नवरात्रि पर्व जीवन में उमंग ,उत्साह और धर्म परायणता का संदेश देता है। हिंदू धर्म में यह पर्व जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। इस पर्व पर पूजा भक्ति और अनुष्ठान के जरिए आत्मा को पवित्र किया जाता है।
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते। समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते। जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।
अर्थ- मात्र अपनी हुंकार से धूम्रलोचन राक्षस को धूम्र (धुएं) के सामान भस्म करने वाली,युद्ध में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न अन्य रक्तबीजों का रक्त पीने वाली,शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों की बली से शिव और भूत- प्रेतों को तृप्त करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो,जय हो,जय हो।
आदि शक्ति की आराधना का त्योहार नवरात्रि आस्था और समर्पण का पाठ पढ़ाता है। जीवन की हर बाधा और कष्टों का निवारण मातारानी की शरण में आने से ही संभव है।
देवी दुर्गा जी ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया।
इस आर्टिकल में हम आपको शारदीय नवरात्रि के महत्व के बारे में बताएंगे। इसके अलावा, इस माह में पूजा अर्चना, भोजन करने और करवाने से मिलने वाले पुण्य लाभ के विषय में भी जानकारी देंगे।
Table of Contents
शारदीय नवरात्रि क्यों महत्वपूर्ण हैं?
चूंकि आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। मां दुर्गा स्वयं शक्ति स्वरूपा हैं और नवरात्रि में सभी भक्त आध्यात्मिक शक्ति, सुख-समृद्धि की कामना करने के लिए इनकी उपासना और विधिवत पूजा अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं।
वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि, किष्किंधा के पास ऋष्यमूक पर्वत पर लंका की चढ़ाई करने से पहले प्रभु राम ने माता दुर्गा की उपासना की थी। ब्रह्मा जी ने भगवान राम को देवी दुर्गा के स्वरूप, चंडी देवी की पूजा करने की सलाह दी और ब्रह्मा जी की सलाह पाकर भगवान राम ने प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक चंडी देवी की उपासना और पाठ किया था।
शारदीय नवरात्रि उत्सव की खास बातें
शरद ऋतु का आगमन
शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु के आगमन का उत्सव है। अश्विन मास में ही शारदीय नवरात्रि से त्योहार और उत्सवों का प्रारंभ होता है।
गरबा उत्सव
पर्व में देवी की उपासना के लिए भक्त रात्रि में गरबा उत्सव कर माता रानी की उपसाना करते हैं। पूरा देश इस समय नवरात्र के जश्न में डूब जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में लोग मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते हैं। साथ ही शक्ति के इन स्वरूपों का उत्सव भी मनाते हैं।
इस त्योहार से एक जुड़ी एक और चीज है, जो लोगों के मन को उत्साह और उमंग से भर देती है। दरअसल, नवरात्र का नाम सुनते ही सबसे पहले मन में गरबा और डांडिया का ख्याल आता है।
चामुण्डा और कात्यायिनी मां की विशेष पूजा का विधान
कात्यायनी शुभं दद्यात देवी दानवघातिनी
अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि में मां कात्यायिनी ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इस नवरात्रि परल सभी 9 देवियों के साथ ही माता कात्यायिनी की होती ती जाती है।
मां कात्यािनी ने ही महिषासुर का वध किया था इसलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।
घट और मूर्ति स्थापना
शारदीय नवरात्रि में घरों में कलश (घट) स्थापना करके व्रत पालन किया जाता है। कुछ तिथि जैसे सप्तमी , किसी के यहां अष्टमी तो किसी के यहां नवमी के दिन पारणा किया जाता है इसके बाद घट और मूर्ति का विसर्जन करते हैं।
नवरात्रि में व्रत और उपवास
नवरात्र में देवी पूजन करने का विधान है। व्रत-उपवास भी इसके ही अंतर्गत आता है। मान्यता है कि नवरात्र रखे जाने वाले यह व्रत हमारी आत्मा की शुद्धता के लिए होते हैं। एक साल में दो बार हम इन व्रत के दौरान अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं।
व्रत करने से मन,तन और आत्मा की शुद्धि मिलती है। व्रत पालन करने से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक सभी प्रकार से फायदा होता है। नवरात्र के व्रत से शरीर तो स्वस्थ रहता ही है मन भी शांत बना रहता है। इसके अलावा पर्व में व्रत रखना शरीर को भी लाभ पहुंचाता है।
हमारे शुद्ध एवं प्राकर्तिक धूपबत्तियाँ यहाँ से खरीदें।