भगवद्गीता में उल्लिखित इन 10 फूलों में छिपा है जीवन का सार

श्रीमद् भगवद गीता गहन आध्यात्मिक सत्य को जानने का आसान मार्ग है। 

भगवद गीता में आध्यात्मिकता का वर्णन करने के लिए अनेक तरह के फूलों की उपमा दी गई है। इस ग्रंथ में प्रत्येक फूल का संदर्भ जीवन के उतार-चढ़ाव का प्रतीक है, जैसे कि अस्तित्व की क्षणभंगुर प्रकृति या आत्मज्ञान की खोज। 

आज के तेज-तर्रार डिजिटल युग में, भगवद गीता प्राचीन वनस्पति से प्रेरणा लेकर आधारभूत दृष्टिकोण प्रदान करती है। ये हमें जीवन की अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता, सादगी और आध्यात्मिक विकास को महत्व देना सिखाते हैं। 

आज जब हम असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, तो भगवद गीता के ये पुष्प अंतर्दृष्टि हमें प्रेम, वैराग्य और आत्म-जागरूकता की ओर ले जाती है।

इसीलिए, इस आर्टिकल में हम आपको श्रीमद् भगवद गीता और हिंदू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित 10 फूलों और उनकी उपयोगिता के बारे मेें जानकारी दे रहे हैं। इस आर्टिकल को पढ़कर आप फूलों के पीछे छिपी धार्मिकता और संकेतों को समझ सकेंगे।

1. हर सिंगार/ पारिजात (Night Jasmine, Parijaat, Harsingar – Nyctanthes arbor-tristis)

गोधूलि बेला में खिलने वाले, सफेद और नारंगी रंग के इन फूलों की बात ही अलग है। रात की चमेली, हर सिंगार या पारिजात इन फूलों का नाम है। सांसारिक अस्तित्व और दिव्य विद्या के पवित्र मिलन का प्रतीक हैं। भगवद गीता में इस फूल का उल्लेख है, जो शाश्वत जीवन चक्र और पुनर्जन्म पर प्रकाश डालता है।

लक्ष्मी: कौस्तुभ पारिजातक सुरा धन्वंतरिश्चंद्रमा: ।

गाव: कामदुधाः सुरेश्वर गजो, रंभादिदेवांगनाः ।।

अश्वः सप्त मुखोविषम हरिधनुं, शंखोमृतम चांबुधे ।

रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदीनम, कुर्वंतु वोमंगलम ।।

अर्थ: भगवती लक्ष्मी, कौस्तुभ-मणि, पारिजात नाम का कल्प-वृक्ष, वारुणी देवी, वैद्यराज धन्वन्तरि, चन्द्रमा, कामधेनु गौ, देवराज इन्द्र का ऐरावत हस्ती, रम्भा आदि अप्सराएं, सात मुख वाला उच्चैःश्रवा नामक घोड़ा, कालकूट विष, भगवान् विष्णु का शार्ङ्ग-धनुष, पाञ्चजन्य-शंख तथा अमृत – समुद्र से उत्पन्न ये चौदह रत्न आप लोगों का प्रतिदिन मंगल करें।

Night Jasmine, Parijaat, Harsingar - Nyctanthes arbor-tristis

पारिजात के फूल का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से बताया गया है। इसकी वजह से इसका आध्यात्मिक महत्व और भी गहरा हो जाता है। 

पौराणिक कथाओं में कृष्ण की पत्नियों रुक्मिणी और सत्यभामा के बीच पारिजात के वृक्ष को लेकर प्रतिद्वंद्विता और उसके नीचे गोपियों के साथ कृष्ण के दिव्य नृत्य के बारे में बताया गया है, जिसमें उनकी मधुर बांसुरी की धुनें भी शामिल हैं। 

Night Jasmine, Parijaat, Harsingar - Nyctanthes arbor-tristis

यह फूल शाश्वत प्रेम, दिव्य रोमांस और ब्रह्मांड के सतत नृत्य का प्रतीक है, जो लालसा, पूर्ति और अलगाव और मिलन के पवित्र अंतर्संबंध के विषयों का प्रतीक है।

Trivia: 

Night Jasmine, Parijaat, Harsingar - Nyctanthes arbor-tristis

क्या आप जानते हैं कि हरसिंगार भारतीय शादियों में सर्वाधिक प्रयोग होने वाले फूलों में से एक है। इसका प्रयोग कार्यक्रम स्थल की सुंदरता को बढ़ाने में किया जाता है।

