Dev Uthani Ekadashi: क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी? जानें सब कुछ

देवउठनी एकादशी का व्रत कार्तिक महीने में किया जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि को महीने की सबसे महत्वपूर्ण तिथियों में से एक माना जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त पर जगत करता भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने की मान्यता है। देवउठनी एकादशी कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहते है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को चातुर्मास का समापन होता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है। साथ ही उन्हें उनके प्रिय भोजन का भोग भी लगाया जाता है। साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। बता दें कि सभी एकादशी तिथियों में से देवउठनी एकादशी तिथि को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भक्त सच्ची श्रद्धा और मन से अगर भगवान विष्णु की उपासना करते हैं तो उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सुख समृद्धि का वास होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवउठनी एकादशी का पर्व क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो चलिए जानते हैं।

देवउठनी एकादशी व्रत का महत्व

हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जगत पालन करता भगवान विष्णु पूरे 4 महीने की योग निद्रा के बाद जागते हैं। इसलिए इस शुभ दिन को देव उठनी एकादशी पर्व के नाम से मनाया जाता है। इस दिन से सभी शुभ और मांगलिक कार्यों की भी शुरुआत होती है। इस दिन भक्त सच्चे मन और श्रद्धा से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही पूजा करने के बाद विशेष चीजों का दान भी करते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता यह भी है कि देवउठनी एकादशी व्रत को करने से मनुष्य को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। साथ ही साथ शुभ फलों की प्राप्ति भी होती है।

कब है देवउठनी एकादशी का मुहूर्त?

देवउठनी एकादशी को लेकर लोगों के मन में बार-बार यह सवाल आ रहा है कि इस वर्ष देवउठनी एकादशी 11 नवंबर को मनाई जाए या 12 नवंबर को, तो आज हम आपको बताते हैं कि हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की इस एकादशी की शुरुआत 11 नवंबर को शाम के 6:46 पर होने जा रही है। वहीं इसकी समाप्ति 12 नवंबर को शाम के 4:30 पर होगी। इस बार 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी है। वहीं इसके ठीक अगले दिन तुलसी विवाह का पर्व भी मनाया जाएगा।

देवउठनी एकादशी क्यों है खास?

देवउठनी एकादशी का अपना अलग महत्व है, क्योंकि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के योग निद्रा में जाते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। मानता है कि इन चार महीनों में हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। जैसे – शादी, गृह प्रवेश आदि। एकादशी के आते ही यह चातुर्मास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। देवउठनी एकादशी में भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है।

देवउठनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

देवउठनी एकादशी का व्रत रखने के लिए सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर जल्दी स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें। भगवान का पंचामृत से स्नान करवाएं। पीले फूलों की माला चढ़ाएं। हल्दी और चंदन का तिलक लगाकर पूजा में तुलसी के पत्ते भी चढ़ाएं। फिर व्रत को पूरा करने का संकल्प लें और पूरे दिन निर्जला व्रत रखें। शाम के समय जगत पालनकर्ता भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें। वहीं भगवान विष्णु जी की आरती कर उन्हें भोग लगाकर उनकी कथा सुनें और पूजा में हुई गलतियों की माफी मांगें और गरीबों की सहायता करें। अगले दिन शुभ मुहूर्त पर अपने व्रत को खोलें।

कब खोले अपना व्रत?

हिंदू समयानुसार देवउठनी एकादशी व्रत को खोलने का समय इस व्रत के अगले दिन यानी 13 नवंबर को है। ऐसे में देवउठनी एकादशी को खोलने का समय 13 नवंबर की सुबह 6:42 से लेकर 8:51 के बीच में हैस्वच्छता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखती हैं। वे नदी या तालाब के किनारे जाकर अर्घ्य देती हैं, जिससे जल के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त होता है। इस अवसर पर एकजुटता और सामूहिकता की भावना प्रबल होती है, क्योंकि समाज के लोग एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं