मंगला गौरी महाव्रत : विवाह बाधा दूर करने और अखंड सौभाग्य पाने का रामबाण उपाय

इस आर्टिकल में हम आपको पूजा कर्म में पूजन सामग्री के महत्व के बारे में जानकारी देंगे। इस आर्टिकल को पढ़कर आपका मन और ज्यादा शान्ति और ज्ञान प्राप्त कर सकेगा।

हिंदू धर्म में विवाह तय करना आसान नहीं है। 

वैदिक विधि के अनुसार, विवाह करने से पूर्व जन्मपत्री का मिलान करना आवश्यक शर्त मानी जाती है। लेकिन कई बार कुंडली में ऐसे दोष होते हैं, जिन्हें दूर करने के लिए माता मंगला गौरी की विशेष कृपा की आवश्यकता पड़ती है।

सावन का महीना त्योहारों का महीना माना जाता है। हिंदू में भगवान भोलेनाथ जी और माता पार्वती जी की आराधना का महीना श्रावण माह है इस महीने में की गई पूजा-भक्ति विशेष फलदायी मानी जाती है।

आज हम आप सभी को श्रावण माह के मंगलवार को रखे जाने वाले मंगला गौरी व्रत के बारे में बताने जा रहे हैं। इस व्रत का शास्त्रों में सबसे अधिक महत्व माना गया है। वैदिक धर्म में मंगला गौरी व्रत की विशेष महिमा बताई गई है।

मंगला गौरी महाव्रत क्या है?

माता मंगला गौरी को माता पार्वती का ही रूप माना जाता है। ये माता का वो स्वरूप है, जिस रूप में उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। माता मंगला गौरी की पूजा का महत्व हिंदू धर्म ग्रंथों में ​अति प्राचीन काल से ही स्थापित है।

a painting of a man and woman sitting on a mountain

यहां तक कि, त्रेतायुग में माता सीता ने भगवान राम को पति रूप में वरण करने के लिए माता मंगला गौरी से प्रार्थना की थी। इसी प्रार्थना से प्रसन्न होकर माता मंगला गौरी ने उन्होंने मनोवांछित पति प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया था। 

आज भी हिंदू लड़कियां विवाह से पूर्व माता मंगला गौरी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर अवश्य जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि, विवाह योग्य कन्याओं की पुकार माता अति शीघ्र सुन लेती हैं और उन पर विशेष कृपा बरसाती हैं। 

यही कारण है कि, विवाहित महिलाएं भी अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए माता मंगला गौरी का व्रत और उनकी पूजा उपासना करती हैं। ऐसा करने से निश्चित रूप से उन्हें माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, ऐसा सनातन धर्म का अखंड विश्वास है।

मंगला गौरी महाव्रत की पौराणिक कथा:

एक नगर में धर्मपाल नाम का एक श्रेष्ठी रहता था। उसकी स्त्री बहुत ही सुंदर थी और उसके पास धन संपत्ति की भी कोई कमी नहीं थी। लेकिन, संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था। 

लेकिन, भगवान की कृपा के बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन, वो अल्पायु था। 16 वर्ष की आयु के बाद सर्प के काटने की उसकी मृत्यु हो जाएगी। संयोग से 16 वर्ष का पूरा होने से पहले ही उसकी शादी हो गई। 

जिस कन्या से उसका विवाह हुआ था। उस कन्या की माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। मां गौरी के व्रत के कारण उस महिला की कन्या को आशीर्वाद प्राप्त हुआ था कि वह कभी भी विधवा नहीं होगी। 

मान्यता है कि अपनी माता के इस आशीर्वाद से उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई और धर्मपाल के बेटे को 100 वर्ष की आयु प्राप्त हुई। इसलिए सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए मंगला गौरी व्रत करती हैं।

a building with a roof

मंगला गौरी व्रत कौन रख सकता है?

सुहागन महिलाएं और कुंवारी लड़कियां इस व्रत को रखती हैं। मंगला गौरी व्रत की शुरुआत इस साल 23 जुलाई 2024 दिन मंगलवार से होगी। पहला मंगला गौरी व्रत 23 जुलाई को रखा जाएगा। इस बार कुल 4 मंगला गौरी व्रत होंगे। इस दिन माता पार्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को मां गौरी को समर्पित यह व्रत मंगला गौरी व्रत के नाम से प्रसिद्ध है

मां मंगला गौरी की पूजन विधि

इस व्रत को रखने वाली व्रती नित्य कर्मों से निवृत्त होकर संकल्प करना चाहिए कि, ‘मैं संतान, सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत का अनुष्ठान कर रही हूं।’ 

तत्पश्चात आचमन एवं मार्जन कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर माता की प्रतिमा व चित्र के सामने उत्तराभिमुख बैठकर प्रसन्न भाव में एक आटे का दीपक बनाकर उसमें 16 बातियां जलानी जलकर मां गौरी का आराधना शुरू करनी चाहिए ।

16 लड्डू, 16 फल, 16 पान के पत्ते, 16 लौंग और इलायची के साथ सुहाग की सामग्री और मिठाई माता के सामने रखकर अष्ट गंध एवं चमेली की कलम से भोजपत्र पर लिखित मंगला गौरी यंत्र स्थापित कर विधिवत विनियोग, न्यास एवं ध्यान कर पंचोपचार से उस पर श्री मंगला गौरी का पूजन कर जाप करना चाहिए।

मां गौरी के मंत्र और श्लोक का करें पाठ

मंत्र:

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके। 

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्। 

नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्।।’

‘ह्रीं मंगले गौरि विवाहबाधां नाशय स्वाहा।’

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