भगवान शिव के 19 अवतार

हमारे सनातन धर्म में त्रिदेवों में से एक भगवान शिव भी हैं, जिन्हें इस सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। जब भी सृष्टि अपने अंत के निकट पहुँचती है, भगवान शिव उसका संहार करते हैं, ताकि ब्रह्मा जी नई सृष्टि का पुनः सृजन कर सकें। भारतवर्ष में भगवान शिव को विभिन्न नामों और रूपों में पूजा जाता है। आज इस लेख के माध्यम से हम भगवान शिव के विविध अवतारों के बारे में जानेंगे। सबसे पहले, आइए समझते हैं कि अवतार का अर्थ क्या होता है और भगवान शिव यह अवतार क्यों लेते हैं।

अवतार का क्या अर्थ है?

‘अवतार’ शब्द का सामान्य अर्थ है “जन्म लेना,” लेकिन सनातन धर्म में इसका तात्पर्य भगवान का पृथ्वी पर अवतरित होना है। भगवान शिव कभी मानव रूप में तो कभी अन्य जीवों के रूप में अवतार लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब इस पृथ्वी पर अधर्म का विस्तार होता है, तब धर्म की पुनः स्थापना के लिए भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं।

अवतारों की चर्चा करते समय सबसे पहले भगवान विष्णु के अवतारों का उल्लेख होता है। भगवान विष्णु ने अब तक ९ अवतार लिए हैं और कलियुग में उनका दसवां अवतार होने वाला है। विष्णु जी के राम और कृष्ण अवतार के बारे में तो अधिकांश लोग जानते हैं, पर आज हम भगवान शिव के अवतारों की चर्चा करेंगे। हालांकि त्रिदेव—भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्मा—स्वयं किसी के अवतार नहीं हैं, क्योंकि हमारे सनातन धर्म के अनुसार, इन त्रिदेवों का कोई जन्म नहीं हुआ है; वे जन्म और मृत्यु के चक्र से परे हैं। तो चलिए, भगवान शिव के अवतारों को विस्तार से जानना शुरू करते हैं।

हिन्दू धर्म में एक प्रसिद्ध कहावत है: “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी,” जिसका अर्थ है कि भक्त जिस रूप में भगवान को देखना चाहते हैं, उन्हें भगवान उसी रूप में दिखाई देते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव के भी उनके भक्तों ने कई नाम और रूप निर्मित किए हैं। कुर्मा पुराण के अनुसार भगवान शिव के २८ अवतार हैं, लेकिन शिव पुराण में १९ अवतारों का विशेष उल्लेख मिलता है। आइए, उन १९ अवतारों को एक-एक करके समझने का प्रयास करें।

भगवान शिव के 19 अवतार

Courtesy: pixabay

पिपलाद अवतार

इस अवतार की पूजा से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। कथा के अनुसार, भगवान शिव ने ऋषि दधीचि और उनकी पत्नी के यहाँ पुत्र रूप में जन्म लिया, लेकिन शनि दोष के कारण उनके जन्म के समय ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। पिपलाद ने इस अन्याय का प्रतिशोध लेकर शनि देव को अपने वश में कर लिया। बाद में देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने शनि देव को मुक्त किया, और तभी से यह नियम बना कि शनि देव अपनी दृष्टि किसी भी १६ वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति पर नहीं डालेंगे।

नंदी अवतार 

यह भगवान शिव का अवतार ऋषि शिलाद के घर में जन्मा था। ऋषि ने भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की और भगवान से प्रार्थना की कि उन्हें ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सदैव जीवित रहे। यह पुत्र, नंदी, बाद में भगवान शिव के निवास, कैलाश, के द्वारपाल और भगवान के वाहन के रूप में नियुक्त हुआ।

वीरभद्र अवतार 

भगवान शिव कि पत्नी देवी सती द्वारा दक्ष यज्ञ में आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने सिर से एक बाल को खींचकर जमीन पर फेंक दिया। उस विशेष बाल से वीरभद्र और रुद्रकाली का जन्म हुआ जिसने कि यज्ञ तो तहस नहस कर दिया और दक्ष का सर भी धड़ से अलग कर दिया। 

शरभ अवतार 

      शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव का यह अवतार जिनका शरीर पक्षी और मुख सिंह का है का जन्म नरसिंह – भगवान विष्णु के मुनष्य -सिंह अवतार – के क्रोध को शांत करने के लिए हुआ था , जब उन्होंने राक्षस हिरण्यकशिपु का वध किया था। भगवान शिव के सभी अवतारों में, इस अवतार को सरबेश्वर (भगवान सरभ) या शरभेश्वरमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है।

      अश्वत्थामा 

      गुरु द्रोणाचार्य की कठोर तपस्या और उनकी समर्पण भावना से प्रभावित होकर, भगवान शिव अश्वत्थामा के रूप में उनके पुत्र के रूप में जन्मे, जो महाभारत महाकाव्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक सक्षम वीर थे। जन्म से ब्राह्मण होने के बाद भी वे एक छत्रिय के रूप में पले-बढे। उनके माथे पर एक मणि भी थी, जो उन्हें दिव्य शक्तियाँ प्रदान करती थी।

      हनुमान

      यह भगवान शिव का अवतार माता अंजनी और केसरी के यहाँ जन्मा था। रामायण महाकाव्य में, भगवान हनुमान ने माता सीता को खोजने और लंका के राजा रावण को हराने के अभियान में भगवान राम की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे और अपने भगवान द्वारा दिए गए वरदान के कारण अमर माने जाते हैं।

      courtesy Pixabay

      भैरव अवतार 

      भगवान शिव के 19 अवतारों में से एक, भैरव अवतार सबसे उग्र अवतारों में से एक है। यह अवतार तब अस्तित्व में आया जब भगवान ब्रह्मा ने अपनी श्रेष्ठता के संबंध में झूठ बोला। भगवान शिव के भैरव अवतार ने भगवान ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, क्यूंकि ब्रह्महत्या एक गंभीर अपराध था इस कारण से, भगवान शिव को ब्रह्मा का कपाल लेकर 12 वर्षों तक भटकना पड़ा।

      दुर्वासा अवतार 

      भगवान शिव ने ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र के रूप में दुर्वासा अवतार लेने का निर्णय लिया। दुर्वासा एक ऐसे ऋषि थे जिन्हें मनुष्यों और देवताओं दोनों से अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। वे अपने क्रोधी स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे और केवल दूर्वा घास का सेवन करते थे।

      गृहपति अवतार

      भगवान शिव एक महान भक्त के यहाँ जन्मे, जिनकी पत्नी शुचिस्मति भगवान शिव की समर्पित भक्त थीं और शिव के समान एक पुत्र को जन्म देने की अभिलाषा रखती थीं। वह बच्चा सभी वेदों में पारंगत था, फिर भी उसे ग्रहों की स्थिति के कारण युवा अवस्था में मरना बताया गया। जिस शिवलिंग की उन्होंने पूजा की, वह बाद में ‘अग्निश्वर लिंग’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव ने गृहपति को सभी दिशाओं का स्वामी बना दिया।

      यतिनाथ अवतार

      एक समय एक आदिवासी व्यक्ति, आहुक था। वह और उसकी पत्नी भगवान शिव के भक्त थे। एक दिन भगवान शिव ने यतिनाथ के रूप में उनके यहाँ आकर दर्शन दिए। उनके छोटे से झोपड़ी में भगवान शिव को अतिथि के रूप में ठहराना संभव नहीं था, इसलिए आहुक ने बाहर सोने का निर्णय लिया। दुर्भाग्यवश, वह बाहर एक जंगली जानवर द्वारा मारा गया। उसकी पत्नी ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया, लेकिन भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि वे अगले जीवन में नल और दमयंती के रूप में जन्म लेंगे और शिव उन्हें एक साथ लाएंगे।

      कृष्णा दर्शन अवतार

      राजा नभग एवं ऋषि अंगिरा के माध्यम से यज्ञ और धर्म के कार्यों की महत्वपूर्णता को समझाने के लिए भगवान शिव ने कृष्णा दर्शन अवतार लिआ था 

      भिक्षुवर्य अवतार

      यह भगवान शिव का अवतार उन सभी खतरों से मानवता को सुरक्षित रखने के लिए जाना जाता है जो उनके ऊपर आ सकते हैं। भगवान शिव ने भिक्षुक के रूप में तब अवतार लिया जब राजा सत्यार्थ युद्ध में मारे गए और उनकी पत्नी का एक मगरमच्छ का शिकार बनने के कारण उनका  नवजात शिशु जंगल में भूखा प्यासा रोने लगा। भगवान शिव ने उस बच्चे को बचाया और उसे एक गरीब महिला की देखरेख में सौंपा, जिसने उसे पालपोसकर बड़ा किया। बड़े होकर, उस बच्चे ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया।

      सुरेश्वर अवतार

      भगवान शिव और देवी पार्वती ऋषि व्याघ्रपाद के पुत्र उपमन्यु के सामने इंद्र और इंद्राणी के रूप में प्रकट हुए। उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए, दोनों ने उपमन्यु से  कहा कि वह शिव की पूजा करना बंद कर दे। उपमन्यु क्रोधित  हो गए और उन्होंने पूजा बंद करने से इनकार कर दिया। शिव और पार्वती उनकी पूर्ण समर्पण और भक्ति से संतुष्ट हो गए और शिव ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह और पार्वती हमेशा उनके आश्रम के आसपास रहेंगे। भगवान शिव को ‘सुरेश्वर’ नाम मिला क्योंकि उन्होंने इंद्र के रूप में प्रकट होकर अपनी उपस्थिति दर्ज की।

      किरातेश्वर अवतार

      भगवान शिव ने कीरत या शिकारी  के रूप में अवतार लिया जब अर्जुन एक असुर “मूक” का वध करने के लिए ध्यान कर रहे थे, जो वराह (सुअर) के रूप में छुपा हुआ था। सुअर को देखते ही अर्जुन और कीरत ने एक ही समय पर उसे बाण मारे और इस वजह से कीरत और अर्जुन के बीच यह विवाद शुरू हो गया कि किसने पहले सुअर को बाण मारा। अर्जुन ने कीरत  के रूप में आए हुए भगवान शिव को द्वंद्वयुद्ध के लिए चुनौती दी। भगवान शिव अर्जुन की वीरता से प्रसन्न हुए और उन्हें पशुपता अस्त्र प्रदान किया।

      सुनटनतर्क अवतार

      भगवान शिव ने इस अवतार को देवी पार्वती से विवाह के लिए उनके पिता हिमालय से उनका हाथ मांगने के लिए लिया। पार्वती के पिता हिमाचल से पार्वती का हाथ मांगने के लिए भगवान शिव ने एक नर्तक का रूप धारण किया। हाथ में डमरू पकड़े हुए, शिव ने नर्तक के रूप में हिमाचल के घर में प्रवेश किया और नृत्य प्रदर्शन करना शुरू किया और हिमालय राज को प्रस्सन करके उनकी पुत्री का हाथ विवाह के लिए माँगा 

      वृषभ अवतार

      भगवान विष्णु ने असुरो से अमृत को बचाने के लिए मोहिनी रूप धारण किआ था, असुर मोहिनी को अपने साथ पातळ लोक में ले गए अब वहां विष्णु जी का यह रूप असुरो को मरना भूलकर माया के प्रभाव से उनके पुत्रो को जन्म देने लगा, तब भगवान शिव ने बैल का रूप लेकर वृषभ अवतार लिआ और मोहिनी रूप से युद्ध किआ 

      Shiv Vrishabha

      ब्राह्मचारी अवतार

      ब्राह्मचारी अवतार में भगवान शिव ने देवी पार्वती की उन्हें पति के रूप में प्राप्त करने की दृढ़ता की परीक्षा ली। दक्ष के यज्ञ में अपनी बलि देने के बाद, जब सती हिमालय के घर में पुनर्जन्म लेकर आईं, तो उन्होंने भगवान शिव को अपना पति पाने के लिए कठोर तपस्या की। पार्वती की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए, शिव ने ब्राह्मचारी रूप धारण किय। 

      यक्षेश्वर अवतार

      समुद्र मंथन के दौरान असुरों को पराजित करने के बाद देवता गर्व से भर गए थे। इसीलिए, भगवान शिव ने उन्हें सिखाना चाहा कि गर्व देवताओं की विशेषता नहीं होनी चाहिए। भगवान शिव ने उन्हें एक घास की टहनी दी और उसे काटने को कहा। इसका उद्देश्य इस दिव्य घास के माध्यम से झूठे गर्व को समाप्त करना था। अंततः, कोई भी उस घास को काटने में सक्षम नहीं हुआ, और उनका गर्व समाप्त हो गया। इस रूप को भगवान शिव के यक्षेश्वर अवतार के नाम से जाना जाता है।

      अवधूत अवतार

      अवधूत अवतार भगवान शिव ने भगवान इंद्र के अहंकार को कुचलने के लिए लिया। देवताओं के राजा के रूप में, इंद्र में गर्व की भावना विकसित हो गई थी। एक बार, जब इंद्र और अन्य देवता कैलाश पर्वत के रास्ते से गुजर रहे थे, भगवान शिव ने उनका परीक्षण करने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने एक ऋषि का रूप धारण करके उनके मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। इंद्र ने ऋषि से हटने का अनुरोध किया, लेकिन भगवान शिव बिना हिले-डुले वहीं बैठे रहे । इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने वज्र का प्रयोग किया, लेकिन वह प्रहार ही नहीं कर पाए । इस घटना ने भगवान इंद्र का गर्व तोड़ दिया और इंद्र के अनुरोध पर भगवान शिव ने अपनी असली पहचान प्रकट की।

      इसके अलावा भगवान शिव के ११ रूद्र अवतारों के बारे में भी शिव पुराण में लिखा हुआ है, जिसकी जानकारी हमें इस श्लोक से मिलती है 

      एकादशैते रुद्रास्तु सुरभीतनया: स्मृता: ।

      देवकार्यार्थमुत्पन्नाश्शिवरूपास्सुखास्पदम् ।।

      अर्थ—ये एकादश रुद्र सुरभी के पुत्र कहलाते हैं । ये सुख के निवासस्थान हैं तथा देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए शिवरूप से उत्पन्न हुए हैं ।

       भगवान शिव के इन ११ रुद्रों के नाम इस प्रकार हैं:

      कपाली, पिंगल, भीम, विरूपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड, भव