हिंदू धर्म में शनि देव को विशेष स्थान प्राप्त है। शनि केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि न्याय और कर्म के अधिष्ठाता देवता माने जाते हैं। जो लोग सकर्म एवं दान पुण्य भावना वाले होते हैं उनके लिए शनि देव वरदान समान होते हैं किन्तु वहीं जो लोग अधर्म और अन्याय के मार्ग पर चलते हैं, उनके लिए शनि देव एक चेतावनी या चुनौती के रूप में आते हैं। आइये इस लेख में शनि देव की शनि जयंती (Shani Jayanti 2025) के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करते हैं।
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शनि जयंती क्या है?
शनि जयंती (Shani Jayanti) को शनि देव का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि विशेष रूप से उस दिन मनाई जाती है जब अमावस्या तिथि पर शनि देव का प्राकट्य हुआ था इसलिए इस तिथि को “शनि अमावस्या” (Shani Amavasya) भी कहा जाता है।
शनि अमावस्या का पर्व शनि देव के प्रभाव को शांत करने, शनि देव की कृपा प्राप्त करने और अपने पापों के प्रायश्चित के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। विद्वानों एवं ज्योतिषियों का मन्ना है कि जो जातक इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं, उनके जीवन से कष्ट, बाधाएं और दुर्भाग्य दूर होने लगते हैं।
2025 में शनि जयंती कब है? (Shani Jayanti Kab Hai)
वर्ष 2025 में शनि जयंती 27 मई, मंगलवार को मनाई जाएगी। Shani Jayanti हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को आती है। अमावस्या की यही वो तिथि है जो कि शनि देव के जन्मदिवस के रूप में विशेष रूप से पूजनीय है।इस दिन शनि मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, तेल अभिषेक, शनि स्तोत्र का पाठ, और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
शनि देव की शनिवार व्रत कथा पढ़ने के लिए हमारा ये लेख देखें
शनि महाराज कौन हैं? (Kon Hain Shani Dev)

हिन्दू धर्म में अनन्य देव हैं और हर देव की भक्ति भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। हमारे सनातन धर्म में माना जाता है कि व्यक्ति जो भी अच्छे बुरे कर्म करता है उसको भोग न सिर्फ उसको अपने जीते जी भोगना पड़ता है अपितु मृत्यु के बाद भी उसके कर्मो के अनुकूल ही उसे स्वर्ग या नर्क दिया जाता है।
पृथ्वी लोक पर इसी पाप पुण्य के समागम को सही तरीके से चलाने के लिए एक देव हैं जिन्हें सभी शनि देव या शनि महाराज कहते हैं। आपने अधिकतर मंदिरो में इनकी काले रंग की प्रतिमाएं देखि होंगी जिसपर हर शनिवार को भक्त जन सरसों के तेल के दिए जलाने के लिए आते होंगे।
शनि देव का वर्णन पुराणों में अत्यंत विशद रूप में हुआ है। उनके पिता सूर्य देव हैं और उनकी माया का नाम छाया (संवर्णा) है। शनि देव को कालपुरुष, न्यायाधिपति, और कर्मफलदाता के रूप में जाना जाता है। वे नवग्रहों में सबसे धीरे गति करने वाले ग्रह हैं और प्रत्येक राशि में लगभग 2.5 वर्ष तक स्थित रहते हैं। इसी कारण से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का विशेष महत्व है।
कहते हैं कि जिस पर शनि की साढ़ेसाती पड़ जाती है उसका बुरा समय शुरू हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को फिर शनि देव को प्रस्सन करने के लिए अथक प्रयास करने पड़ते हैं।
शनि देव का स्वरूप

शनि देव को काले वर्ण, न्यायप्रिय, और गंभीर स्वभाव वाला माना गया है। कहते हैं वो अपने पिता सूर्य देव से नफरत करते थे, इसका कारण जानने के लिए हमारा ये लेख पढ़ें।
शनि देव का वाहन भी कला ही है अर्थात काक (कौवा)।
शनि देव के पास तीन हथियार है, धनुष, एक त्रिशूल एवं एक गदा।
माना जाता है कि जो भी श्री हनुमान जी की भक्ति करते हैं शनि देव भी उन पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं। ऐसा क्यों है ये जानने के लिए हमारा ये लेख पढ़ें।
शनि का प्रभाव (Shani Sade Sati)
शनि देव पाप और पुण्य के अनुसार मनुष्य को फल देते हैं।
वे अन्याय, भ्रष्टाचार, और छल-कपट से घृणा करते हैं।
जो व्यक्ति सत्य, संयम और सेवा के मार्ग पर चलते हैं, शनि देव उनके जीवन में स्थायित्व और समृद्धि प्रदान करते हैं।
शनि जयंती की पूजा विधि (Shani Jayanti Puja Vidhi)
Shani Jayanti के दिन श्रद्धालु व्रत रखते हैं, स्नान कर काले वस्त्र पहनते हैं और शनि देव की प्रतिमा या चित्र पर तेल, नींबू, फूल, तिल, और काले वस्त्र अर्पित करते हैं।
विशेष रूप से निम्न कार्य अत्यंत पुण्यदायक माने गए हैं:
शनि मंत्र का जप करें। (Shani Dev Mantra)
शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र– ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।
शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र– ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र– ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
शनि देव जी का गायत्री मंत्र– ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
शनि चालीसा और दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
आपके आस पास गरीबों को काले वस्त्र, तिल, तेल, लोहा और छाता दान देना इस दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।
काले कुत्ते, काली गाय या कौए को भोजन कराना भी इस दिन फलदायी होता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि शनि को ‘क्रूर ग्रह’ नहीं, बल्कि ‘न्यायाधीश’ कहा जाता है। उनका उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि मनुष्य को उसके कर्मों के प्रति जागरूक करना है।