चार दिनों तक चलने वाले लोकपर्व छठ की शुरुआत 7 नवंबर, गुरुवार के दिन से हो रही है। छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से होती है। इस लोक पर्व में कई तरह के रीति रिवाज भी होते हैं, जिसके बिना यह उत्सव अधूरा माना जाता है और इन सभी रस्मों का अपना एक धार्मिक महत्व भी होता है, जिनमें से एक है कोसी भरना। तो आइए जानते हैं कि कोसी भरने का क्या महत्व है और कैसे भरा जाता है।
Table of Contents
कोसी भरने का महत्व
छठ पर्व की शुरुआत नहाए खाए से शुरू हो जाती है। इस वर्ष छठ की शुरुआत 7 नवंबर से हो रही है, जिसका समापन 9 नवंबर को छठ पूजा के दिन संध्या अर्घ्य देकर किया जाएगा। छठ पर्व पर कोसी भराई की परंपरा का अलग महत्व है। कोसी भरने का काम महिलाओं द्वारा किया जाता है। मान्यता है कि छठ पर्व में पूरे श्रद्धा से की गई पूजा अर्चना से श्रद्धालु के जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। साथ ही उनके संतान को भी दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। वहीं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति या किसी ऐसे रोग से मुक्ति या छुटकारा पाने के लिए कोसी भरने का संकल्प लिया जाता है और जब भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वह छठ पूजा के दौरान कोसी भरकर छठी मैया को धन्यवाद देते हैं।
कैसे भरते हैं कोसी?
अगर आप पहली बार छठ पूजा कर रहे हैं तो आपको बता दें कि कोसी बनाने के लिए सबसे पहले आपको छठ पूजा की टोकरी को एक जगह पर रखकर इसके चारों ओर पांच या सात गन्ने की मदद से एक छत्र बनाना है। ध्यान रहे कि गन्ने को खड़ा करने से पहले उसके ऊपरी हिस्से पर एक लाल कपड़े में ठेकुआ और फल आदि रखें। अब इसके अंदर मिट्टी से बने हुए एक हाथी को रखें और उसके ऊपर घड़ा रख दें। इसके बाद उस हाथी को सिंदूर लगाएं। फिर इस घड़े में ठेकुआ, फल, सुथनी, अदरक, मूली आदि रखें। इस दौरान कुछ लोग कोसी के अंदर 12 या फिर 24 दिए भी जलते हैं। इसके बाद महिलाएं पारंपरिक छठ के गीत गाती है। पूजा के अंत में कोसी में धूप रखकर हवन किया जाता है और छठी मैया से मनोकामना की पूर्ति के लिए कामना की जाती है।
कोसी भराई में क्यों रखते हैं 5 गन्ने?
कोसी भराई की रस्म में महिलाओं का योगदान पुरुषों से कहीं अधिक रहता है, लेकिन पुरुष भी कोसी की सेवा करते हैं जिन्हें कोसी सेवना कहा जाता है। जिस घर में कोसी पूजन होता है वहां रात भर उत्साह और खुशी का माहौल बना रहता है। शाम को अर्घ्य देने के बाद सुबह के अर्घ्य में घाट पर फिर से कोसी भराई की रस्म को किया जाता है और इस समय भी महिलाएं गीत गाकर मनोकामना पूरी होने की खुशी और आभार जताती है। वहीं, सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद को घाट पर विसर्जित कर गन्ने को लेकर वापस घर आ जाते हैं। माना जाता है कि कोसी भराई में रखे गए पांच गन्नों का अपना अलग महत्व है, जिन्हें पंच तत्व माना जाता है। यह पांच गन्ने भूमि, वायु, जल,अग्नि और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए कोसी भराई की रस्म में इन पांच गन्नों का महत्व और अधिक बन जाता है।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा का इतिहास प्राचीन भारतीय संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है। सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है, जो जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के स्रोत हैं। सूर्य की पूजा से न केवल सुख-शांति की प्राप्ति होती है। छठ पूजा भारतीय समाज की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इस पर्व को मनाने के दौरान, विभिन्न परंपराएं और रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। मुख्य रूप से, महिलाएं इस पर्व को बहुत उत्साह के साथ मनाती हैं। उपवास, अर्घ्य और विशेष पकवान इस पर्व का हिस्सा हैं। महिलाएं इस पर्व के दौरान स्वच्छता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखती हैं। वे नदी या तालाब के किनारे जाकर अर्घ्य देती हैं, जिससे जल के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त होता है। इस अवसर पर एकजुटता और सामूहिकता की भावना प्रबल होती है, क्योंकि समाज के लोग एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं