सनातन हिंदू धर्म में अनुष्ठान और पूजा अर्चना का सबसे अधिक महत्व माना जता है। अनुष्ठान और धार्मिक रीति-रिवाज भक्तों को भगवान से जोड़ने का एक माध्यम है। आज हम आपको कजरी तीज के बारे में बताने जा रहे हैं।
इस त्योहार पर महिलाएं सुहाग की सलामती, उन्नति और खुशहाली के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इस व्रत को अविवाहित कन्यायें भी सुयोग्य वर प्राप्ति हेतु रखती हैं। इस पर्व को महिलाएँ बड़े ही धूम- धाम से मनाती हैं।
कजरी तीज भाद्र पद की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाता है। हिंदू धर्म में कजरी तीज हरियाली तीज और हरितालिका तीज के समान ही महत्व रखती है। कजरी तीज को कजली तीज और सतूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है।
जानिए कब रखना है कजरी तीज का व्रत?
भाद्र पद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के दिन कजरी तीज का व्रत रखा जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 21 अगस्त की शाम 5 बजकर 9 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि की समाप्ति 22 अगस्त 2024 को दोपहर 01 बजकर 48 मिनट पर होगी।
कजरी तीज की शास्त्रों में वर्णित कथा
हिंदू धर्म में हर त्योहार को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। उसी तरह कजरी तीज की भी कई पौराणिक कथाएं हैं। उनमें से एक है भगवान शिव और मां पार्वती की कथा। पुराणों के अनुसार देवी पार्वती चाहती थीं कि भोलेनाथ उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार करें।
इसके लिए शंकर भगवान ने मां पार्वती को अपनी भक्ति साबित करने के लिए कहा, तब मां पार्वती ने 108 साल तक तपसाया करके अपनी भक्ति साबित की थी। मां पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मां को अपना लिया और जिस दिन उनका मिलन हुआ
उस दिन भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि थी। तब से उस दिन कजरी तीज के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है।
कजरी तीज पर उपयोग होने वाली पूजा सामग्री
कजरी तीज की पूजा के लिए शंकर-पार्वती की तस्वीर, नीम की डाली, तीज माता की तस्वीर, पूजा की चौकी, मिट्टी, दूध, जल, धूप, सुपारी, नारियल, अक्षत, कलश, दूर्वा, घी, चंदन, गुड़, शहद, पंचामृत, मिश्री, केले के पत्ते, बेलपत्र, कुमकुम, हल्दी, काजल, मेहंदी, रोली, धतूरा, जनेऊ, नाक की नथ, गाय का कच्चा दूध, अबीर, गुलाल, वस्त्र, नींबू, गेंहू, इत्र, फूल, दीपक, इस दिन चने की दाल, शक्कर, घी मिलाकर सत्तू जरुर बनाएं। इसके बिना पूजा अधूरी है।
16 श्रृंगार – कजरी तीज के लिए तैयार होना
तीज पर्व का सबसे जीवंत और सजीला हिस्सा श्रृंगार होता है। महिलाएँ, चाहे विवाहित हों या अविवाहित, नवविवाहित दुल्हनों की तरह सजने-संवरने का आनंद लेती हैं और खुद को सबसे अच्छे तरीके से तैयार करती हैं।
वस्त्र
तीज के अवसर पर, लड़कियाँ और महिलाएँ रंग-बिरंगे नए कपड़े पहनती हैं, जिनमें हरे रंग की प्रधानता होती है, जो सावन के महीने का प्रतीक है। साड़ी, सूट और लहंगे आमतौर पर पहने जाते हैं, जो एक महिला की वैवाहिक स्थिति का प्रतीक होते हैं।
आभूषण
एक बार तीज के लिए पोशाक चुनने के बाद, महिलाएँ बारीक और सुंदर आभूषणों का चयन करती हैं। नकली आभूषण लोकप्रिय होते हैं क्योंकि वे आसानी से उनकी पोशाक के साथ मेल खा सकते हैं, हालांकि कुछ महिलाएँ अपने पतियों से सुंदर आभूषण प्राप्त करती हैं, जो उनकी देखभाल और समर्पण का प्रतीक होता है।
चूड़ियाँ
चूड़ियाँ महिलाओं के लिए सदाबहार और सदैव लोकप्रिय आभूषण होती हैं। तीज के अवसर पर, दुकानों और स्टालों में विभिन्न आकर्षक काँच और धातु की चूड़ियाँ मिलती हैं। महिलाएँ अक्सर अपनी चूड़ियों का मेल अपने कपड़ों के साथ बैठाती हैं, ताकि त्योहार के लिए सब कुछ सही हो सके।
मेहंदी
तीज श्रृंगार में हाथों और पैरों पर सुंदर मेहंदी डिज़ाइन शामिल होते हैं। युवा लड़कियाँ और लड़के त्योहार से एक दिन पहले मेहंदी लगाते हैं, और कुछ महिलाएँ अपने पति का नाम मेहंदी डिज़ाइन में छिपाती हैं। गाँवों में, महिलाएँ अपने पैरों और हाथों पर अलता भी लगाती हैं।
ऐसे करें पूजा विधि..
कजरी तीज के दिन मां भवानी, श्री राधा-कृष्ण और शनिदेव का विधिवत पूजा करें, उनकी दिव्य कथाओं को सुनें।
इस दौरान
- “ॐ गौरीशंकराय नमः”
- “ॐ नमो भगवाते वसुदेवाय”
- “ॐ शनिदेवाय नमः”
आदि मंत्रों का जप करें।
इसी तरह विशिष्ट हविद्रव्य जैसे कि, पीपल, कदंब तथा बरगद से हवन करें। इस दिन हर घर में झूला डाला जाता है। सुहागिनें अपने पति के लिए और कुंवारी कन्याएं अच्छे पति की कामना के लिए इस व्रत को करती हैं। इस दिन गेहूं, जौ, चना और चावल के सत्तू में घी मिलाकर पकवान बनाते हैं।
- कजरी तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य जरूर दें…
- कजरी तीज को शाम के समय नीमड़ी माता की पूजा की जाती है।
- पूजा करने के साथ चांद को अर्घ्य देने का विधान है।
- चंद्रोदय होने पर एक लोटे में जल के साथ रोली, मोली, अक्षत डालकर अर्घ्य दें।
- इसके बाद भोग लगाएं। इसके बाद एक ही जगह खड़े होकर चार बार परिक्रमा कर लें।
इसके बाद व्रत खोलने की परंपरा है।