मासिक दुर्गाष्टमी हर महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन देवी दुर्गा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा अष्टमी के दिन मां की आराधना से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भक्तों के जीवन में आने वाले सभी तरह के कष्ट भी टल जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार दुर्गा अष्टमी को देवी दुर्गा की पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना करने से मां प्रसन्न होती है और भक्तों के सभी कष्टों को हर लेती हैं, तो चलिए जानते हैं कि इस माह दुर्गा अष्टमी कब है?
Table of Contents
नवंबर माह में कब है दुर्गाष्टमी?
वैसे तो सभी दुर्गा अष्टमी दिनों में से आश्विन माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी सबसे लोकप्रिय मानी जाती है इसे ‘महाअष्टमी’ या केवल ‘दुर्गा अष्टमी’ भी कहा जाता है। यह दुर्गा अष्टमी नवरात्रि के नौ दिनों के अंतिम पांच दिनों के दौरान आती है। पिछले महीने दुर्गा अष्टमी 11 अक्टूबर को थी, अब इस माह में दुर्गा अष्टमी का व्रत 9 नवंबर दिन शनिवार को रखा जाएगा।
दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, दुर्गा अष्टमी व्रत की शुरुआत 8 नवंबर की रात 11:56 से शुरू होगी। यह अगले दिन 9 नवंबर रात 10:45 तक होगी।
दुर्गाष्टमी के कई अन्य नाम
दुर्गाष्टमी के दिन देवी दुर्गा के हथियारों की पूजा की जाती है। इस वजह से इस पूजा को ‘अस्त्र पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को ‘विराट अष्टमी’ के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि इस दिन हथियारों और अन्य प्रकार के मार्शल आर्ट्स का प्रदर्शन भी किया जाता है। इस दिन हिंदू भक्त मां दुर्गा की पूजा कर उनके दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए कठोर व्रत का पालन भी करते हैं। दुर्गा अष्टमी का व्रत उत्तरी भारत और पश्चिमी भारत के क्षेत्र में बड़े ही श्रद्धा के साथ बनाया जाता है। वहीं, आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में दुर्गा अष्टमी को ‘बथुकंपा पडुंगा’ के रूप में मनाया जाता है।
दुर्गाष्टमी व्रत का महत्व
दुर्गा अष्टमी व्रत का हिंदू धर्म में खास महत्व है। संस्कृत भाषा में दुर्गा शब्द का अर्थ है ‘अपराजेय’ जो कभी भी किसी से भी ना हारे , और अष्टमी का अर्थ है ‘आठ दिन’। हिंदू मान्यता के अनुसार मां दुर्गा के उग्र और बेहद ही शक्तिशाली रूप जिन्हें ‘देवी भद्रकाली’ के रूप में जाना जाता है। उनका इस दिन अवतरण हुआ था। वहीं, दुर्गा अष्टमी का दिन ‘महिषासुर’ नामक राक्षस पर मां दुर्गा की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरे श्रद्धा और सच्चे मन से दुर्गा अष्टमी के व्रत का पालन करता है, उसके जीवन में उसे खुशियां और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
दुर्गाष्टमी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता अनुसार प्राचीन समय में असुर वश में महिषासुर नामक असुर का जन्म हुआ, जिसके अंदर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थी। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करना शुरू कर दिया। महिषासुर की कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा। ऐसे में महिषासुर जिसकी बचपन से ही अमर होने की चाहत थी, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया।
लेकिन ब्रह्मा जी ने महिषासुर के अमरता के वरदान की बात टालते हुए उसे यह कहा कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है। इसलिए अमरता जैसी किसी भी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। ब्रह्मा जी की यह बात सुनकर महिषासुर ने तुरंत उनसे एक दूसरा वरदान मांगने की इच्छा जताई और कहा कि ठीक है प्रभु यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो। इसके अलावा कोई अन्य दैत्य मानव देवता या कोई भी मुझे मार न पाए।
जिसके बाद ब्रह्मा जी ने महिषासुर को तथास्तु कहकर दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर महिषासुर अपने अहंकार में अंधा हो गया, जिसके बाद उसने अपने अन्याय का कहर शुरू कर दिया। मौत के भय से मुक्त होकर उसने अपनी सेना के साथ धरती लोक पर प्रहार कर दिया। जिससे धरती पर चारों तरफ तबाही मच गई। वहीं महिषासुर इतना अधिक शक्तिशाली था कि उसके आगे सभी जीव जंतु और प्राणियों को नतमस्तक होना ही पड़ा। जब पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर इंद्रलोक पर भी आक्रमण करने निकल पड़ा, और इंद्रलोक पर आक्रमण कर इंद्रदेव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्जा कर लिया।
तब महिषासुर के आतंक से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु और महादेव के पास सहायता मांगने पहुंचे। इस पर भगवान विष्णु ने महिषासुर के अंत के लिए देवी शक्ति की सहायता की सलाह दी। इसके बाद सभी देवी देवताओं ने मिलकर आदि शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनते ही मां शक्ति वहां प्रकट हुईं और सभी की सहायता के लिए तैयार हो गईं।
आदिशक्ति का रूप इतना सौंदर्य था कि महिषासुर उनके प्रति आकर्षित होने लगा और उसने अपने दूत के जरिए मां के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा। अहंकारी महिषासुर की घटिया हरकत से देवी दुर्गा अत्यधिक क्रोधित हो गईं, जिसके बाद ही मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। वहीं अहंकारी महिषासुर ब्रह्मा जी से मिले वरदान में इतना अंधा हो चुका था कि उसने मां के युद्ध के प्रस्ताव को स्वीकार कर युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की पूरी सेना को मां दुर्गा ने समाप्त कर दिया। इस दौरान माना यह भी जाता है कि यह युद्ध पूरे 9 दिनों तक चला। इस बीच असुरों के राजा महिषासुर ने अनेकों रूप धारण कर मां दुर्गा को छलने की कोशिश की लेकिन उनकी सभी कोशिश नाकाम रही और देवी दुर्गा ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया और अंत में इस तरह मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया, और तभी से मान्यता है कि जिस दिन मां दुर्गा ने स्वर्ग लोक, पाताल लोक और धरती लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारंभ हुआ।