2. चंपा (Champak, Plumeria, Magnolia / Michelia champaca)  

अपनी मनमोहक सुगंध के साथ, चंपा या प्लुमेरिया सिर्फ, सुंदर फूल से कहीं बढ़कर है। इसे अक्सर ‘ईश्वर की सुगंध’ कहा जाता है।

यह हिंदू परंपराओं में भी विशेष स्थान रखता है, जिसमें भगवद गीता में भी इसका उल्लेख है। यह ग्रंथ फूल की तुलना लचीलेपन, भक्ति और आत्मा (आत्मा) और परमात्मा (सार्वभौमिक आत्मा) के बीच के बंधन से करता है।

तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।

गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः (शुक्लयजुर्वेदीय पुरुषसूक्तम् (8))

जाजी चम्पक पुन्नाग केतकी मल्लिकादिभि:

करवीरै: पारिजातै: पूजयामि रमापतिम्:।।

ॐ श्री कृष्ण परब्रह्मणै नम: नानाविध परिमल पत्र पुष्पाणि सर्मपयामि। (श्रीमद् भगवद गीता)

तत्कुड्यस्यैव परितः पुष्पारामांश्चकार ह । मल्लिकाकरवीराब्जकुन्दमन्दारमालती ।। 30।। 

तुलसीचम्पकानां च वनान्येव चकार ह । खनित्वा तत्र कूपं तु वर्धयंस्तज्जलैर्वनम् ।। 31।।

पदकह्लारतुलसीचम्पकैर्दामकारिण मदर्चननिमित्तं ये प्रत्यहं श्रद्धयान्विताः ।।12।। 

लक्ष्म्या समेतस्तेषां हि गृहे वत्स्याम्यहं सुराः । 

तेषां येऽपि च साहाय्यं कुर्वते श्रद्धयान्विताः ।। १३ ।।

तेषामपि सदा सम्पत्प्रदोऽहं कमलासन ! (श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्यम्)

अर्थ: पृथ्वीतल पर जो कोई पुण्यवान मुझे वज्र-माणिक्य-टित स्वर्णाभूषण अर्पण करते हैं, उनको रूपवान, लावण्ययुक्त, विद्वान, धार्मिक तथा परम दीर्धायु पुत्र एवं अनन्त सम्पदाएं मेरी इच्छा से अनायास ही प्राप्त होती हैं। 

मेरी पूजा के कारण श्रद्धा से जो कोई पद्म कङ्कार, तुलसी, चंपा आदि की मालाएं प्रतिदिन बनाते हैं, उनके गृह में लक्ष्मी के साथ मैं सदा निवास करता हूं और उनकी जो सहायता करते हैं, उन्हें भी मैं बहुत धन-धान्य तथा संपत्ति प्रदान करता हूं।

तदानीं देवदेवेन स्वयमाज्ञापितो नृपः । तिन्त्रिणीं चम्पकं चोभौ पालयैतौ नगोत्तमौ ।। ४४ ।।

मम चास्थानिकी चि-चा लक्ष्म्याः स्थानं च चम्पकः । नमस्कायौं नृपैस्तौ हि ऋषिदेवनरैः सदा ।। (श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्यम्)

अर्थ: तब राजा को स्वयं भगवान ने आज्ञा दी कि, इमली तथा चम्पक नाम के दोनों वृक्ष श्रेष्ठों का पालन करो (न काटो)। इमली मेरा स्थान तथा चम्पक लक्ष्मीजी का स्थान है । ये सदा ऋषि, देवता, मनुष्य तथा राजाओं से वन्दनीय हैं।

चंपा की सुनहरी-पीली पंखुड़ियां आशा और स्थायी विश्वास का प्रतीक हैं, भगवान श्री कृष्ण, जो अखिल ब्रह्मांड के मार्गदर्शक और संचालक हैं, इस भावना को इस फूल के जुड़ाव से और बल मिलता है। 

किंवदंती है कि, चंपा के वृक्ष के नीचे ही राधा अपने प्रियतम श्री कृष्ण के दिव्य प्रेम को याद करती हैं। कृष्ण इन फूलों से अपने मुकुट को सजाया करते थे। वो वृंदावन के उन जंगलों में विहार किया करते थे, जहां चंपा की खुशबू उनकी दिव्य लीलाओं के लिए मंच तैयार करती थी और सभी को आध्यात्मिक उल्लास में डुबो देती थी।

