ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा और महिमा

omkareshwar jyotirlinga

भारतवर्ष में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं और उनमें से भगवान शिव का चौथा ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश राज्य के खंडवा ज़िले में नर्मदा नदी के पावन तट पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग न केवल शिवभक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है, बल्कि इसकी पौराणिक कथा, आध्यात्मिक ऊर्जा और भौगोलिक विशेषता इसे और भी अद्वितीय बनाती है।

ज्योतिर्लिंग क्या होता है?

‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।

ओंकारेश्वर कहां स्थित है? (Omkareshwar Jyotirlinga Kaha Hai)

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Credit: Trip Advisor

ओंकारेश्वर एक द्वीप है जो कि नर्मदा नदी के बीच में स्थित है जिसकी आकृति स्वयं ‘ॐ’ (ओंकार) के आकार की मानी जाती है और यही कारण है कि इसे “ओंकारेश्वर” कहा जाता है। यह पावन स्थान इंदौर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर है और यहाँ सड़क, रेल और हवाई मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

शिवपुराण में वर्णित कथा (Omkareshwar Jyotirlinga Katha)

शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता के 18वें अध्याय में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है।

एक बार देवर्षि नारद तीनो लोकों में भ्रमण करते करते पृथिवी लोक पर विंध्याचल पर्वत पर पहुँचे। विंध्याचल ने नारद मुनि से अभिमानपूर्वक कहा, “मुझे तो सब कुछ प्राप्त है।”
नारद मुनि मुस्कराए, लेकिन उन्होंने कहा “तुम्हारे पास सब कुछ है, पर सुमेरु पर्वत तुमसे कहीं ऊँचा है, उसकी चोटी तो देवताओं के लोक तक जाती है।”

यह सुनकर विंध्याचल पर्वत अत्यंत उदास हो गया। उसे यह बोध हुआ कि ऊँचा होने से और महान होने से भौतिक संपन्नता से नहीं आती।

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Credit: Devotee Match Blog

विंध्याचल की तपस्या
विंध्याचल पर्वत ने सम्पन्नता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की पार्थिव लिंग से पूजा करने का संकल्प लिया। उसने छह महीने तक निरंतर शिव की उपासना की।
भगवान शिव उसके तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और कहा —

“मैं तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूं, वरदान मांगो।”

विंध्याचल ने बुद्धिमत्ता और स्वायत्तता का वरदान मांगा ताकि वह अपने विवेक से हर स्थिति को सुलझा सके।
भगवान शिव ने उसे यह वरदान प्रदान किया।

दो लिंगों की स्थापना: ओंकारेश्वर और अमलेश्वर
उसी समय, वहां कुछ ऋषि-मुनि और संत भी तप कर रहे थे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस धरती पर वास करें।

भगवान शिव ने उनकी बात मानकर अपना रूप दो भागों में विभाजित कर दिया:

प्रथम लिंग को “ओंकारेश्वर” कहा गया।

दूसरे लिंग को “अमलेश्वर” या “परमेश्वरलिंग” कहा गया।

इस प्रकार, ओंकारेश्वर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ दो ज्योतिर्लिंगों की मान्यता है — ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirlinga) और अमलेश्वर (Amaleshwar Jyotirlinga)।

यहां रात्रि में सोने आते हैं शिव-पार्वती

उज्जैन स्थिति महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की भस्म आरती की तरह ओंकारेश्वर मंदिर की शयन आरती विश्व प्रसिद्ध है । ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirlinga) को लेकर धार्मिक मान्यता है कि बाबा भोलेनाथ यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं । कहते हैं पृथ्वी पर ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज चौसर पांसे खेलते हैं रात्रि में शयन आरती के बाद यहां प्रतिदिन चौपड़ बिछाए जाते हैं और गर्भग्रह बंद कर दिया जाता है ।अगली सुबह ये पासें बिखरे हुए मिलते हैं. आश्चर्य की बात है कि जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है वहां हर दिन चौपड़ बिखरे पाए जाते हैं ।

ओंकारेश्वर की यात्रा का सर्वोत्तम समय

ओंकारेश्वर यात्रा हेतु अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस समय नर्मदा तट पर मौसम सुहावना होता है और भीड़ भी संतुलित रहती है।

विशेष अवसरों पर, जैसे: महाशिवरात्रि, श्रावण मास, नर्मदा जयंती

यहां लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं और ओंकारेश्वर के अद्भुत दिव्य दर्शन का लाभ प्राप्त करते हैं। अगर कोई भक्तजन ओंकारेश्वर क्षेत्र की तीर्थ यात्रा करता है तो उसे केवल Omkareshwar Jyotirlinga के दर्शन ही नहीं वहां बसे अन्य 24 अवतार के दर्शन भी करनी चाहिए जिनके नाम इस प्रकार है;

माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, गायत्री माता मंदिर, सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ, आड़े हनुमान, माता वैष्णोदेवी मंदिर, चाँद-सूरज दरवाजे, वीरखला, विष्णु मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, सेगाँव के गजानन महाराज का मंदिर, काशी विश्वनाथ, नरसिंह टेकरी, कुबेरेश्वर महादेव, चन्द्रमोलेश्वर महादेव के मंदिर भी दर्शनीय हैं।

आध्यात्मिक महत्व
ओंकारेश्वर वह स्थान है जहाँ “ॐ” की ध्वनि मानो नर्मदा की लहरों में गूंजती हो। यह स्थान न केवल शिवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की ऊर्जा और वातावरण ध्यान व साधना के लिए भी आदर्श है।