निर्जला एकादशी व्रत : व्रत कथा, महत्व, पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त

Lord Vishnu With Mahalakshmi

हिंदू धर्म में व्रत-उपवास को बड़ा महत्व दिया जाता है। 

लेकिन, सभी व्रत में सर्वश्रेष्ठ एकादशी व्रत को माना जाता है। एकादशी का व्रत वैसे तो साल में 24 और महीने में 2 बार (शुक्ल और कृष्ण पक्ष) किया जाता है। लेकिन, जब ​अधिकमास या पुरुषोत्तम मास आता है तो, एकादशी की संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘निर्जला एकादशी’ कहते हैं। इस व्रत में पानी नहीं पिया जाता है इसीलिये, इस व्रत को ‘निर्जला एकादशी’ कहते हैं। इस व्रत को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि, निर्जला एकादशी व्रत क्या है? इसके साथ ही व्रत की विधि, नियम, कथा, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में जानकारी देंगे।

एकादशी के व्रत का महत्व क्या है?

एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और सामर्थ्य के साथ रखना चाहिए। व्रत पूरा होने के बाद अपनी श्रद्धानुसार दान भी करना चाहिए। जो इस नियम से एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। 

निर्जला एकादशी व्रत की कथा

Veda Vyas

वेद शिल्पी महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत की महिमा बताई। व्रत की महिमा को सुनकर महाबली भीमसेन ने महर्षि से निवेदन किया। 

भीम ने कहा, ‘हे पितामह! आपने हर 15 दिन में उपवास की बात कही है। लेकिन, मैं इतने उपवास नहीं रख सकता हूं। मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की अग्नि लगातार जलती रहती है। उसे शांत रखने के लिए मुझे प्रतिदिन भोजन की बड़ी खुराक लेनी पड़ती है। तो मुझे वो उपाय बता दीजिए, जिससे मैं अपनी भूख के कारण एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित न रहूं।

Bhimsen

महर्षि वेदव्यास ने भीम की समस्या का निदान करते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि, वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। 

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अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।

ये महिमा सुनकर वृकोदर भीमसेन ने भी इस एकादशी का विधिवत व्रत किया। लेकिन, सुबह होते-होते वह बेहोश हो गए तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद देकर उनकी बेहोशी दूर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। 

निर्जला एकादशी का फल

साल भर के एकादशी व्रत का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करता है, वह अक्षय पुण्य का भागी होता है।

निर्जला एकादशी पूजा विधि 

  1. सुबह जल्दी उठकर और देवी-देवता का ध्यान करें। 
  2. स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें, क्योंकि भगवान विष्णु को पीला रंग पसंद है। 
  3. मंदिर में चौकी पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें। 
  4. भगवान विष्णु को पीले रंग का फूल, फल, हल्दी, अक्षत, चंदन, खीर अर्पित करें
  5. मां लक्ष्मी को स्त्री सुहाग के श्रृंगार की चीजें चढ़ाएं। 
  6. दीपक जलाकर आरती करें। 
  7. विष्णु चालीसा के बाद व्रत कथा का पाठ करें। 
  8. मिठाई और केले का भोग लगाएं।
  9. अपने पूजन कर्म में भूलचूक के लिए माफी मांगें।
  10. श्रद्धानुसार लोगों में भोजन, वस्त्र और धन का दान करें।

निर्जला एकादशी व्रत रखने के नियम

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निर्जला एकादशी व्रत रखने के कुछ विशेष नियम हैं। सुबह स्नान करके सूर्य देव को जल चढ़ाएं। फिर पीले वस्त्र धारण करें और पीले फूल, पंचामृत और तुलसी के पत्तों से भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके बाद श्री हरि और देवी लक्ष्मी को समर्पित मंत्रों का जाप करें।

जरूरतमंद व्यक्ति को जल, भोजन, कपड़े, जूते या छाता दान करने का भी रिवाज है। आमतौर पर व्रत बिना पानी पिए रखा जाता है, लेकिन अगर जरूरी हो तो आप पानी पी सकते हैं और फल खा सकते हैं। अगली सुबह स्नान करके सूर्य को जल चढ़ाएं। इसके बाद गरीबों को भोजन, कपड़े और पानी दान करें। फिर नींबू पानी पीकर व्रत का समापन करें।

निर्जला एकादशी 2024 तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 17 जून 2024 को सुबह 04 बजकर 43 मिनट से होगी। वहीं इस तिथि का समापन 18 जून को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में निर्जला एकादशी व्रत 18 जून 2024 को किया जाएगा।