हिंदू धर्म में सावन का महीना सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इसे त्योहारों का महीना भी कह सकते हैं। इस महीने के हर दिन का महत्व शास्त्रों वर्णित है। व्रत- पूजा एवं उपवास के लिए यह सावन का महीना सबसे श्रेष्ठ कहा जा सकता है।
श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली अमावस्या(सोमवती अमावस्या) के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से अनेक लाभ मिलते हैं। हरियाली अमावस्या की एक प्राचीन कथा धर्म ग्रथों में मिलती है जो इस पर्व के महत्व को दर्शाती है।
आज हम सावन में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से जुड़ी कथा के बारे में आप सब को बताने वाले हैं।
हरियाली अमावस्या का महत्व
हरियाली अमावस्या (सोमवती अमावस्या) के दिन पेड़ पौधों की पूजा का प्रावधान है मुख्य रूप से इस दिन पीपल और तुलसी के पौधों की पूजा की जाती है। क्योंकि हिंदू धर्म के अंतर्गत पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा विष्णु और भगवान महेश का वास होता है।
यदि आप इस दिन वृक्ष लगाते हैं तो यह बहुत फलदाई माना जाता है ऐसा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। यदि आप इस दिन व्रत रखते हैं तो आपके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। आप पर और आपके परिवार पर उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।
श्रावण अमावस्या के दिन चांद के दर्शन नहीं होते हैं जिससे यह पता चलता है की आज के दिन अमावस्या होगी। इस दिन का सभी शिव भक्त बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं क्योंकि शिव भक्तों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है। श्रावण अमावस्या के दिन गंगा स्नान, पितृ तर्पण, पितरों की पूजा, शिव पूजा, दान देना, गंगा पर दीपक प्रज्वलित करना होता है।
श्रावण अमावस्या की पूजा विधि
- श्रावण अमावस्या के दिन गंगा नदी में या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए इसलिए सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
- यदि गंगा नदी में स्नान करना संभव नहीं है तो, सुबह सूर्योदय से पहले उठकर पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिला कर स्नान करना चाहिए। यह भी लाभकारी माना जाता है।
- स्वच्छ सफ़ेद या पीले रंग के कपडे पहनें और पूजा स्थल में शुद्ध गाय के घी का दीपक जलाएं साथ ही सूर्य देव को जल अर्पित करना शुभ और अच्छा होता है। जल को सूर्य देव को अर्पित करें और तुलसी के पौधे में डालें।
- इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि- विधान के अनुसार पूजा करें। और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें। इसके पश्चात भगवान शिव को भांग, धतूरा, फल, फूल, बेलपत्र और दूध में गंगाजल मिलाकर अर्पित करें।
- इस दिन उपवास भी रखा जा सकता है और बिना अन्न खाएं उसे पूरा किया जा सकता है। इस पूरे दिन में कम से कम 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें
हरियाली अमावस्या की कथा
प्रचलित कथा के अनुसार, किसी समय एक राज्य में पराक्रमी राजा रहता था। उसका एक बेटा और बहू भी थी। एक दिन एक दिन बहू ने चोरी से मिठाई खा ली और कहा दिया कि मिठाई तो चूहा खा गया। उसी महल में एक चूहा भी रहता था। जब उसे ये बात पता चली तो उसने निश्चय किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा।
एक दिन राजा के कुछ मेहमान आए। राजा ने उन सभी को एक आलीशान कमरे में रुकवाया। चूहे ने बदला लेने के लिए बहू की साड़ी ले जाकर उस कमरे में रख दी। सुबह जब राजा ने ये देखा तो उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। राजा ने अपनी बहू को महल से निकाल दिया।
राजा की बहू जंगल में रहने लगी। वह रोज शाम में दिया जलाती और ज्वार उगाने का काम करती थी। एक दिन किसी काम से राजा का उस जंगल से गुजरना होगा। राजा की नजर उन दीयों पर पड़ी, जो बहुत चमकदार दिख रहे थे। राजमहल लौटकर राजा ने सैनिकों को उन दीपकों को लाने जंगल भेजा।
सैनिकों ने देखा कि दीपक आपस में बात कर रहे थे। एक शांत से दीपक से सभी ने कहा कि तुम अपनी कहानी बताओ। उस ने बताया कि वह रानी का दीपक है। उसने ये भी बताया कि रानी की मिठाई चोरी की वजह से चूहे ने रानी की साड़ी मेहमानों के कमरें में रखी थी। जिसकी सजा रानी को मिल रही है।
जब सैनिकों ने ये बात जाकर राजा को बताई तो उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ और उन्होंने बहू को फिर से महल में बुलवा लिया। इस तरह सभी दोबारा से खुशी-खुशी राजमहल में रहने लगे।