हिंदू धर्म का आधार हैं आदि शक्ति जिनकी, शरण में जाने से सारे संकट क्षण मात्र में विलय को प्राप्त हो जाते हैं और आदि शक्ति की आराधना करने का बहुत ही पावन पर्व है नवरात्रि। आदि शक्ति जगत जननी की कृपा जिस पर बरसी उसका जीवन धन्य हो गया। मातारानी की कृपा का भाजन बनना महा सौभाग्य का जीवन में आना है।
आदि शक्ति या जिसे आदि पराशक्ति के नाम से भी जाना जाता है, सनातन धर्म में सर्वोच्च देवी हैं। आदि पराशक्ति शब्द का अर्थ है “प्रथम सर्वोच्च ऊर्जा”। आदि शक्ति वह सब कुछ है जो वहां और हर जगह है।
वह महादेवी (महान देवी) हैं और वह अम्बिका (ब्रह्मांड की माता) हैं। वैदिक धर्म में नवरात्रि पर आदिशक्ति देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना का विधान शास्त्रों में वर्णित है। माता रानी का प्रत्येक रूप हिंदू धर्म में अत्यधिक पूजनीय माना गया है।
मां भवानी की पूजा के लिए यह 9 दिवस दिन बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मान्यता है कि इस समय मां दुर्गा पृथ्वी लोक पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं।
इन 9 दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरुपों का विधिवत पूजन करते हैं। प्रथम दिन मां शैलपुत्री, द्वितीय मां ब्रह्मचारिणी, चतुर्थ मां चंद्रघंटा, पंचम स्कंद माता, षष्टम मां कात्यायनी, सप्तम मां कालरात्रि, अष्टम मां महागौरी, नवम मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है।
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नवरात्रि पर अनुष्ठान का विधान एवं महत्व
नवरात्रि अर्थात माता रानी की पूजा भक्ति और आराधना के सुअवसर के पुण्य दिवस। ऐसा माना जाता है कि हम अपने दैनिक जीवन में जो समृद्धि प्राप्त करते हैं वह देवी की अभिव्यक्ति है और देवीय अनुष्ठान संपूर्ण सृष्टि के प्रति श्रद्धा दिखाने वाली विस्तारित चेतना की अभिव्यक्ति है। देवी की विधिवत पूजा 9 स्वरूपों की जाती है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।
आदि शक्ति के यह 9 देवी स्वरूप सकल सिद्धियों का मूल हैं। हर तरह की सफलता के लिए माता रानी की आराधना की जाती है। 9 देवियों के नामों के उच्चारण से हमारी चेतना जाग्रत होती है और मन केंद्रित होकर निर्भय और शांत होता है।
माता रानी की पूजा भक्ति से जब आप किसी भी अनुभव या गहन अनुभूति के शिखर पर पहुंच जाते हैं, तो आपको एक दिव्य चेतना की अनुभूति होती है। जब आप गहन अनुभूति में होते हैं, तब शक्ति के प्रवाह को अनुभव कर सकते हैं। उसी समय आप पाएंगे कि परम शक्ति के समीप है।
नवरात्रि अनुष्ठान पर रखें इन बातों का विशेष ध्यान
नवरात्रि अनुष्ठान नर-नारी सभी कर सकते हैं इसमें समय, स्थान एवं संख्या की नियमितता रखी जाती है। इसलिए उस सतर्कता और अनुशासन के कारण शक्ति भी अधिक उत्पन्न होती है। किसी भी कार्य में अनियमितता अगर बरती जाती है तो उस कार्य का सफल होना बहुत ही मुश्किल है।
ऐसे में नवरात्रि अनुष्ठान की हर विधि में तन की पवित्र के साथ मन शुद्धि विचार शुद्धि का होना भी बेहद जरूरी माना गया है। देवीय अनुष्ठान में 9 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से आवश्यक है। दूसरा अनिवार्य नियम है उपवास। जिनके लिए संभव हो वह 9 दिन तक फल,दूध पर रहें। साथ ही तीन और सामान्य नियमों का पालन जरूर करें।
- इन 9 दिनों तक कोमल शैया का त्याग करें
- अपनी शारीरिक सेवाएं ( अपने कपड़े धोना आदि अनेक कार्य) अपने हाथों से स्वयं करें दूसरों से अपने काम न करवायें
- हिंसक द्रव्यों का इन दिनों त्याग करें। (अंडा, मछली, मांस, शराब आदि)
इन 9 दिवस की साधना पूरी हो जाने पर दसवें दिन अनुष्ठान की पूर्णाहुति समझी जानी जाहिए। इन दिनों हवन, ब्रह्मदान, कन्या भोज के तीन उपचार पूरे अवश्य करना चाहिए।
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