Akshaya Navami: क्यों कहते हैं आंवला नवमी को अक्षय नवमी और धात्री नवमी? आइए जानते हैं

आंवला नवमी (Anvala Navmi) हिंदू पर्व में से एक प्रमुख पर्व है, जो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस पेड़ को अत्यधिक पूजनीय वृक्ष माना जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कुष्मांडा नवमी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि से लेकर पूर्णिमा की तिथि तक भगवान श्री विष्णु का निवास स्थान आंवला के वृक्ष पर रहता है। इसलिए आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने की मान्यता है। आंवला नवमी के दौरान, भक्त प्रार्थना करते हैं, अनुष्ठान करते हैं। साथ ही आंवला के पेड़ की परिक्रमा करते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन पूजा करने से अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।

आंवला नवमी का क्या है महत्व?

आंवला नवमी को जगधात्री पूजा(Jagadhatri)और कुष्मांडा (Kushmanda) नवमी और अक्षय नवमी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार आंवला नवमी के दिन कोई भी पुण्य कार्य किया जाए तो उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। इस दिन अगर आप दान, पूजा, अर्चना, भक्ति, सेवा भावना आदि करते हैं तो धार्मिक मान्यता के अनुसार उसका पुण्य कई जन्मों तक मिलता है। इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल अक्षय होता है। इसलिए इस तिथि को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन, भक्त मथुरा, वृंदावन भी जाते हैं और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए मथुरा गए थे। मान्यता के अनुसार, इस दिन कोई भी धार्मिक कार्य शुरू करने से अधिक लाभ मिलता है। इस दिन पश्चिम बंगाल में जगद्धात्री पूजा मनाई जाती है और ऐसा माना जाता है कि जो लोग पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं, उन्हें सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्मांडा नामक राक्षस का अंत किया था और इसलिए इस दिन को कुष्मांडा नवमी भी कहा जाता है।

आंवला नवमी पूजा विधि क्या है?

आंवला नवमी या अक्षय नवमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के पेड़ पर दूध, जल, अक्षत, सिंदूर और चंदन अर्पित कर आंवले के पेड़ पर मौली बांधकर भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करना चाहिए। इसके बाद धूप या दिए से आरती कर 11 बार वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन कद्दू और सोने का दान देना बेहद ही शुभ माना जाता है।

आंवला नवमी की कथा

एक समय की बात है जब भगवान विष्णु ने आंवला वृक्ष को अपना निवास स्थान बनाया था। एक दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी जी ने आंवला वृक्ष की पूजा की और भगवान विष्णु को प्रसन्न किया। तब से आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु और आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है।

राजा और आंवला वृक्ष

एक राजा था जो बहुत धर्म परायण था। उसने आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की और भगवान विष्णु से स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की। भगवान विष्णु ने राजा की पूजा स्वीकार की और उसे स्वास्थ और समृद्धि प्रदान की।

हिंदू पौराणिक कथाओं और आयुर्वेद में आंवला के पेड़ का बहुत अधिक महत्व है। इसे बेहद पवित्र माना जाता है। इस पेड़ में कई औषधीय गुण होते हैं। आंवला विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। इसके अनेक हेल्थ बेनिफिट्स हैं