गणेश चतुर्थी उत्सव का इंतजार हर सनातन हिंदू को बेसब्री से रहता है। गणपति बप्पा की पूजा कौन नहीं करना चाहता। गणेश चतुर्थी का त्योहार नई शुरुआत के देवता, बाधाओं को दूर करने वाले और साथ ही ज्ञान और बुद्धि के देवता के रूप में मनाया जाता है।
धन वैभव और समृद्धि कौन नहीं चाहता ऐसे में भगवान एकदन्त ही ऐसे देवता है जो जल्दी प्रसन्न होते हैं। भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करना भगवान गणपति ही कर सकते हैं। गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर हर कोई अपने घर पर भगवान विघ्नहर्ता की प्रतिमा को विराजमान करता है।
लेकिन क्या हम इस बार गणेश चतुर्थी पर ऐसा कुछ खास कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण को भी प्रतिमा से नुकसान ना पहुंचे। जी हां, ऐसा बिल्कुल किया जा सकता है।
इसलिए, इस आर्टिकल में हम आपको भगवान गणेश की ईको-फ्रेंडली मूर्ति बनाने के तरीकों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इस आर्टिकल को फॉलो करके आप भगवान गणपति की उपासना के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान दे सकेंगे।
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ईको-फ्रेंडली गणपति की मूर्ति कैसे बनाएं
पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण के लिए अगर आप ईको-फ्रेंडली मूर्ति की स्थापना करते हैं। तो, यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। ईको-फ्रेंडली प्रतिमाओं के निर्माण में सब्जियां, फल, सूखे मेवे, कागज, फूल,मिट्टी और अन्य सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।
गाय के गोबर से या फिर सादी मिट्टी बिना केमिकल वाली उससे भी हम घर पर प्रतिमाओं का निर्माण स्वयं कर सकते हैं। इन मूर्तियों का मूर्त रूप देने के लिए पहले हमें प्रतिमा निर्माण आदि का प्रशिक्षण लेना होगा या फिर घर पर प्रैक्टिस के माध्यम से भी प्रतिमा बना सकते हैं।
मूर्ति बनाने के लिए चिकनी मिट्टी लें और इसमें पानी को अच्छी तरह मिलाकर आटा गूंथ लें और फिर आटे को टुकड़ों में बांट लें। मूर्ति में गोल-गोल आकार का धड़ बनाएं और मूर्ति के शरीर और आधार को जोड़ने के लिए टूथपिक का इस्तेमाल करें।
मूर्ति के पैर, हाथ और सूंड बनाने के लिए चार लंबे रोल बनाएं। दो रोल लें, रोल के सिरे को बाहर की ओर चपटा करें और उन्हें मूर्ति के धड़ पर चिपका दें। एक रोल लें, इसे मूर्ति के चारों ओर पैरों के ठीक ऊपर लपेटें और एक भुजा को ऊपर की ओर चपटा करें ताकि यह आशीर्वाद की तरह दिखें।
अब मूर्ति की हथेली बनायें। मिट्टी का एक और टुकड़ा लें और इसे एक गेंद के आकार में रोल करें और इसे शरीर के ऊपर रखें। यह मूर्ति का सिर है। कान, आंख और लड्डू के लिए छोटे आकार के गोले बना लें, उसमें पानी की 3-4 बूंदों का उपयोग करें और चिपका दें।
दोनों कान को चिपकाएं और उन्हें चपटा करें। आंखों को लगाएं और हाथ पर लड्डू रखें। मूर्ति पर डिजाइन बनायें। धोती बनाने के लिए मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले औजारों का उपयोग करें। आप किसी एक कंधे पर स्टॉल भी रख सकते हैं। फाइनल टच दें इस प्रकार ईको-फ्रेंडली मूर्ति का निर्माण करें।
इन प्रतिमाओं को पानी में विसर्जित करने के बाद तैयार घोल को पौधों में डाला जा सकता है। जिससे पौधों को बिना नुकसान के पोषण मिलेगा।
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गणेश जी की प्रतिमा का ईको-फ्रेंडली होना क्यों जरूरी है?
पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण के लिए ईको-फ्रेंडली प्रतिमाओं का निर्माण करना बेहद जरूरी है। इनके विसर्जन में पानी प्रदूषित नहीं होता। साथ ही आसपास का वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। ईको-फ्रेंडली प्रतिमाएं देखने में भले ही उतनी ज्यादा सुंदर और भव्य न हों लेकिन इन प्रतिमा में जो प्रकृति प्रेम छिपा है उसका आनंद की अनुभूति व्यक्त नहीं की जा सकती।
लोगों को प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के महत्व को लेकर जागरूक करना ही इन प्रतिमाओं की स्थापना का उद्देश्य है। पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान दें, पर्यावरण के अनुकूल होने का मतलब है कि पर्यावरण के लिए हानिकारक न होने वाले तरीके से जीवन जीना।
इस बार ईको-फ्रेंडली प्रतिमा की स्थापना का प्रण लें जिससे भगवान गणेश जी के प्रति सच्ची भक्ति प्रस्तुत कर सकें।