केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: नर-नारायण और पांडवों की भक्ति से जुड़ी पौराणिक कथा

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भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से अगर कोई ज्योतिर्लिंग सबसे ज्यादा भक्तों के बीच प्रसिद्ध है तो वो है केदारनाथ (Kedarnath Jyotirlinga)। यह वही ज्योतिर्लिंग है जहाँ साल 2013 में अलकनन्दा नदी में तेज़ बाढ़ आने की वजह से जान माल का बहुत नुकसान हुआ था। अभी कुछ समय पहले इस ज्योतिर्लिंग पर भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति का भी अनावरण किआ था। आइये इस ज्योतिर्लिंग से जुडी पौराणिक कथा (Kedarnath Jyotirlinga Katha) जानते हैं।

ज्योतिर्लिंग क्या होता है? (Jyotirlinga Kya Hota Hai)

‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई। आइए अब जानते हैं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा।

इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी दो कहानियाँ हैं।

पहला, जिसका उल्लेख महाभारत के अंत में मिलता है।

पांडव और केदारनाथ की कथा (Kedarnath Jyotirlinga Story 1)

महाभारत के युद्ध के समाप्त होने के पश्चात पांडवों ने अपने राज्य का कार्यभार अपने उत्तराधिकारियों को सौंप दिया और ये स्वयं मोक्ष की प्राप्ति हेतु हिमालय की और चल दिए। वे अपने पापों के प्रायश्चित और आत्मिक शुद्धि के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद लेना चाहते थे।

हिमालय के बीच जब पांडव केदारखंड पहुंचे तो उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे उन्हें दर्शन प्रदान करें लेकिन भगवान शिव ने उन्हें दर्शन नहीं दिए। पांडवों को लगा कि भोलनाथ उनसे रुष्ट हैं क्यूंकि वे महाभारत के युद्ध में हुए भारी नरसंहार के भागीदार रहे थे। भगवान शिव भी पांडवो की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए उनसे छिपकर केदारनाथ के पर्वतीय क्षेत्र में चले गए और उन्होंने एक बैल (नंदी) का रूप धारण कर लिया।

पांडवों ने शिव की खोज जारी रखी और अंततः भीम ने विशाल रूप धारण कर चारों दिशाओं में पहरा देना शुरू किया। एक स्थान पर उन्होंने एक विचित्र बैल को देखा, जो अन्य बैलों से अलग था। भीम ने संदेह होते ही उस बैल को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन बैल ज़ोर लगाकर भूमिगत हो गया।

भीम ने बैल की पीठ का ऊपरी भाग पकड़ लिया, और तभी भगवान शिव उसी स्थान पर प्रकट हुए और पांडवों को दर्शन दिए।

भगवान शिव ने उन्हें उनके पापों से मुक्त किया और कहा कि वे उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग रूप में सदा के लिए निवास करेंगे। यही स्थान आगे चलकर केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ। और यही कारण है कि केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में आपको शिवलिंग देखने को नहीं मिलता बल्कि एक नंदी का पीठ का हिस्सा दिखाई देता है।

इससे पहले हम चार और ज्योतिर्लिंगों की कथा बता चुके हैं, अगर आप जानना चाहते हैं कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई तो इस लिंक पर क्लिक करके हमारी वेबसाइट पर जाकर ज़रूर पढ़ें

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Credit: Pinterest

शिवपुराण की कथा (Kedarnath Jyotirlinga Katha 2)

दूसरी कथा का उल्लेख शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में किया गया है। इस कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म और धर्म की पत्नी मूर्ति के गर्भ से दो बच्चे नर और नारायण उत्पन्न हुए। नर और नारायण ही भगवान कृष्ण और अर्जुन के रूप में विष्णु के दो अवतार थे। भगवान कृष्ण ने स्वयं इसका उल्लेख भगवद गीता के चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में किया है।

नर और नारायण ने बद्रीकाश्रय में शिवलिंग के सामने कठोर तपस्या की। जब दोनों को तप करते हुए बड़ा समय हो गया तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और कहा कि वे वरदान मांगें।

नर और नारायण ने शिव से ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थायी निवास करने का अनुरोध किया, ताकि शिव की पूजा करने वाले सभी लोग अपने दुखों से मुक्त हो सकें। इसके बाद भगवान शिव हिमालय में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में विराजमान हो गए।

नर और नारायण ने बदरीवन में अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था।आज हम बदरीवन में बद्रीनाथ मंदिर भी देख सकते हैं और यहां नर और नारायण नामक दो पर्वत भी स्थित हैं।

क्योंकि भगवान शिव केदार तीर्थ में निवास करते थे, इसलिए उन्हें केदारेश्वर और केदारनाथ के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि जो लोग केदारनाथ की यात्रा करते हैं और इस प्रक्रिया में किसी तरह अपनी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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Credit: Amar Granth

केदारनाथ यात्रा (Kedarnath Dham Yatra)

केदारनाथ धाम (Kedarnath Jyotirlinga Yatra) की यात्रा उत्तराखंड की पवित्र छोटा चार धाम यात्रा के महत्वपूर्ण चार मंदिरों में से एक है। छोटा चार धाम यात्रा हर वर्ष आयोजित की जाती है। केदारनाथ यात्रा के अलावा अन्य मदिर बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री हैं। केदारनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए हर वर्ष मदिर के खुलने की तिथि तय की जाती है। मंदिर के खुलने की तिथि हिंदू पंचांग की गणना के बाद ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा तय की जाती है।

केदारनाथ मंदिर की उद्घाटन तिथि अक्षय तृतीया के शुभ दिन और महा शिवरात्रि पर हर साल घोषित की जाती है। और केदारनाथ मंदिर की समापन तिथि हर वर्ष नवंबर के आसपास दिवाली त्योहार के बाद भाई दूज के दिन होती है। इसके बाद मंदिर के द्वार शीत काल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।

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Credit: Char Dham Yatra

दर्शन का समय (Kedarnath Jyotirlinga Darshan Timings)

  • केदारनाथ मन्दिर दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 6:00 बजे खुलता है।
  • दोपहर तीन से पाँच बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
  • पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है।
  • पाँच मुख वाली भगवान शिव जी की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है।
  • रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है।
  • शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। यद्यपि केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, किन्तु यह सामान्यत: नवम्बर माह की 15 तारीख से पूर्व (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पूर्व) बन्द हो जाता है और छ: माह *बाद अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के बाद कपाट खुलता है।
  • ऐसी स्थिति में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को ‘उखीमठ’ में लाया जाता हैं। इसी प्रतिमा की पूजा यहाँ भी रावल जी करते हैं।