करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलाएं पूरे श्रद्धा और विश्वास से रखती है। इस दिन, महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस कठिन व्रत में सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक पानी भी नहीं पिया जाता है। महिलाएं अपने पति की सुरक्षित और लंबी उम्र की प्रार्थना करने के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, करवा चौथ कार्तिक महीने में पूर्णिमा के बाद चौथे दिन मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं करवा चौथ व्रत के दौरान सुनी जाने वाली कथा के बारे में? अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं करवा चौथ में पढ़ी जाने वाली कथा के बारे में…
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करवा चौथ व्रत की कथा
देवी करवा (Devi Karwa) अपने पति के साथ तुंगभद्र नदी (Tungbhadra) के पास रहती थीं। एक दिन की बात है जब देवी करवा के पति नदी में स्नान करने के लिए गए तो वहीं अचानक एक मगरमच्छ ने उनके पैर पकड़ लिए और नदी में खींचने लगा। मृत्यु को अपने इतने नजदीक देखकर करवा के पति ने करवा को जोर-जोर से पुकार लगाकर बुलाया। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंची और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगरमच्छ को देखा। करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लेकर उस मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया करवा के इस सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे में इस तरह बंधा की वह टस से मस नहीं हो पा रहा था। करवा के पति और उस मगरमच्छ के प्राण संकट में फंसे थे।
यह देखकर करवा ने यमराज को पुकारा और अपने पति को जीवन दान देने के लिए और उस मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए लिए कहा। यमराज ने तुरंत करवा को उत्तर दिया मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी इस मगरमच्छ की आयु शेष है और तुम्हारे पति की आयु पूर्ण हो चुकी है। क्रोधित हुई करवा ने यमराज से कहा अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं आपको श्राप दे दूंगी। सती के श्राप को याद कर यमराज भयभीत हो गए और उन्होंने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवन दान दे दिया। यही वजह है कि करवा चौथ के व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता जैसे आपने अपने पति को मृत्यु की सैया से वापस निकाल लिया था वैसे ही मेरे सुहाग की भी रक्षा करिएगा।
एक अन्य कथा इस प्रकार है
एक और प्रचलित कथा के अनुसार, एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहू ने और उसकी बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने का आग्रह किया। इस पर उनकी बहन ने कहा भाई अभी चांद नहीं निकला है चांद के निकलने पर ही उसे अर्घ्य देकर उसकी पूजा करके ही मैं आज भोजन करूंगी।
साहूकार के बेटे अपनी इकलौती बहन से बहुत ज्यादा प्यार करते थे। उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा सहन नहीं हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां पर लगे एक पेड़ पर चढ़कर उस पर आग जला दी और घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा देखो बहन चांद निकल आया अब तुम चांद को अर्घ्य देकर भजन करो। साहूकार की बेटी ने अपनी सभी भाभियों से कहा भाभी देखो चांद निकल आया तुम लोग भी चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लो। नंनद की बात सुनकर सभी भाभियों ने कहा बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई तुम्हें धोखे से एक पेड़ पर आग जलाकर उसकी रोशनी को चांद की तरह बता कर तुम्हें दिख रहे हैं।
साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों की बात अनसुनी कर दी और भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को देखकर भोजन कर लिया और इस तरह उसका करवा चौथ का व्रत भंग हो गया। इसके बाद साहूकार की बेटी का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया। साहूकार की लड़की को जब अपने किए हुए दोष के बारे में पता लगा तो उसे पश्चाताप हुआ। अपने किए हुए गलती की भगवान गणेश से क्षमा प्रार्थना करते हुए साहूकार की बेटी ने पूरे विधि विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत फिर से शुरू किया। उसने उपस्थित सभी लोगों को श्रद्धा अनुसार आदर किया और आशीर्वाद प्राप्त किया। इस तरह उस लड़की की श्रद्धा भक्ति को देख भगवान प्रसन्न हुए और उसके पति को जीवन दान दिया। इसके साथ ही सभी तरह के कष्ट से मुक्त कर धन संपत्ति और वैभव का आशीर्वाद भी दिया।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार अर्जुन अपनी तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गए। तब द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय दिक्कतें आती रहती हैं उन्हें दूर करने के लिए अर्जुन तो यहां है नहीं। इसलिए कोई उपाय करना चाहिए, यह सोचकर द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्णा का ध्यान किया, जब भगवान वहां उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्ट के निवारण करने के लिए उनसे उपाय पूछा, इस पर श्री कृष्णा बोले एक बार माता पार्वती ने भी शिवजी से यही प्रश्न किया था, तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्ती में आने वाली छोटी-मोटी समस्या और बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। इतना कहते हुए श्री कृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई जो इस प्रकार है-
प्राचीन समय की बात है जब एक धर्म परायण ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री के बड़े होने पर उन्होंने पुत्री का विवाह कर दिया और कार्तिक की चतुर्थी को उसकी पुत्री ने करवा चौथ का व्रत रखा। उन सातों भाइयों की लाडली बहन को चंद्रोदय से पहले ही जोर से भूख सताने लगी और उसका फूलों सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों को अपनी बहन की यह पीड़ा अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कुछ उपाय सोचा, उन्होंने अपनी बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने का आग्रह किया पर बहन नहीं मानी तब भाइयों ने अपने बहन के प्यार में वहां पर उपस्थित एक पीपल के पेड़ की आड़ में प्रकाश करके कहा देखो बहन चंद्रोदय हो गया उठो।
अर्घ्य देकर भोजन करो, उनकी बहन उठी और चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई और यह खबर सुनते ही वह जोर जोर से रोने चिल्लाने लगी। उसके बाद वहां एक देवी प्रकट हुईं और उससे रोने का कारण पूछा। जब उस महिला ने इंद्राणी को सब कुछ बताया तब इंद्राणी ने कहा तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न और जल को ग्रहण किया। इसलिए तुम्हारे पति की मृत्यु हो गई। अब अगर तुम अपने मृत पति की सेवा करते हुए पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत पूरे विधि विधान के साथ करो और विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्र पूजन करो और चंद्र उदय होने के बाद ही उन्हें अर्घ्य देकर अन्न जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।
इंद्राणी की यह बात सुनकर इस ब्राह्मण की कन्या ने अगले 12 महीने तक चौथ सहित पूरी विधिवत करवा चौथ का व्रत किया। उसके इस व्रत के प्रभाव से उसका मृत पति जीवित हो गया। और इस तरह यह कथा कहकर श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा- यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधि पूर्वक करवा चौथ के इस व्रत को करो तो तुम्हारे भी सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य धन-धान्य में वृद्धि होगी। फिर द्रौपदी ने श्री कृष्ण की कथा अनुसार करवा चौथ के व्रत का पालन किया उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार हुई और पांडवों की जीत हुई।