3. कमल (Lotus, Kamal – Nelumbo nucifera)

कमल, अनुग्रह और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है, जो हिंदू दर्शन का केंद्र है। अंधकार से निकलकर सूर्य के प्रकाश में आना आत्मा की अज्ञानता से ज्ञानोदय की ओर यात्रा को दर्शाता है।

भगवद गीता कमल का सम्मान करती है, इसका उपयोग आशा, पवित्रता और वैराग्य को दर्शाने के लिए करती है। भगवान कृष्ण कमल के पत्ते के पानी से अछूते रहने के गुण पर जोर देते हैं, जो मनुष्य को बिना आसक्ति के कार्य करने का चिंतन देता है।

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।

लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।5.10।। (श्रीमद् भगवदगीता)

अर्थ: जो लोग समस्त आसक्ति को त्यागकर अपने कर्मों को भगवान को समर्पित कर देते हैं, वे पाप से उसी प्रकार अछूते रहते हैं, जैसे कमल का पत्ता जल से अछूता रहता है।

कमल का हिंदू त्रिदेवों से संबंध इसके महत्व को और भी बढ़ा देता है। भगवान विष्णु और ब्रह्मा को अक्सर कमल पर बैठे हुए दिखाया जाता है, और देवी लक्ष्मी, जो समृद्धि का प्रतीक हैं, इस पूजनीय फूल से जुड़ी हैं। 

इसी तरह, सूर्य देव, जो ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं, कमल से जुड़े हैं। जैसे ही भोर में इसकी पंखुड़ियां खुलती हैं, यह प्रकाश और ज्ञान के शाश्वत मिलन को दर्शाता है।

Lotus, Kamal - Nelumbo nucifera

ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है। ‘सृष्टि के रचयिता के प्रिय फूल’ में भी गहरी प्रतीकात्मकता है।

4. कनक चंपा (Kanak Champa, Karnikar – Pterospermum acerifolium)

अक्सर प्राचीन कला चित्रों और प्राचीन भित्तिचित्रों में कनक चंपा या कर्णिकार फूल की छवि देखने को मिलती है। इस फूल ने कवियों और ऋषियों दोनों की कल्पना को आकर्षित किया है।

इस खूबसूरत फूल का उल्लेख भगवान कृष्ण के साथ इसके जुड़ाव में है। लालित्य का प्रतीक, इसकी पंखुड़ियों की तुलना और कल्पना भगवान कृष्ण के कुंडल के रूप में की जाती है, जो भगवान कृष्ण की छवि को सुंदर ढंग से उभारती हैं।

बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कणिकारं

विभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्।

रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै-

र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः।। 

(भगवद गीता अध्याय 21 सर्ग 10 श्लोक 5)

अर्थ: श्रीकृष्ण ग्वालबालों के साथ वृन्दावन में प्रवेश कर रहे हैं, उन्होंने मस्तक पर मोर-पंख धारण किया हुआ है, कानों पर पीले-पीले कनेर के पुष्प, शरीर पर सुन्दर मनोहारी पीताम्बर शोभायमान हो रहा है तथा गले में सुन्दर सुगन्धित पुष्पों की वैजयन्तीमाला धारण किये हैं।

रंगमंच पर अभिनय करनेवाले नटों से भी सुन्दर और मोहक वेष धारण किये हैं श्यामसुन्दर बांसुरी को अपने अधरों पर रख कर उसमें अधरामृत फूंक रहे हैं। ग्वालबाल उनके पीछे-पीछे लोकपावन करने वाली कीर्ति का गायन करते हुए चल रहे हैं, और वृन्दावन आज श्यामसुन्दर के चरणों के कारण वैकुण्ठ से भी अधिक सुन्दर और पावन हो गया है।

5. सफेद कनक चंपा (White Kanak Champa)

भगवान कृष्ण के साथ कनक चंपा का जुड़ाव आध्यात्मिकता में सौंदर्य के व्यापक विषय का प्रतीक है। जब भगवान कृष्ण का जीवन वीरता, प्रेम और दिव्य लीलाओं की कहानियों से भरा हुआ था, तब प्रकृति के साथ उनका जुड़ाव हमेशा मौजूद था। 

