Shani Jayanti: शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है। वह एक ऐसे देव हैं जो कि व्यक्ति के कर्म के अनुसार इसी भू लोक पर ही उसके कर्मों का फल प्रदान करते है। वह एक ऐसे देव हैं जो न तो किसी के साथ पक्षपात करते हैं और न ही किसी को अकारण कष्ट देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनि देव स्वयं अपने पिता सूर्य देव से रुष्ट हो गए थे?
आइये जानते हैं इसी कथा के बारे में।
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सूर्य देव की पहली पत्नी
शनि देव के जन्म की कथा हमें स्कन्द पुराण में देखने को मिलती है और इसी कथा से हमें मालूम पड़ता है कि क्यों शनि देव अपने ही पिता से नफरत करते थे।

कथा कुछ इस प्रकार है कि, सूर्य देव का विवाह देवताओं के प्रमुख शिल्पकार विश्कर्मा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ था। संज्ञा कुछ समय तक तो सूर्य देव के साथ ख़ुशी के साथ रहीं किन्तु कुछ समय बाद सूर्य देव के प्रकाश एवं तीव्र ऊष्मा या गर्मी के कारण उनका शरीर जलने लगा और उनसे वो ताप बर्दाश्त के बहार हो गई।
संज्ञा ने एक दिन सूर्य देव को अपनी परेशानी बताई और कहा कि स्वामी आप अपना ताप थोड़ा कम कर लें तो इस पर सूर्य देव ने कहा कि अगर वो ऐसा करेंगे तो भूलोक पर जीवन अस्त व्यस्त हो जाएगा। इस बात से परेशान होकर संज्ञा अपने पिता के यहाँ चली गयीं और शिकायत करने लगीं तो इसपर भी उनके पिता ने उनको यही समझाया कि सूर्य अपना प्रकाश कम नहीं कर सकते और यह भी समझाया इस प्रकार विवाह के बाद ससुराल से बिना पति की आज्ञा लिए मायके नहीं आया करते और उनके पिता ने संज्ञा को आदेश दिया कि वो तुरंत ही अपने ससुराल लौट जाएं।
सूर्य देव और छाया की कथा
पिता के कथन अनुसार संज्ञा ने कुछ और समय सूर्य देव बिताने का प्रयास किया किन्तु वो उसका ताप सहन नहीं कर पाई और उन्होंने सूर्य देव को छोड़ के जाने का फैसला किया।
संज्ञा ने जाने से पहले अपनी जैसी ही एक छवि बनाई जिसका कि नाम छाया था और उससे कहा कि में तो जा रही हूँ किन्तु तुम हमेश अमेरे पति का ध्यान रखना और ये राज़ भी कभी मत पता लगने देना कि तुम छाया हो। इतना कहकर संज्ञा तप करने चली गयीं और उनके स्थान पर छाया सूर्य देव के साथ निर्वाह करने लगी।
छाया और सूर्य देव के एक पुत्र का जन्म हुआ, किन्तु इस पुत्र को देखकर सूर्य देव तनिक भी प्रस्सन नहीं हुए। जहाँ एक तरफ सूर्य देव प्रकाश वान थे वही उनके पुत्र में तनिक भी तेज़ नहीं था अपितु वो वर्ण में काला था जिस कारण सूर्य देव को ये संशय होने लगा कि शनि शायद उनका पुत्र है ही नहीं और इसी कारण से सूर्य देव शनि देव और उनकी माँ छाया दोनों के प्रति हीन भाव रखने लगे।
जैसे जैसे शनि देव बड़े हो रहे थे वो ये भी समझते जा रहे थे कि उनके पिता उनसे और उनकी माता दोनों से प्रेम नहीं करते और यही कारण रहा कि शनि देव भी अपने पिता से नफरत करने लगे।
शनि देव के काले होने का कारण
शनि देव का वर्ण काला होने के दो कारण बताए जाते हैं;
पहला तो ये कि शनि देव एक वास्तविक स्त्री नहीं अपितु एक स्त्री के प्रतिबिम्ब की संतान थे। जिस प्रकार एक पुरुष या स्त्री का रंग कुछ भी हो सकता है किन्तु उसी व्यक्ति की धरती पर बानी हुई छाया का रंग हमेशा काला ही होगा।
एक दूसरा कारण ये है कि देवी छाया जो थीं वो भगवान शिव की भक्त थीं और जब उनके संतान होने वाली थी तब वो भगवान शिव का तप कर रही थीं। देवी छाया तप में इतना डूब गयीं कि वो खाना पीना सब भूल गई और इस प्रकार स्वयं उनका तेज कम होने लगा और उनकी तबियत भी बिगड़ गई। ऐसी तबियत में जब उनके पुत्र हुआ तो वह पुत्र भी ऐसा ही था जिसमें कोई तेज़ नहीं था जो कि श्याम वर्ण का था।
शनि देव का सूर्य के प्रकाश पर प्रभाव

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख आता है कि जब शनि देव के मन में यह क्रोध भर गया, तो उनके तीव्र दृष्टि प्रभाव ने सूर्य देव को कष्ट और कमजोरी देना प्रारंभ कर दिया। सूर्य देव के तेज में कमी आने लगी, उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। देवताओं ने इस स्थिति को समझा और इसे शनि की दृष्टि का परिणाम बताया।
सूर्य देव को जब यह ज्ञात हुआ कि शनि की उपेक्षा और अविश्वास के कारण ऐसा हुआ है, तब उन्हें अपने किए पर पश्चाताप हुआ। उन्होंने शनि से क्षमा मांगी और उन्हें अपने पुत्र के रूप में स्वीकार किया।
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