हिंदू सनातन धर्म में सुहागिनों के लिए करवा चौथ (Karwa Chauth) का त्यौहार महत्वपूर्ण माना गया है। करवा चौथ के पर्व को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन, विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए पूरे दिन का उपवास या निर्जला व्रत (बिना भोजन और पानी के उपवास) रखती हैं और उनकी लंबी उम्र, सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं। महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखती हैं। महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, हाथों पर मेहंदी लगाती हैं। चंद्रदेव को जल अर्घ्य देने के बाद ही व्रत को पूरा करती है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यह पर्व पति-पत्नी के अटूट प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। इस व्रत की शुरुआत महिलाएं सुबह सरगी खाकर करती हैं और चांद की पूजा करने के बाद ही भोजन और जल ग्रहण करती हैं।
इस व्रत में महिलाएं बहुत ही बेसब्री से चांद के दीदार का इंतजार भी करती हैं। करवा चौथ के व्रत को पूरे विधि विधान से रखना चाहिए और इसके सभी नियमों का पालन भी करना चाहिए। अगर दिन भर व्रत करने के बाद स्थिति ऐसी बन जाए, कि चांद का दीदार न हो पाए तो आप क्या करेंगे? ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए आइए जानते हैं…
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चांद का दीदार न होने पर क्या करें?
करवा चौथ (Karwa Chauth) में चांद न दिखने की समस्या अक्सर देखी जाती है। कभी तो महिलाओं को चांद का दीदार समय से पूर्व हो जाता है या फिर अक्सर उन्हें इसके लिए लंबा इंतजार तक करना पड़ता है। चांद न दिखने की समस्या अक्सर खराब मौसम की वजह से होती हैं। अचानक बारिश हो जाने या आंधी तूफान के आ जाने पर भी ऐसी समस्या आ जाती है। ऐसे में अगर आपको चांद नजर नहीं आता है तो आप जिस दिशा में चंद्रोदय होता है, उस तरफ खड़े होकर चंद्र देव की पूजा अर्चना कर उन्हें जल चढ़ाकर अपने पूजा को पूर्ण कर सकते हैं। टेक्नोलॉजी के इस नए युग में आप चाहें तो अपने दोस्तों रिश्तेदारों और परिवार के किसी सदस्य को वीडियो कॉल करके उनके स्थान से चंद्र देव के दर्शन कर सकते हैं
इस तरह भी वर्त कर सकती हैं पूर्ण
करवा चौथ के दिन अगर आप व्रत रख रहे हैं और लंबे समय से चांद का इंतजार कर रहे हैं और अगर चांद नजर नहीं आता है, तो ऐसी स्थिति में आप भगवान शंकर के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा की भी पूजा कर सकती हैं और अपने व्रत को पूरा कर सकती हैं।
इसके अलावा आप चावल का चंद्रमा (Chand) बनाकर उसकी विधि विधान से पूजा कर सकती हैं। इसके लिए आपको एक छोटी चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर चांद निकलने की दिशा में उसे रख कर उस पर चावल से बने चंद्रमा की आकृति बनानी है। इसके बाद आप चंद्रमा का आह्वान कर और ओम चतुर्थ चंद्राय नमः मंत्र का जाप कर, अपने व्रत को पूरा कर सकती हैं।
करवा चौथ का व्रत टूटने पर क्या करें?
करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) रखना बहुत ही कठिन माना जाता है, क्योंकि इस उपवास के दौरान न तो कुछ खाने की इजाजत होती है और ना ही पानी पीने की. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत खुशी-खुशी रखती हैं, हालांकि कई बार न चाहते हुए भी अनजाने में यह व्रत खंडित भी हो सकता है। यदि किसी कारण से आपका करवा चौथ का व्रत खंडित हो जाए तो ऐसी स्थिति में बिना घबराए आप कुछ उपाय करके अपनी इस गलती को सुधार सकते हैं। तो चलिए जानते हैं उन नियमों के बारे में…
इन नियमों का करें पालन
अगर चांद निकलने से पहले ही आपका व्रत टूट जाता है यानी आपने गलती से पानी या कुछ खा लिया है तो ऐसे समय में सबसे पहले आपको स्नान करना है। स्नान करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनने हैं। फिर देवी करवा, भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश से अपनी गलती के लिए माफी मांगनी है। इसके बाद आप अपने व्रत को जारी रख सकते हैं।
इसके बाद शाम के समय आप पूरी विधि विधान से चंद्र देवता की उपासना करके उन्हें जल से अर्घ्य देकर चंद्र देव से अपनी गलती के लिए माफी मांग कर अपने व्रत को पूरा कर सकती है। अपने व्रत को पूरा करने से पहले रुद्राक्ष की माला से चंद्र मंत्र और शिव मंत्र का जाप अवश्य करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी दोष से बचने के लिए दान करना सबसे सरल उपाय माना गया है। यदि किसी भी वजह से आपका करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत टूट जाता है तो व्रत के दिन अपनी क्षमता के अनुसार 16 श्रृंगार के समान को दान में जरूर दें. शास्त्रों में बताया गया है कि अगर कोई महिला सच्चे मन से इस उपाय को करती है तो ऐसी स्थिति में उसके व्रत को खंडित नहीं माना जाता है और चंद्र दोष भी नहीं लगता है।
करवा चौथ की कहानी यहां पढ़ें
करवा चौथ त्यौहार से जुड़ी दो प्रसिद्ध कहानियां हैं, लेकिन पूजा के दौरान जो कहानी सबसे ज़्यादा सुनाई जाती है, वह वीरवती के बारे में है।
बहुत समय पहले, वेदशर्मा नाम का एक व्यक्ति और उसकी पत्नी लीलावती सात बेटों और एक बेटी के साथ सुखी जीवन जी रहे थे, बेटी का नाम वीरवती था, जिसे सबसे ज़्यादा लाड़-प्यार दिया जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार वीरवती अपने भाईयों के बीच काफी चहेती थी। भाइयों ने बहन वीरवती की शादी एक सज्जन पुरुष से की थी।
अपनी शादी के बाद, जब वीरवती ने अपना पहला करवा चौथ रखा, तो उसे बहुत कष्टों का सामना करना पड़ा। वह भोजन और पानी के बिना नहीं रह पा रही थी और बेहोश हो गई। उसकी हालत देखकर भाइयों ने अपनी बहन का व्रत तुड़वाने के लिए छल करने का फैसला किया।
एक भाई दीपक लेकर पेड़ पर चढ़ गया। जब वीरवती को होश आया, तो दूसरे भाइयों ने उसे बताया कि चांद निकल आया है और उसे चांद दिखाने के लिए छत पर ले आए, ताकि वह अपना व्रत तोड़ सके।
दीपक देखकर उसे विश्वास हो गया कि चांद सच में पेड़ के पीछे उग आया है और वीरवती ने अपना व्रत तोड़ दिया।
प्रचलित मान्यता के अनुसार, भोजन का तीसरा निवाला खाने के बाद, उसे उसके ससुराल वालों ने बुलाया और बताया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। वीरवती पूरी रात रोती रही जब तक कि उसके सामने एक देवी प्रकट नहीं हुई। देवी इंद्राणी ने उसे बताया कि उसने चंद्रमा को अर्घ (प्रसाद) दिए बिना व्रत तोड़ा और इस कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई।
इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत करके चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठा। उसकी भक्ति को देखकर मृत्यु के देवता यम को उसके पति को वापस जीवित करने के लिए मजबूर होना पड़ा।