प्रथम ज्योतिर्लिंग: सोमनाथ का पौराणिक कथा

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भारतवर्ष की भूमि सनातन संस्कृति और दिव्यता की साक्षात प्रतीक रही है। भारत भूमि पर ही अलग अलग स्थानों पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं जहाँ हर साल श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचकर भोलेनाथ के दर्शन प्राप्त करते हैं।
ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के तेजस्वी और चैतन्य रूपों का प्रतीक माना जाता है। इन सभी में सोमनाथ (Somnath Jyotirlinga) को प्रथम ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त है, जिसका उल्लेख शिवपुराण की कोटि रुद्र संहिता में भी मिलता है। आज हम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति, उसका पौराणिक महत्त्व और उससे जुड़ी अद्भुत कथा (Somnath Jyotirlinga Katha) पर प्रकाश डालेंगे।

ज्योतिर्लिंग क्या होता है?

‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहाँ स्थित है? (Somnath Mandir Kaha Hai)

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में, प्रभास पाटन नामक पवित्र तीर्थ स्थान पर स्थित है। यह स्थान अरब सागर के किनारे बसा है और न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने न सिर्फ भक्तजन गुजरात से आते हैं बल्कि भारत के कोने कोने से आते हैं।

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम एवं स्थान देखने के लिए हमारा ये लेख पढ़ें

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा (Somnath Jyotirlinga Katha)

सोमनाथ की कथा चंद्रदेव और दक्ष प्रजापति से जुड़ी हुई है। दक्ष प्रजापति जो कि भगवान ब्रह्मा के दाहिने हाथ के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे, उन्होंने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देव के साथ करा दिया। परन्तु चन्द्रमा की २६ रानियों को परशानी तब हुई जब उन्होंने देखा कि उनके पति उनकी बेहेन रोहिणी के साथ ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।

इस पक्षपात से आहत होकर अन्य कन्याएं अपने पिता दक्ष के पास लौट गईं। दक्ष ने चंद्रदेव को समझाने का प्रयास किया कि चंद्र देवआपकी उत्पत्ति उच्च कुल में हुई है, इस तरह से अपनी बाकि पत्नियों की उपेक्षा करना और मेरी पुत्री रोहिणी से अधिक प्रेम करना आपको शोभा नहीं देता अतः में आपसे विनती करता हूँ कि आप अपनी सभी पत्नियों के प्रति समान व्यवहार करें।
क्यूंकि दक्ष समस्त ब्रह्माण्ड के प्रजापति थे उन्हें लगा कि चंद्र देव उनकी बात मान जाएंगे परंतु चंद्रदेव ने अपनी आदत नहीं बदली।

जब दक्ष कि पुत्रियां वापिस शिकायत लेकर अपने पिता के पास गयीं तो दक्ष ने क्रोधित होकर चन्द्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया। दक्ष ने कहा कि जिस सौंदर्य और प्रकाश पर तुम्हें इतना गर्व है तुम्हारा वो तेज क्षीण हो जाएगा और तुम क्षीण होते-होते लुप्त हो जाओगे।

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Credit: Her Zindagi

जब ऐसा होना शुरू हुआ तो रात्रि के समय छाने लगा और असुरों की शक्तियां प्रबल होने लगीं और सभी देवता चिंतित हो उठे। उन्होंने ब्रह्मा जी से मार्गदर्शन माँगा। ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रभास तीर्थ जाकर भगवान शिव की महामृत्युंजय मंत्र से आराधना करने की सलाह दी।

इसके बाद चंद्रदेव ने और उनकी समस्त पत्नियों ने छह महीनों तक कठोर तप किया। उन्होंने मिट्टी का एक शिवलिंग बनाया, निरंतर उसका अभिषेक करना शुरू किया और 10 करोड़ बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। अंत में भगवान शिव चंद्र की भक्ति से प्रसन्न हुए और चंद्रदेव को वरदान दिया कि आप तेज़ छीन तो होगा किन्तु कुछ समय के बाद वो तेज़ वापिस आने लगेगा और इस प्रकार हर दिन आपका एक भाग प्रकाशमान रहेगा और दूसरा अंधकार में रहेगा। चन्द्रमा से जुडी यह वही घटना है जिससे पूर्णिमा और अमावस्या की उत्पत्ति हुई।

भगवान शिव ने स्वयं को उस शिवलिंग में अवतरित किया और वह स्थान सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga) कहलाया। पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान्‌ शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी। 

अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं। वे भगवान्‌ शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य स्वयमेव सफल हो जाते हैं।

सोमनाथ का बार-बार पुनर्निर्माण

सोमनाथ मंदिर केवल धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि यह भारतीय आस्था और आत्मबल का प्रतीक भी है। यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है।

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Credit: Wikipedia

इतिहास में इस पर 17 बार आक्रमण किए गए। महमूद गज़नी से लेकर अलाउद्दीन खिलजी, औरंगज़ेब तक कई आक्रांताओं ने इसे ध्वस्त किया, लेकिन प्रत्येक बार भारतीय जनमानस ने इसे पुनः स्थापित किया।

आखिरी बार भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से आज़ादी के बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान में यह मंदिर भारतीय सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।

सोमनाथ घूमने का सही समय (Somnath Ghumne ka Sahi Samay)

Somnath Mandir घूमने के लिए सितंबर से मार्च तक के महीने सबसे अच्छे हैं क्योंकि इस समय सर्दी का मौसम रहता है। हालाँकि पीक सीजन होने की वजह से इस समय यहाँ पर्यटक भी सबसे ज्यादा आते हैं और होटल भी बहुत मेहेंगे रहते हैं। अगर आप सोमनाथ में आने वाली भीड़ और पर्यटकों से बचना चाहते हैं, तो आप गर्मी और मानसून के मौसम में यहाँ घूमने का लुत्फ़ उठा सकते हैं। गर्मी और मानसून होने की वजह से इस समय आपको भीड़ भी कम ही मिलेगी और होटल भी सस्ते दामों में मिल जाते हैं।

किन्तु आप कभी भी जाएं, कोशिश करें कि सुबह में जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी आप दर्शन कर लें क्यूंकि सुबह ९-१० बजे के बाद आप जाएंगे तो आपको लाइन में लगना ही पड़ेगा और दर्शन में २ घंटे से ज्यादा भी लग सकते हैं।

Somnath Mandir के दर्शन का समय जानने के लिए और मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका क्या रहेगा, ये जानने के लिए हमारा ये लेख देखिए।