श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापना की कथा

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Shree Baba Baidyanath Jyotirlinga

आज के इस लेख में हम बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirlinga) के बारे में जानेंगे, जो कि झारखंड के देवघर स्थान पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा हमें शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में देखने को मिलती है। तो आइए, जानते हैं इसकी कथा को।

ज्योतिर्लिंग क्या होता है? (Jyotirlinga Kya Hota Hai)

‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।

इससे पहले हम और ज्योतिर्लिंगों की कथा बता चुके हैं, अगर आप जानना चाहते हैं कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई तो इस लिंक पर क्लिक करके हमारी वेबसाइट पर जाकर ज़रूर पढ़ें

Baidyanath Jyotirlinga Katha

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Credit: Ease India Trip

रावण का कठोर तप और भगवान शिव की परीक्षा

एक बार दशानन (रावण) ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे अजेय होने का वरदान प्राप्त किया। लेकिन उसके कुलगुरुओं ने उसे बताया कि इस समस्त संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली तो भगवान शिव हैं, अतः तुम्हें उन्हें प्रसन्न करने के लिए तप करना चाहिए। रावण ने ऐसा ही करने का निश्चय किया।

रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरंभ की। वह लंबे समय तक तप करता रहा, किंतु भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए। इसके बाद रावण ने एक अन्य कठिन तपस्या शुरू की, लेकिन तब भी शिव प्रसन्न नहीं हुए।

अंततः दशानन ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने एक-एक शीश (सिर) की बलि देनी शुरू कर दी। इस प्रकार जब रावण ने नौ शीशों की बलि दे दी और दसवें शीश की बलि देने तथा आत्महत्या करने को मजबूर हो गया, तभी भगवान शिव प्रकट हुए।

भगवान शिव ने रावण से कहा कि मैं तुम्हारी साधना, तप और बलिदान से अत्यंत प्रसन्न हूँ। शिव ने उसके कटे हुए नौ शीश पुनः उसके धड़ पर लगा दिए और उससे कहा कि वर मांगो। रावण ने कहा कि मुझे संसार में सबसे बलशाली बना दीजिए। इस पर शिव ने प्रसन्न होकर उसे सबसे अधिक बलशाली होने का वरदान दे दिया।

रावण को मिला ज्योतिर्लिंग

रावण ने भगवान शिव से कहा कि यदि वे उसकी भक्ति से प्रसन्न हैं तो वे उसके साथ लंका चलें। इस पर भगवान शिव ने कहा कि वे कैलाश पर्वत पर ही निवास करते हैं, किंतु उन्होंने स्वयं को एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट किया और कहा,

“यह मेरा ही स्वरूप है, तुम इसे लंका ले जाओ। इस लिंग में साक्षात मेरा ही वास है, किंतु ध्यान रखना कि यदि लंका पहुँचने से पहले तुमने इसे कहीं भी धरती पर रख दिया, तो यह लिंग वहीं स्थापित हो जाएगा।”

रावण बहुत प्रसन्न होकर शिवलिंग को अपने साथ लंका ले जाने लगा।

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Credit: Shri Mathura Ji

देवताओं की चालाकी

जब रावण शिवलिंग लेकर जा रहा था, तो सभी देवता डर गए कि यदि भगवान शिव लंका पहुँच गए, तो रावण अजेय हो जाएगा और स्वर्ग पर भी उसका राज हो जाएगा। इस भय के कारण देवताओं ने यह योजना बनाई कि शिवलिंग को लंका तक न पहुँचने दिया जाए।

देवताओं के राजा इंद्र ने अपनी शक्ति से रावण को तीव्र लघुशंका (मूत्र त्याग की तीव्र इच्छा) उत्पन्न करवा दी। फिर भी रावण आगे बढ़ता रहा। लेकिन एक समय ऐसा आया कि रावण रुकने को मजबूर हो गया। उसी समय इंद्र एक ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके सामने आए।

रावण ने उस ब्राह्मण से कहा,

“हे ब्राह्मण श्रेष्ठ, कृपया आप इस शिवलिंग को थोड़ी देर के लिए पकड़ लें, मैं लघुशंका से निवृत्त होकर आता हूँ।”

जैसे ही रावण ब्राह्मण देव की आँखों से ओझल हुआ, इंद्र ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और वह लिंग वहीं स्थापित हो गया।

रावण का प्रयास और असफलता

रावण ने लौटकर देखा कि शिवलिंग धरती पर रखा है। उसने अपनी पूरी शक्ति लगाकर उस लिंग को उठाने का भरसक प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो सका। इस प्रकार श्री बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना वहीं हो गई।

रावण के अहंकार का टूटना

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Credit: Kailash Mansarovar Yatra

कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। इसके बाद रावण अपने बल के अहंकार में स्वयं कैलाश पर्वत को ही उठाने चल पड़ा। उसने सोचा कि वह भगवान शिव को कैलाश सहित ही लंका ले जाएगा। रावण ने अपने बल से कैलाश पर्वत उठा भी लिया। लेकिन भगवान शिव ने उसका अहंकार तोड़ने के लिए अपने पाँव के अंगूठे से हल्का सा दबाव डाला। इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

उसकी चीख इतनी तेज थी कि वह तीनों लोकों में गूँजने लगी और इसी कारण उसका नाम रावण पड़ा। कहते हैं कि वहीं पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘रावण स्तोत्र’ की रचना की और उसे गाकर सुनाया। शिव ने उससे प्रसन्न होकर उसे चंद्रहास खड्ग (विशेष तलवार) भी प्रदान की।

बाबा बैद्यनाथ धाम दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय (Baba Baidyanath Dham Timings)

जुलाई और अगस्त के महीनों में श्रावणी मेला के कारण बैद्यनाथ धाम में पर्यटन अपने चरम पर होता है। श्रावण के महीने में, बैद्यनाथ धाम में बहुत भीड़ होती है, इसलिए यदि आप इस मौसम में यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको पहले से ही आवास बुक कर लेना चाहिए।

सर्दियों का मौसम भी एक अच्छा समय है क्योंकि जलवायु आम तौर पर मध्यम होती है, जिसमें औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। यह मंदिरों और अन्य आस-पास के आकर्षणों को देखने के लिए एकदम सही समय माना जाता है क्योंकि इस समय गर्मी अपने चरम पर नहीं होती है।

हालांकि, मार्च से जून तक; तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ सकता है, जिससे दर्शनीय स्थलों की यात्रा या बाहरी गतिविधियों के लिए यह असुविधाजनक हो जाता है। जुलाई से सितंबर के दौरान बैद्यनाथ धाम में मानसून के आगमन के साथ अच्छा मौसम रहता है।


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