हिन्दू पंचांग के अनुसार हिन्दू नव वर्ष शुरू होने के बाद सबसे पहले आने वाली चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है। यूँ तो महीने में दो बार एकादशी आती है किन्तु कामदा एकादशी का व्रत करने से एवं Kamada Ekadashi Katha सुनने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस वर्ष कामदा एकादशी कब है ये हम अपने ही एक दूसरे लेख में बता चुके हैं। आइये इस लेख में जानते हैं Kamada Ekadashi Vrat Katha जिसे सुनने एवं पढ़ने से सभी पापों का नाश होता है।
कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Katha)

धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे भगवन्! मैं आपको बारम बार प्रणाम करता हूँ और चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महात्म्य जानना चाहता हूँ। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जैसा महात्म्य ऋषि वशिष्ठ ने बताया वैसा ही मैं तुमसे कहता हूँ।
पुराने समय में एक नगर था जिसका नाम भोगीपुर था उस नगर में पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उसी नगर में ललिता और ललित नाम के दो गन्धर्व भी निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नाम के एक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया इस पर राजा पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक ललित से कहा कि तू मेरे सामने गायन करते हुए अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है, मेरा अपमान कर रहा है अत: अबसे तू कच्चा माँस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग।
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया और वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरे पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस बन गए हैं। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी – हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए। एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।
वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।