इसमें, कनक चंपा भगवान और उनके भक्तों के बीच साझा किए गए शाश्वत बंधन का एक रूपक है – एक ऐसा बंधन जो पोषण करने वाला और सर्वव्यापी दोनों है। इस फूल को देखते ही वृंदावन में कृष्ण की लीलाएं, उनकी दिव्य धुनें और सभी के दिलों को लुभाने वाले मंत्रमुग्ध कर देने वाले आकर्षण की झलक मिलती है।

6. माधवी (Madhavi, Madhavi Lata, Hiptage – Helicopter Flower – Hiptage benghalensis)

वृंदावन के जंगलों में हरियाली और शांत वातावरण के साथ अक्सर माधवी लता की सजावट की कल्पना की जाती है। यह भगवान कृष्ण की दिव्य लीला की जीवंत छवि प्रस्तुत करता है, जहां हर पेड़, उपवन और फूल चुपचाप उनकी शाश्वत लीलाओं के साक्षी बने हुए थे।

माधवी लता की कोमल लताओं का उल्लेख अठारह महापुराणों में से एक विष्णु पुराण में भी मिलता है, जो इसके आध्यात्मिक अर्थों को और भी अधिक स्पष्ट करता है। इसके छंदों में, माधवी लता आध्यात्मिक लालसा, ईश्वर से जुड़ने की सहज मानवीय इच्छा और सृजन और विघटन के जटिल नृत्य का पर्याय बन जाती है।

हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान विष्णु का नाम माधव (मधु दैत्य का वध करने वाले) भी है। इस नाते उनकी सहधर्मिणी माता लक्ष्मी का नाम माधवी हुआ। माधवी लता सहारा पाकर चढ़ती हुई लता का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि विष्णु उस वृक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं जिससे वह सहारे के लिए लिपटी रहती है।

कालिदास ने अपने क्लासिक नाटक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ में भी माधवी लता का उल्लेख किया है। 

‘जब ऋषि कण्व को पता चला कि उनकी बेटी शकुंतला ने अपने पति के रूप में राजा दुष्यंत को पसंद कर लिया है तो, उन्होंने कहा कि, वह लंबे समय से एक सुंदर आम के पेड़ (दुष्यंत का जिक्र करते हुए) की तलाश कर रहे थे और अब वह अपनी माधवी लता (शकुंतला) से विवाह करेंगे।’

माधवी लता का दूसरा नाम, ‘अतिमुक्त’ है। जिसका अर्थ है ‘पूरी तरह से मुक्त’, हर आत्मा के अंतिम लक्ष्य की याद दिलाता है, जो जीवन की जटिलताओं से गुजरती है और हमेशा मुक्ति या ‘मोक्ष’ की तलाश करती है।

7. केवड़ा (Kewda, Ketaki – Pandanus odoratissimus)

अपनी मनमोहक खुशबू के लिए मशहूर केवड़ा हिंदू रीति-रिवाजों और प्राचीन किंवदंतियों, खास तौर पर भगवद गीता में गहराई से समाया हुआ है। इसका महत्व त्रिदेवों: भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा से इसके संबंध के कारण और भी बढ़ जाता है।

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:

अर्थ: “यदि कोई मुझे प्रेम और भक्ति के साथ एक पत्ता, एक फूल, एक फल, या जल अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूं”। (श्रीमद् भगवद गीता 9.26)

केवड़े के फूल का संबंध उस प्राचीन धार्मिक कथा से भी है। जिसमें भगवान शिव ने केवड़े के पुष्प को अपनी पूजा में वर्जित कर दिया था। इस कथा के अन्य पात्रों में भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी शामिल थे। इस कारण भी केतकी के फूल का धार्मिक महत्व बढ़ जाता है।

8. नील कमल (Neel Kamal, Blue Water Lily – Nymphaea nouchali)

गहरे जल से उठकर, नील कमल ऐसी शालीनता के साथ खिलता है जो अलौकिक और जमीनी दोनों है, जो सांसारिकता से आध्यात्मिक सर्वश्रेष्ठता तक की उत्थान यात्रा को समेटे हुए है। भगवद गीता में इसकी उपस्थिति शुद्धता, शांति और आध्यात्मिकता जैसे गुणों में इसकी सर्वोत्कृष्ट भूमिका को दर्शाती है।

भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला गान्धारनीलोत्पला

शल्यग्राहवती कृपेन वहनी कर्णेन वेलाकुला। 

अश्वत्थामविकर्णघोरमकरा दुर्योधनावर्त्तिनी

सोत्तीर्णा खलु पान्डवै रणनदी कैवर्तकः केशवः ॥6॥  (गीता ध्यानम् – भाग 2 – 67)

अर्थ: केशव के कर्णधार होने के कारण पाण्डवों ने उस युद्ध-नदी को पार किया, जिसके तट भीष्म और द्रोण थे, जिसका जल जयद्रथ था, जिसका नील कमल गांधार नरेश शकुनि था, जिसके मगरमच्छ शल्य थे, जिसकी धारा कृपाचार्य थी, जिसकी तरंग कर्ण था, जिसके भयानक मगरमच्छ विकर्ण और अश्वत्थामा थे, जिसका भंवर दुर्योधन था।

यही भावना भारत के सबसे महान महाकाव्यों में से एक रामायण में भी प्रतिध्वनित होती है, जहां नील कमल के चमकीले रंग के कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। रामायण में इसे पवित्रता और प्रतिबद्धता से जोड़ा जाता है। 

भगवान शिव से इसका संबंध इसके धार्मिक महत्व को और बढ़ाता है। इसके अलावा, नील कमल की प्रत्येक पंखुड़ी एक कहानी कहती है। 

चाहें वह लचीलेपन की कहानी हो, कीचड़ से बाहर निकलकर उसकी अशुद्धियों से अछूते रहने की कहानी हो, या आध्यात्मिक विकास की कहानी हो, आत्मज्ञान तक पहुंचने की कहानी हो, यह फूल हिंदू दर्शन में एक कालातीत आध्यात्मिक मार्गदर्शक है।

9. दुपहरिया / भंडूक (Bhandhook, Midday Flower – Pentapetes phoenicea)

दुपहरिया या भंडूक का फूल दोपहर के समय अपनी लाल पंखुड़ियों को खोलता है, जो जीवन की तीव्रता और दिव्य की उपस्थिति का प्रतीक है। यही जीवंत खिलना हमें क्षणिक लेकिन उत्साही क्षणों की याद दिलाता है, जो जोशपूर्ण जीवन जीने को प्रोत्साहित करता है।

भगवान कृष्ण की प्रेम और दिव्यता से भरी कहानियां, उन्हें भंडूक से जोड़ती हैं, जो शाश्वत प्रेम को रेखांकित करती हैं। इसी तरह, भगवान गणेश, जो ज्ञान और लचीलेपन का प्रतीक हैं, इस फूल से जुड़े हैं, जो आशा और ज्ञान के प्रतीक के रूप में इसकी भूमिका पर जोर देते हैं।

सूर्य देव के जीवन देने वाले सार को प्रतिबिंबित करते हुए, फूल का दोपहर में खिलना जीवन की ऊर्जा, उसके चक्रों और ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली दिव्य लय का प्रतीक है।

10. गेंदा (Genda, Marigold – Calendula)

जीवंत और ऊर्जावान गेंदा का फूल हिंदू उत्सवों का केंद्र बिंदु हैं, जो शुभता और खुशी का प्रतीक है। ये फूल अक्सर भगवान कृष्ण से जुड़े होते हैं और आत्मा की दिव्यता से जुड़ने की इच्छा को दर्शाते हैं।

शास्त्रों में कृष्ण को अर्पित किए जाने वाले गेंदे के फूलों का वर्णन है, जो प्रेम, समर्पण और अनुग्रह का प्रतीक हैं।

देवताभ्यः सुमनसो यो ददाति नरः शुचिः ।

तस्मात्सुमनसः प्रोक्ता यस्मात्तुष्यन्ति देवताः

अर्थ: “फूल मन को प्रसन्न करते हैं और समृद्धि प्रदान करते हैं। इसलिए, धार्मिक कर्म करने वाले पुरुषों ने उन्हें सुमन नाम दिया।”

(महाभारत पुस्तक 13, अनुशासन पर्व अध्याय 101, श्लोक 19-21)

हिंदू परंपराओं में, दिवाली जैसे त्योहारों के दौरान घर के प्रवेश द्वार के लिए मैरीगोल्ड से तोरण और सजावटी हैंगिंग बनाई जाती है। ये तोरण, सौंदर्य से परे, नकारात्मकता को दूर भगाते हैं और सकारात्मकता का स्वागत करते हैं।