भगवान की पूजा से कटते हैं अनेक जन्मों के अशुभ कर्मों के फल

मनुष्य के जीवन में सुख-दुख का आना सिक्के के दो पहलू की तरह हैं।   कभी सुख तो कभी दुख जीवन में आते-जाते रहते हैं लेकिन कुछ उपायों को अपनाया जाए तो दुखों के क्षणों को सुखमय या आनंदमय बनाया जा सकता है। 

हमारे हिंदू धर्म में भगवान की पूजा एक ऐसा माध्यम है जिससे हम भगवान के नजदीक पहुंच सकते हैं अपने अशुभकर्मों को शुभकर्मों में बदल सकते हैं। मानसिक व आत्मिक शांति के लिए तथा सांसारिक सुखों की प्राप्ति व आध्यात्मिक उत्थान के लिए भगवान की पूजा की जाती है ।

पूजा करने से भगवान को फर्क पड़ता है अथवा नहीं, अलग बात है, किन्तु खुद को फर्क निश्चय ही पड़ता है। जब हम पूजा अथवा प्रार्थना करते हैं तो हमारा हृदय एवं ह्रदय में बैठा आत्म तत्व प्रभावित होता है और उसके अच्छे व रचनात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ते हैं। 

इसलिए, इस आर्टिकल में हम आपको नित्य पूजा के प्रकार और उनसे होने वाले फायदों के बारे में जानकारी देंगे। इन फायदों के बारे में जानकर आप भी अपने जीवन में सुख शान्ति के द्वार खोल सकते हैं।

नित्य पूजा करने का क्या महत्व है?

प्रार्थना अथवा सदग्रंथों में वर्णित मंत्रों में व्याप्त स्वरों के अच्छे व रचनात्मक प्रभाव हमारे हृदय व अन्य प्रमुख ग्रंथियों पर पड़ते हैं, जिसके प्रभाव से शरीर स्वस्थ, बुद्धि निर्मल और मन शांत होता है।  

पूजा, आराधना , अर्चना  भक्ति , प्रार्थना इत्यादि माध्यम से हम अपनी कर्मों की दिशा को बदल सकते हैं। हम अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा एवं आध्यात्मिक चेतना के नजदीक तब ही ले जा सकते हैं।

जब अपने इष्ट देवता की पूझा अर्छना पूरे भक्तिभाव से करते हैं। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि पूजा कभी निष्फल नहीं होती। ईश्वरीय गुणों की भक्ति और ध्यान ही हमें परमात्मा से मिलाता है। 

वैदिक धर्म में पूजा का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। हर जातक के लिए पूजा अनिवार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि 

‘पूर्जायते ह्यनेन इति पूजा।’  

शिवपुराण में कहा गया है कि पूजा अकाल मृत्यु को हरने वाली तथा काल और मृत्यु का भी नाश करने वाली है । यह शीघ्र ही स्त्री, पुत्र और धन-धान्य को प्रदान करने वाली है ।

इसलिये पृथ्वी आदि की बनी हुई देव प्रतिमाओं की पूजा इस भूतल पर अभीष्टदायक मानी गयी है; निश्चय ही इसमें पुरुषों का और स्त्रियों का भी अधिकार है।

सकाम पूजा लौकिक सुख की दाता होती है तो वहीं निष्काम पूजा से आध्यात्मिक प्रगति में सहाय होती है।

पूजा करने के विविध प्रकार हो सकते हैं। वैसे देखें तो पूजा दो तरह की होती है।

  • नित्य पूजा -जो हर दिन की जाती है -नित्य पूजा , सांध्य वंदन
  • नैमित्तिक पजा-जो अवसर विशेष पर की जाती है जैसे शिवारात्रि की पूजा, नवरात्र पूजा

शिवपुराण में कहा गया है कि भगवान गणेश,भगवान सूर्य, भगवान विष्णु, मां दुर्गा जी और भगवान शिवजी की प्रतिमा का एवं शिवजी के शिवलिंग का द्विज को सदा पूजन करना चाहिये । 

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इनकी पूजा सभी अभीष्ठ फलों की दाता है। वैदिक धर्म में वैसे तो सर्वोत्तम और उच्चतम स्तर की पूजा , मानसिक पूजा और ध्यान को कहा गया है। जब आपका मन ईश्वर में एकाकार हो जाये ,वो पूजा विधान उत्तम होता है।

पूजा-पाठ कितने प्रकार के होते हैं?

