माँ दुर्गा की पूजा का महत्व
नवरात्रि हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय और स्त्री शक्ति की उपासना का प्रतीक है। यह महिषासुर पर माँ दुर्गा की विजय का स्मरण कराता है और शक्ति, भक्ति, एकता और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है।
माँ दुर्गा के नौ रूप
नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है:
- पहला दिन: माँ शैलपुत्री – पवित्रता और भक्ति की प्रतीक
- दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी – तपस्या और साधना की प्रतिमूर्ति
- तीसरा दिन: माँ चंद्रघंटा – वीरता और शांति की देवी
- चौथा दिन: माँ कुष्मांडा – ब्रह्मांड की रचयिता
- पाँचवाँ दिन: माँ स्कंदमाता – पालन-पोषण और मातृत्व की प्रतीक
- छठा दिन: माँ कात्यायनी – शक्ति और साहस की देवी
- सातवाँ दिन: माँ कालरात्रि – अंधकार का नाश करने वाली
- आठवाँ दिन: माँ महागौरी – शांति और पवित्रता की प्रतीक
- नौवाँ दिन: माँ सिद्धिदात्री – सिद्धि और अलौकिक शक्तियों की दाता
पूजा के चरण
पूजा मुख्यतः 4 चरणों में संपन्न की जाती है:
चरण 1: पूजा स्थल की स्थापना
- स्वच्छता और शुद्धि: स्नान करें, स्वच्छ पारंपरिक वस्त्र पहनें और पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कें।
- आसन और मूर्ति स्थापना: लाल कपड़ा बिछाकर फूल और अक्षत से सजाएँ। माँ दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर रखें और पास में अखंड दीपक रखें।
- कलश स्थापना: चावल को अष्टकोण आकार में फैलाएँ और उसके केंद्र में जल व गंगाजल से भरा कलश रखें। इसमें सिक्का, हल्दी, सुपारी, फूल डालें और आम के पत्तों से ढक दें। मौली से लिपटा नारियल कलश के ऊपर रखें। यह माँ दुर्गा का प्रतीक माना जाता है।
चरण 2: पूजा आरंभ
- गणपति आवाहन: “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र से भगवान गणेश का आह्वान करें।
- आचमन: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र के साथ तीन बार गंगाजल ग्रहण कर शुद्धि करें।
- तिलक और संकल्प: परिवार सहित तिलक करें, मौली बाँधें, दीपक जलाएँ और माँ दुर्गा की पूजा का संकल्प लें।
- अर्पण: रोली, चंदन, अक्षत, जनेऊ, इत्र, फूल, फल और प्रसाद अर्पित करें। विवाहित महिलाएँ सिंदूर व श्रृंगार सामग्री चढ़ा सकती हैं।
- जौ बोना: मिट्टी के पात्र में जौ के बीज बोएँ और हल्की मिट्टी व पानी डालें। ये उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक हैं।
चरण 3: दुर्गा पाठ और आरती
- दुर्गा पाठ: पुष्प व अक्षत लेकर दुर्गा सप्तशती या उपलब्ध पाठ का पाठ करें। “ॐ दुर्गा देव्यै नमः” मंत्र से प्रारंभ और समाप्त करें।
- आरती: थाली में स्वस्तिक बनाकर दीपक रखें। “जय अम्बे गौरी” आरती करें और आशीर्वाद लेकर पूरे घर में दीपक घुमाएँ।
चरण 4: पूजा समापन और विसर्जन
- आशीर्वाद व क्षमा याचना: पुष्प व अक्षत अर्पित कर माँ दुर्गा से आशीर्वाद लें और त्रुटियों के लिए क्षमा माँगें।
- प्रसाद: नौ दिन के व्रत करने पर अंत में प्रसाद ग्रहण करें। यदि एक दिन की पूजा (अष्टमी/नवमी) हो तो उसी दिन प्रसाद लें।
- विसर्जन: अंतिम दिन माँ दुर्गा को अबीर अर्पित करें। जौ को चुन्नी से ढकें और पूरी स्थापना (कलश, जौ, अस्थायी मूर्ति) को श्रद्धापूर्वक जलाशय में विसर्जित करें।