना एक जैसी ही रहती है।

तीज के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • हरतालिका तीज
  • हरियाली तीज
  • कजरी तीज
  • आखा तीज (जैन, राजस्थान)
  • अवरी तीज (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़)
  • काजल तीज (तेलंगाना)
  • केवाड़ा तीज (गुजरात)
  • तिज (नेपाल)

आदि।

तीज क्यों मनाई जाती है?

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। उन्होंने सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु की तपस्या की। प्रसन्न होने के बाद उन्होंने सलाह दी कि, आपको भगवान शिव की ही तपस्या करनी चाहिए। 

इसके बाद, माता पार्वती ने भगवान शिव की कठोर तपस्या प्रारंभ कर दी। माता पार्वती इस दौरान सिर्फ पत्ते खाकर ही तपस्या कर रहीं थीं। बाद में पत्तों का भी त्याग करने के कारण उन्हें ‘अपर्णा’ कहा गया।

माता पार्वती की ये कठोर तपस्या 107 जन्मों तक जारी रही। अंत में, 108वें जन्म में भगवान शिव उनके कठोर तप से प्रसन्न हो गए। उनके 108वें जन्म में भगवान शिव ने देवी पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।

ये वही दिन है, जब भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया। माता पार्वती के तपस्वी स्वरूप को तीज माता के नाम से पूजा जाता है। ये दिन सुहागन स्त्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है। 

महिलाएं सोलह श्र्ंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। महिलाएं उनसे अखंड सौभाग्य, प्रगति और स्वास्थ्य की कामना करती हैं। जबकि, अविवाहित लड़कियां माता पार्वती से भगवान शिव जैसा उत्तम वर प्रदान करने की कामना करती हैं।

तीज कब मनाई जाती है?

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हरतालिका तीज और हरियाली तीज दो अलग महीनों में मनाए जाने वाले अलग पर्व हैं। आमतौर पर सनातन परंपरा से अपरिचित होने के कारण दोनों में अंतर नहीं कर पाते हैं। लेकिन, ये दो अलग पर्व हैं, जिनका अपना भिन्न महत्व और पूजन पद्यति है।

श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता है। हरियाली अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष की तीज को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। जबकि, भादौ यानी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तीज को हरतालिका तीज मनाई जाती है। जबकि, भादौ या भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजली तीज मनाई जाती है।

भारत में तीज का सांस्कृतिक महत्व

तीज, सिर्फ भारत में मनाया जाने वाला एक पर्व ही नहीं है। बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी बहुत गहरा है। ये त्योहार आम जनमानस का त्योहार है। इस वजह से पूरे देश में बड़ी धूमधाम से इस त्योहार को मनाया जाता है। 

तीज पर्व को मनाते हुए महिलाएं अपनी ग्रामीण भाषा में गीत गुनगुनाती हैं। इन गीतों ने भारतीय संगीत शास्त्र को भी प्रभावित किया है। इस मौके पर गाए जाने वाले गीतों को कजरी कहा जाता है। कजरी गायन की तीन प्रमुख शैलियां अवधी, बनारसी और मिर्जापुरी भी विकसित हुई हैं। 

कजरी गीतों में क्या गाया जाता है?

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मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों में कजरी गाते हुए झूला झूलने का रिवाज रहा है। यही कारण है कि, आज भी आम के बगीचों में झूले डालकर कजरी गाने का रिवाज जीवित है। इन गीतों में विरह और मिलन दोनों के भाव प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं। 

एक गीत में यदि कोई लड़की सावन के महीने में मायके जाने के लिए अपनी मां को पत्र भेजकर मनुहार कर रही है। तो दूसरे गीत में नवविवाहिता लड़की जो शादी के बाद पहली बार मायके आई है, वो सावन के उल्लास के बीच में अपने पति को याद करके उदास हो जाती है। 

कुछ गीतों में, पति को याद करके उदास हुई अपनी सहेली से ठिठोली करती हुई सखियों की मीठी छेड़छाड़ भी दिखाई पड़ती है। अविवाहित ​सखियां और भाभियां भी ननद को छेड़ते हुए उसके पति के बारे में पूछती हैं। पति की याद में पहले से उदास लड़की को छेड़ने की ये परंपरा भी बहुत समृद्ध और मानसिक रूप से विकसित है।

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वहीं, ससुराल को वापस लौटती लड़की अपने पिता से कहती है कि, ‘बाबा नीम की वो डाल मत काटना, जहां सावन में झूला पड़ता है।’ लेकिन, वो ये बात सीधे न करकर बहाना बनाती है कि, ‘नीम की डाल पर चिड़ियों का घोंसला है, जो डाल काटने से उजड़ जाएगा।’

ये गीत रस का सागर हैं। जिन्होंने भारत की शास्त्रीय संगीत परंपरा को न सिर्फ समृद्ध बनाया है। बल्कि, इस शैली ने कई महान गायक और संगीतकार भी हमें दिए हैं।