Nirjala Ekadashi Date, Timing, Story and Rituals
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निर्जला एकादशी व्रत कब है । Nirjala Ekadashi ka Vrat Kab Hai
साल 2025 में निर्जला एकादशी/ Nirjala Ekadashi का पावन व्रत शुक्रवार, 6 जून को रखा जाएगा। इस एकादशी का व्रत मुख्य रूप से आध्यात्मिक उन्नति और पुण्य अर्जित करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से वर्षभर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी की तिथि का प्रारंभ 6 जून 2025 को सुबह 2:15 बजे होगा और इसका समापन 7 जून 2025 को सुबह 4:47 बजे होगा। इस दिन व्रत करने वाले भक्त जल का सेवन भी नहीं करते, जिससे इसका नाम “निर्जला” पड़ा।

निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha
महर्षि व्यास से एक बार भीमसेन ने कहा – “हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुन्ति, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी लोग एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझे भी एकादशी के दिन अन्न ग्रहण त्यागने का आग्रह करते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि भाई, मैं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूँ और दान दे सकता हूँ, किन्तु मैं भूखा नहीं रह सकता।”
इस पर महर्षि व्यास ने कहा – “हे भीमसेन! वे सही कहते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि एकादशी के दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिये। यदि तुम नरक को अधम एवं स्वर्ग को उत्तम समझते हो तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न ग्रहण न किया करो।”
महर्षि व्यास के वचन सुन भीमसेन ने कहा – “हे पितामह, मैं आपको भी पहले कई बार यह कह चुका हूँ कि मैं एक दिन तो क्या एक समय भी भोजन किये बिना नहीं रह सकता। मेरे उदर में अग्नि का वास है, जो अधिक अन्न ग्रहण करने पर ही शान्त होती है। यदि मैं प्रयत्न करूँ तो वर्ष में एक एकादशी का व्रत अवश्य कर सकता हूँ, अतः आप मुझे कोई एक ऐसा व्रत बतलाइये, जिसको करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके और साल भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाए।”
भीमसेन की बात सुन व्यासजी ने कहा – “हे वायु पुत्र! वृषभ संक्रान्ति एवं मिथुन संक्रान्ति के मध्य में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी/ Nirjala Ekadashi आती है, उसका निर्जला व्रत करना चाहिये। इस एकादशी के व्रत में स्नान एवं आचमन करते समय यदि मुख में जल चला जाये तो इसका कोई दोष नहीं है, किन्तु आचमन में ६ माशे जल से अधिक जल नहीं लेना चाहिये। इस आचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है।
आचमन में ६ माशे से अधिक जल मद्यपान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिये। भोजन करने से व्रत का नाश हो जाता है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि मनुष्य जलपान न करे तो उससे बारह एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व ही उठना चाहिये। भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिये। तत्पश्चात् स्वयं भोजन करना चाहिये।
हे भीमसेन! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों एवं दान के समान है। एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखायी देते, अपितु भगवान श्रीहरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। संसार में सर्वोत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है। अतः यत्नपूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिये। इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये।

इस दिन गौदान करना चाहिये। इस एकादशी को भीमसेनी या पाण्डव एकादशी भी कहते हैं। निर्जल व्रत करने से पूर्व भगवान का पूजन करना चाहिये तथा उनसे प्रार्थना करनी चाहिये कि हे प्रभु, आज मैं निर्जल व्रत करने का वचन ले रहा हूँ, इसके दूसरे दिन ही भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा। मेरे सब पाप नष्ट हो जायें। इस दिन जल से भरा हुआ घड़ा वस्त्र आदि से ढककर स्वर्ण सहित किसी सुपात्र को दान करना चाहिये। इस व्रत के अन्तराल में जो मनुष्य स्नान, तप आदि करते हैं, उन्हें करोड़ पल स्वर्णदान का फल प्राप्त होता है।
जो मनुष्य इस दिन यज्ञ, होम आदि करते हैं, उसके फल का तो वर्णन भी नहीं किया जा सकता। इस निर्जला एकादशी के व्रत के पुण्य से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उनको चाण्डाल समझना चाहिये। वे अन्त में नरक में जाते हैं। ब्रह्म हत्यारे, मद्यमान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से ईर्ष्या करने वाले, झूठ बोलने वाले भी इस व्रत को करने से स्वर्ग के भागी बन जाते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत की विधि । Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi
- व्रत से पहले दशमी को सात्विक भोजन करें और मन में भगवान विष्णु का ध्यान रखते हुए व्रत की तैयारी करें। इस दिन सादा और हल्का खाना खाएं।
- एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें। भगवान विष्णु की पूजा करें। तुलसी के पत्ते, फूल, फल और मिठाई से पूजा करें।
- व्रत के दौरान अन्न और जल का सेवन न करें। संयम और नियमों का पालन करते हुए व्रत करें। सांसारिक कार्यों से मन हटाकर भगवान का ध्यान करें।
- एकादशी के दिन रात्रि जागरण करें। भजन-कीर्तन करें। विष्णु सहस्रनाम और अन्य वैदिक मंत्रों का जाप करें। ज़रूरतमंदों को अन्न, वस्त्र दान करें।
- व्रत के दौरान जीव-हिंसा, झगड़ा, जुआ जैसी नकारात्मक गतिविधियों से दूर रहें। शराब, तंबाकू का सेवन न करें। एकादशी और द्वादशी में संभोग न करें।
- द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें। भगवान विष्णु को भोग लगाएं और प्रसाद ग्रहण करें। मीठा और चावल से परहेज़ करते हुए एक समय का भोजन करें।
निर्जला एकादशी व्रत के लाभ । Nirjala Ekadashi Vrat ke labh

- निर्जला एकादशी/ Nirjala Ekadashi व्रत करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
- इस व्रत से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। उपवास करने से शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया बेहतर होती है और प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है।
- निर्जला एकादशी/ Nirjala Ekadashi का व्रत करने से पिछले पापों का क्षमा होता है। यह मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का एक अवसर है।
- इस व्रत को करने से भक्तों को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में सफलता और खुशहाली आती है।
- श्रद्धा और निष्ठा के साथ निर्जला एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उन्हें ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है।
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