पितृ पक्ष का महत्व, तिथि एवं समय

पितृ पक्ष हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। यह समय विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित होता है। पितृ पक्ष का प्रारंभ श्राद्ध कर्म के साथ होता है, जो पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाता है। यह माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पितृ (पूर्वज) पृथ्वी पर आते हैं और उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद से व्यक्ति को समृद्धि, शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

पितृ पक्ष का महत्व:

पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह समय हमारे पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने, उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने, और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का होता है। पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और तर्पण से पितरों को संतुष्टि की प्राप्ति होती है, और वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि यदि पितृ प्रसन्न होते हैं तो परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और समस्त दोषों का निवारण होता है।

श्राद्ध का अर्थ:

पितृ पक्ष के दिन एक पुत्र अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता हुआ
Credit: HarGharPuja

‘श्राद्ध’ शब्द संस्कृत के ‘श्रद्धा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है ‘श्रद्धा या सम्मान के साथ किया गया कार्य।’ श्राद्ध कर्म एक ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें श्रद्धा और भक्ति के साथ पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए भोजन, जल और अन्य आवश्यक वस्त्रों का अर्पण किया जाता है। यह कर्म इस विश्वास पर आधारित है कि पितरों की आत्मा अभी भी हमारे बीच उपस्थित रहती है और हमारे जीवन में उनके आशीर्वाद की आवश्यकता होती है। श्राद्ध के दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान दिया जाता है, जो पितरों की आत्मा तक पहुंचता है और उन्हें संतुष्ट करता है।

श्राद्ध – तिथियाँ और मुहूर्त:

पितृ पक्ष के दौरान, हर दिन किसी न किसी तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। प्रत्येक तिथि को विशेष पितरों को समर्पित किया गया है, और उसी दिन उनका श्राद्ध करना अधिक फलदायी माना जाता है। श्राद्ध के लिए दिन का समय महत्वपूर्ण होता है, और इसे कुशा (पवित्र घास) और तिल के साथ किया जाता है। श्राद्ध का समय दोपहर के बाद का माना जाता है, जिसे ‘कुतप काल’ कहा जाता है। इस समय में किया गया श्राद्ध विशेष फलदायी माना जाता है। 2024 में पितृ पक्ष 17 सितम्बर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे।

श्राद्ध के दौरान सबसे महत्वपूर्ण 3 तिथियाँ:

एक पुत्र पितृ पक्ष के दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता हुआ
Credit: HarGharPuja
  1. महालय अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या):
    यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है और इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती। इस दिन का श्राद्ध अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है और इसे पूरे पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
  2. अष्टमी तिथि (अष्टमी श्राद्ध):
    अष्टमी तिथि का श्राद्ध उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनका निधन बिना संतान पैदा किए हुए हो गया हो। इसे ‘मातृ नवमी’ भी कहा जाता है। इस दिन उनका श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  3. द्वादशी तिथि (द्वादशी श्राद्ध):
    इस दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हों। यह दिन ऐसे पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। द्वादशी तिथि का श्राद्ध करने से पितृ दोष की शांति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

पितृ पक्ष का पालन श्रद्धा, समर्पण और आदर के साथ करना चाहिए। इस दौरान व्यक्ति को सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए और पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।

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