Chhath Puja: जानिए कब से शुरू हुई छठ महापर्व मनाने की परंपरा? जानें इसका महत्व

दीपावली के खत्म होने के छह दिनों के बाद आने वाला यह त्यौहार जिसे छठ पूजा (Chath Puja) के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है, जो सूर्य देवता (Surya Dewta) को समर्पित है। यह त्योहार भारत के अलग-अलग राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन विशेष रूप से बिहार (Bihar), उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और झारखंड (Jharkhand) में इस त्यौहार का अलग उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा कार्तिक मास (Kartik Month) के शुक्ल पक्ष की छठ तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पूजा सूर्य देवता को समर्पित है, जो जीवन के लिए ऊर्जा और प्रकाश का स्रोत है। महिलाएं छठ पूजा में 36 घंटे का निर्जला व्रत कर अपने परिवार की सुख समृद्धि और संतुष्टि की कामना करती हैं। इसे सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। छठ पूजा प्राकृतिक संतुलन और पर्यावरण संरक्षण की कामना के लिए भी किया जाता है। इस दौरान भारतीय महिलाएं जीवन और उन्हें मिली सभी अच्छी चीजों के लिए अपना आभार प्रकट करती हैं और सूर्य देव से प्रार्थना करती हैं कि वे उन पर आशीर्वाद बनाए रखें।

छठ पूजा करने की विधि

छठ पूजा (Chath Puja) का पर्व 4 दिनों तक लगातार चलता है और महिलाएं 4 दिनों तक चलने वाले त्यौहार पर कठिन व्रत का पालन करती हैं। इसमें सबसे पहले छठ पूजा की तैयारी की जाती है। जिसमें घर की साफ सफाई और पूजा स्थल की साफ सफाई कर चौकी या आसन लगाया जाता है। इसके बाद सूर्य देवता की मूर्ति या चित्र लगाया जाता है। और फिर पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे फूल, फल, जल और मिठाई एकत्र किए जाते हैं, जिसके बाद छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह स्नान कर एक समय भोजन करती हैं। इसके बाद छठ पूजा का दूसरा दिन जिसे खरना कहा जाता है उसकी शुरुआत होती है। दूसरे दिन, महिलाएं पूरे दिन पानी की एक बूंद भी नहीं पीती हैं। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं छठी माता के लिए भोग बनती हैं। इस दिन का समापन दिन भर के उपवास के बाद गुड़ की खीर और रोटी की थाली के साथ होता है।

छठ पर्व का तीसरा दिन जिस दिन महिलाएं शाम के समय सूर्य देव को अर्घ देती हैं, जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। जिसमें अर्घ्य देने के साथ ही बांस, सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ के साथ और भी पूजा की सामग्री रखकर नदी तालाब या सरोवर के अंदर खड़े होकर पूजा करती हैं। और इसके बाद अंतिम दिन सूर्य देव को उषा अर्घ्य देकर अपने व्रत को पूरा करती है।

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किसकी की जाती है पूजा?

छठ पूजा में सूर्य देवता और उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा की पूजा की जाती है। साथ ही भगवान भास्कर, भगवान सूर्य नारायण, छठी मैया और गंगा मैया की पूजा की जाती है। छठ पूजा में इन देवी देवताओं की पूजा करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

ऐसे हुई थी छठ पूजा की शुरुआत

ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा भारत में वर्षों से मनाई जाती रही है। इस पूजा से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक लोकप्रिय कहानी कर्ण से जुड़ी है। कई लोगों का मानना ​​है कि उन्होंने ही छठ पूजा की शुरुआत की थी। ऐसा माना जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बनें। तभी से पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई। कर्ण अंग देश के राजा थे, जो आज बिहार के भागलपुर में है। यह भी माना जाता है कि पांडवों और द्रौपदी ने अपना खोया हुआ मान सम्मान और राजपाट को वापस पाने के लिए छठ किया था।

भगवान राम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध से पाप मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुद्गल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुद्गल ऋषि ने भगवान राम और देवी सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया, जिसके बाद मुद्गल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी थी। यहां पर ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य देव की उपासना मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चमी तट पर छठ व्रत किया था। ऐसी मान्यता है कि तभी से इस पर्व की शुरुआत हुई।