जानिए, गणेश चतुर्थी की कथा और गणपति पूजा का महत्व

Ganesh

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

गणनायक भगवान गणेश जो सिद्धि विनायक है। जिनकी पूजा किए बिना हर कार्य अधूरा है। जिन्हें हर शुभ मंगल कार्य के लिए पहला निमंत्रण दिया जाता है। भगवान गणेश जो भक्तों को कभी निराश नहीं करते, जिनकी पूजा विधि सबसे सरल मानी जाती है। 

देवताओं के भी देवता, ऐसे देवाधिदेव भगवान गणेश जी का सनातन हिंदू धर्म में सर्वाधिक महत्व माना गया है। प्राचीन हवेली, किले और पुराने घरों के दरवाजों की चौखट पर आपको भगवान गणेश जी की मूर्ति लगी हुई मिल जाएगी। 

यह प्रमाण है कि भगवान विघ्नहर्ता श्री गणेश को नमस्कार किए बिना गृह प्रवेश वर्जित था। गणेश जी की कृपा जिस पर बरसती है वो कभी जीवन में परेशान नहीं रह सकता। भक्तों के सभी दुखों को दूर करने वाले ऐसे ही भगवान गणेश जी के जन्मदिवस को गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है। 

इस आर्टिकल में हम आपको गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। इसके अलावा, भगवान गणेश की पूजा के महत्व और गणेश चतुर्थी पर्व की महिमा के बारे में भी जानकारी देंगे। 

शाश्वत है भगवान गणेश की कृपा

वैदिक सनातन धर्म में भगवान गणेश को कई नामों से जाना जाता है। सनातन शास्त्रों में उन्हें आदिदेव भी कहा गया है। भगवान गणेश का अवतार हर युग में हुआ है। वर्तमान समय में भगवान गणेश की पूजा रिद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में की जाती है। 

धार्मिक मान्यताएं हैं कि, भगवान गणेश की पूजा करने से सुख, सौभाग्य और आय में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के संताप दूर हो जाते हैं। 

साल 2024 में गणेश चतुर्थी की तिथि और शुभ समय

वैदिक पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पावन पर्व हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसी दिन से गणेश उत्सव की शुरुआत होती है और अनंत चतुर्दशी तक गणपति बप्पा हम सबके बीच विराजमान रहते हैं। उनकी भक्ति और पूजन से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

  • गणेश चतुर्थी – शनिवार, 7 सितंबर 2024
  • मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त – 11:07 AM to 01:33 PM
  • अवधि – 02 घंटे 27 मिनट
  • चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 06 सितंबर 2024 को दोपहर 03:01 बजे
  • चतुर्थी तिथि समाप्त – 07 सितंबर 2024 को शाम 05:37 बजे

गणेश चतुर्थी का महत्व

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश का जन्‍म जिस दिन हुआ था, उस दिन भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी थी। इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी और विनायक चतुर्थी नाम दिया गया। 

गणेश पुराण के अनुसार, गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गणेश चतुर्थी विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता भगवान गणेश के जन्म का उत्सव है। उन्हें नई शुरुआत और समृद्धि के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। 

भक्त अपने प्रयासों में सफलता और अपने जीवन से बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना करते हैं।

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भगवान गणेश जी के जन्म की पौराणिक कथा

गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वती जी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे।

ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गईं। जब भगवान शिव वहां आए तो, बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले, अन्दर मेरी मां नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। 

लेकिन, गणेश जी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेश जी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गए। जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। 

तब, शिवजी ने कहा कि, मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी ने रौद्र रूप धारण कर लिया और कहा कि, जब आप मेरे पुत्र को वापस जीवित करेंगे, तब ही मैं यहाँ से चलूंगी, अन्यथा नहीं। शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। 

इस कोलाहल से त्रिलोक के सारे देवता एकत्रित हो गए। सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिव जी ने विष्णु भगवान से कहा कि, किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आएं, जिसकी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। 

विष्णु जी ने तुरंत गरुड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाए। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। 

गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर काट लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी को लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया, साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कहीं भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। 

इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।

नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। 

गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

भावार्थ :
मैं उन भगवान् गजानन की वन्दना करता हूं, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, सुवर्ण तथा सूर्य के समान देदीप्यमान कान्ति से चमक रहे हैं। वे सर्प का यज्ञोपवीत धारण करते हैं, एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं तथा कमल के आसनपर विराजमान हैं।