सांसारिक पूजा पाठ में तीन प्रकार से , देव पूजा का वर्णन शास्त्रों में आता है

  1. पंचोपचार 
  2. दशोपचार और षोडशोपचार

पंचोपचार पूजा विधान

वैदिक धर्मशास्त्रों में कई जगह विस्तार से पंचोपचार पूजा विधान का विस्तार से वर्णन आया है।  इस पूजन में पांच देवताओं का पूजन किया जाता है। श्री गणेश जी, भगवान शंकर , मां दर्गा जी(भवनी ,पार्वती) ,भगवान विष्णु, एवं भगवान सूर्यदेव ।

पंचोपचार पूजा का श्लोक…

गंधं पुष्पं तथा धूपं नैवेद्यमेव च

अखंडफलमासाद् कैवल्यं लभते ध्रुवम्।

  1. गंध- हल्दी चंदन व कुमकुम
  2. पत्र-पुष्प
  3. धूप-दीप
  4. आरती ( कर्पूर )
  5. नैवेद्य
  6. क्षमा प्रार्थना

पंचोपचार पद्धति की पांच मुद्राएं हैं इन मुद्राओं से देवी-देवता उस पूजन सामग्री को ग्रहण करते हैं। इन सामग्री को अर्पित करने के लए इके नाम के अनुसार ही गंध मुद्रा,पुष्प मुद्रा, धूप मुद्रा, दीप मुद्रा तथा नैवेद्य मुद्रा कहा जाता है।

Benefits Of Puja
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दशोपचार पूजा विधान

  1. पाद्य
  2. अर्घ्य 
  3. आचमन 
  4. स्नान
  5. वस्त्र 
  6. गंध 
  7. पुष्प
  8. धूप
  9. दीप
  10. नैवेद्य

क्षमा प्रार्थना

दशोपचार पूजन विधि में 10 चरणों के साथ भगवान की पूजन अर्चा भक्तिभाव से की जाती है, जिसमें पाद्य, अर्घ्य, आमचन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य शामिल होते हैं। 

यदि आपके घर पर मंदिर है और आपने विधि-विधान से देवता को घर पर स्थापित किया है तो दशोपचार विधि से प्रतिदिन  पूजा अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

षोडशोपचार पूजा विधान

षोडशोपचार पूजन विधि में देवी-देवताओं को 16 वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। लेकिन हर एक समर्पित की जाने वाली वस्तु के पहले मंत्रों का पाठ करना बहुत ही जरूरी माना जाता है।

  1. आवाहन
  2. आसन
  3. पाद्य (चरण धोना)
  4. अर्घ्य ( हाथ धुलवाना)
  5. आचमन ( मुख प्रक्षालन)
  6. स्नान
  7. वस्त्र
  8. यज्ञोपवीत
  9. गंध – चंदन कुमकुम
  10. पुष्प
  11. धूप
  12. दीप
  13. नैवेद्य
  14. नमस्कार
  15. प्रदक्षिणा,परिक्रमा
  16. मंत्र-पुष्पांजलि 

तत्पश्चात क्षमाप्रार्थना करनी चाहिए।

इस तरह से भक्तिभाव के साथ भगवान की पूजा अभीष्टफल की प्राप्ति में निमित्तभूत मानी जाती है। सांसारिक प्राणियों को भगवान की पूजा विधिवत तरीके से प्रतिदिन अवश्य़ करनी चाहिए।