हनुमान जी को बल, बुद्धि, विद्या प्रदान करने वाले देव के रूप में पूजा जाता है।
हनुमान जी की शक्तियाँ अपार हैं, वे अतुलित बलधाम हैं, वे अष्ट सिद्धि, नव निधि के दाता हैं, उनके नाम के जप मात्र से ही सभी संकट दूर हो जाते हैं, यहाँ तक कि उनका नाम लेने से भूत-प्रेत जैसे दोष भी भाग जाते हैं।
श्री हनुमान जी भगवान शिव के रुद्र अवतार हैं, जिन्होंने त्रेता युग में श्रीराम की सहायता करने के लिए जन्म लिया था, किंतु अजर-अमर होने के कारण वे द्वापर युग में भी जीवित रहे और आज भी जीवित हैं। ऐसा कहा जाता है कि आज के कलियुग में भी जहाँ कहीं रामकथा होती है, वहाँ हनुमान जी अवश्य उपस्थित होते हैं।
अब हनुमान जी ने त्रेता युग में श्रीराम के लिए कौन-कौन से कार्य किए, यह तो हम जानते ही हैं और अपने एक पुराने लेख में विस्तार से बता भी चुके हैं। आज के इस लेख में जानेंगे कि द्वापर युग में महाभारत के समय में हनुमान जी ने किस प्रकार श्रीकृष्ण का साथ दिया।
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श्रीकृष्ण बने अर्जुन के रथ के सारथी

जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, उससे पहले कौरव और पांडव दोनों को अपनी सेना बढ़ानी थी। इसीलिए कौरवों की ओर से दुर्योधन एवं पांडवों की ओर से अर्जुन, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पहुँचे सहायता माँगने के लिए।
श्रीकृष्ण ने यह कह दिया कि एक ओर मैं अकेला रहूँगा बिना शस्त्र धारण किए और दूसरी ओर मेरी सेना रहेगी, जिसे जो चुनना हो, चुन ले। इस पर दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की सेना माँग ली और अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने रथ का सारथी बनने को कहा।
श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को याद किया
जब युद्ध शुरू होने वाला था, तब श्रीकृष्ण ने हनुमान जी का आह्वान किया और उनसे कहा कि, “त्रेता युग में जिस प्रकार तुमने मेरे राम रूप की सेवा की थी, बुराई और अच्छाई के युद्ध में अच्छाई का साथ दिया था, उसी प्रकार मैं चाहता हूँ कि तुम इस महायुद्ध में भी अच्छाई का साथ दो और पांडवों की ओर रहो।”
तब हनुमान जी ने पूछा कि वे क्या कर सकते हैं। श्रीकृष्ण ने उन्हें आदेश दिया कि अर्जुन के रथ के ऊपर जो ध्वज है, उस ध्वज में जाकर वास करो, जिससे तुम्हारी शक्ति और सहयोग पांडवों के साथ रहे।
हनुमान जी के रथ पर बैठने से हुआ क्या? (Arjun ke Rath par Hanuman Ji ke baithne se kya hua?)

क्योंकि अर्जुन के रथ पर स्वयं हनुमान जी सवार थे, इसी कारण अर्जुन का रथ हवा की गति से चलता था और इतना शक्तिशाली था कि रथ को कोई नुक़सान नहीं हो सकता था।
अर्जुन के रथ की गति इतनी थी कि वह एक ही दिन में युद्धभूमि के एक छोर से दूसरे छोर तक जाकर वापस भी आ सकता था।
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कर्ण और अर्जुन के युद्ध में रथ की शक्ति का प्रमाण
एक बार अर्जुन और कर्ण के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। अर्जुन जब अपने तीरों से प्रहार करते तो कर्ण का रथ बहुत पीछे चला जाता था। उधर कर्ण जब अपने तीरों से प्रहार करते तो अर्जुन का रथ थोड़ा ही पीछे जाता।
इस प्रकार दोनों ने एक-दूसरे पर कई बार प्रहार करके रथों को पीछे ढकेला। किंतु इस बीच जब भी अर्जुन प्रहार करते, श्रीकृष्ण कुछ नहीं कहते। लेकिन जब भी कर्ण वार करते, श्रीकृष्ण कर्ण की प्रशंसा करने लगते।
इस पर एक बार अर्जुन ने झुंझलाकर श्रीकृष्ण से पूछा —
“हे मधुसूदन! मेरे बाणों के प्रहार पर तो आप चुप रहते हैं जबकि मेरे वार से कर्ण का रथ कितना अधिक पीछे चला जाता है। और जब उसके बाणों से मेरा रथ थोड़ा-सा ही पीछे जाता है तो आप उसकी प्रशंसा करने लगते हैं। ऐसा क्यों भगवन?”
तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह रहस्य बताया कि —
“हे अर्जुन! तुम्हारे रथ पर स्वयं हनुमान जी विराजमान हैं और यदि उनके होते हुए भी तुम्हारा रथ कर्ण के प्रहार से पीछे जा रहा है, तो सोचो यदि वे न होते तो कर्ण के वार से तुम्हारा रथ कहाँ चला जाता। और इसीलिए मैं कर्ण की वीरता का सम्मान कर रहा हूँ।”
युद्ध समाप्ति के बाद रथ का नाश
हनुमान जी ने अर्जुन के रथ की इतनी अधिक सुरक्षा की थी कि युद्ध समाप्त होने के बाद जब हनुमान जी रथ पर लगे ध्वज से नीचे उतरे, तो उनके नीचे उतरते ही वह रथ जल गया और नष्ट हो गया।
इस पर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों ने हनुमान जी का धन्यवाद किया।