भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण

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भगवान विष्णु ने धरती पर अब तक 9 अवतार लिए हैं और उनका दसवां अवतार कलियुग में होने वाला है, लेकिन उनके आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण (Shree Krishna) को भक्तों के बीच में एक विशेष स्थान प्राप्त है। श्रीकृष्ण न केवल एक योगेश्वर थे बल्कि श्री कृष्ण एक बहुत बड़े राजनीतिक, रणनीतिकार, नीतिज्ञ एवं धार्मिक मार्गदर्शक भी थे या यूँ कहिए कि हैं और इसी कारण से उनके भक्तो में वह अति पूजनीय हैं। आइए इस लेख में उनके जीवन और कर्मों को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करते हैं।

विष्णु का आठवाँ अवतार कौन थे?

भगवान विष्णु ने इस पृथिवी पर अपने आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। यह अवतार धर्म की पुनः स्थापना, पापियों के विनाश और भक्तों की रक्षा हेतु हुआ था। उनका जन्म द्वापर युग में हुआ।

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श्रीकृष्ण का जन्म कब और कैसे हुआ? (Shree Krishna ka janm kab hua tha)

श्रीकृष्ण का जन्म प्रथम तो अपने मां कंस जैसे क्रूर राजा के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए हुआ और यह भी कहना गलत नहीं होगा कि श्री कृष्ण का जन्म यह पाठ पढ़ाने के लिए भी हुआ कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो अंत में विजय धर्म की ही होती है।

श्री कृष्ण का जन्म कंस की बहन देवकी और उसके पति वसुदेव के आठवें संतान के रूप में हुआ था। एक आकाशवाणी हुई थी जिसने कंस से कहा था कि उसकी बेहेन की आठवीं संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। इस बात से भयभीत होकर कंस ने अपने बेहेन और बहनोई को कारागार में बंदी बना लिया और उसके साथ पुत्रो का वध कर दिया।

श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी को, रात्रि के 12 बजे, मथुरा के कारागार में हुआ। यही वो दिन है जब आज के समय में हम हर साल कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं

बचपन में श्रीकृष्ण ने क्या-क्या कठिनाइयाँ झेलीं? (Shree Krishna ne bachpan me kis kisko mara)

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जन्म के तुरंत बाद ही उनके पिता वसुदेव ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए उन्हें यमुना पार करके गोकुल में नंद-यशोदा के घर सुला दिया अर्थात जन्म लेते ही कृष्ण का उनके माता पिता के साथ साथ छूट गया।

बाल्यकाल से ही कंस ने कृष्ण को मारने के लिए अनेको राक्षस गोकुल में भेजे जैसे कि पूतना, त्रिणावर्त, शकटासुर, बकासुर, अघासुर लेकिन हर बार उन्होंने अत्यंत साहस और चमत्कारी शक्ति से इनका सामना किया।

श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कैसे किया? (Shree Krishna ne kans ko kaise mara)

जब श्रीकृष्ण थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने अक्रूर जी के साथ और अपने बड़े भाई बलराम के साथ मथुरा की यात्रा की और वहां कुश्ती प्रतियोगिता के बहाने से कंस को चुनौती दी। श्री कृष्ण ने मथुरा में आके एक धनुष को भी भंग किया जिसे बड़े से बड़े शूरवीर और पहलवान हिला भी नहीं पाए थे। श्री कृष्ण ने कंस को उसके ही मंच पर गिराकर उन्होंने उसका वध किया। इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया और मथुरा को अत्याचार से मुक्ति दिलाई।

श्रीकृष्ण का पांडवों से क्या संबंध था?

श्रीकृष्ण की जन्म देने वाली माता देवकी की बेहेन थी कुंती। कुंती का विवाह राजा पाण्डु के साथ हुआ था जो कि हस्तिनापुर के राजा थे। इस प्रकार कुंती श्री कृष्ण की मौसी हुई और कुंती के पुत्र यानि कि पांडव इस नाते श्रीकृष्ण के मामेरे भाई हुए। उम्र के हिसाब से अगर बात करें तो श्री कृष्ण एवं अर्जुन लगबघ समान उम्र के ही थे और इस प्रकार युधिष्ठिर एवं बलवान भीम श्री कृष्ण से बड़े थे किन्तु नकुल और सहदेव श्री कृष्ण से छोटे।

श्रीकृष्ण ने कितनी रानियों से विवाह किया? (Shree Krishna ne kitni shadiya ki)

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मुख्य रूप से श्रीकृष्ण की 8 रानियाँ थीं जिन्हें अष्टा-भार्या कहा जाता है: रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, कालिंदी, मित्रविंदा, नाग्नजिती, भद्रा और लक्ष्मणा। इसके अतिरिक्त उन्होंने 16,100 रानियों से विवाह किया जो नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कराई गई थीं। इन सभी को उन्होंने सम्मान और राजकीय प्रतिष्ठा प्रदान की।

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण का क्या योगदान था?

जब अर्जुन और दुर्योधन श्रीकृष्ण से कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए सहायता मांगने आये थे तब उन्होंने कहा था कि वह स्वयं शस्त्र नहीं उठाएंगे लेकिन अर्जुन के सारथी बनकर युद्ध में नीति, रणनीति और मनोबल प्रदान किया।

भगवद्गीता का उपदेश भी श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में ही अर्जुन को दिया, जो आज भी धर्म, योग, और कर्म का मार्गदर्शक ग्रंथ है।

श्रीकृष्ण की योजना और कूटनीति से ही पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, महावीर कर्ण, जयद्रथ आदि का अंत हुआ और युद्ध में धर्म की विजय हुई। बिना इन महारथियों के अंत के पांडवों का कुरुक्षेत्र युद्ध में जीतना बहुत मुश्किल था।

द्वारका का विनाश कैसे हुआ? (Dwaraka pani me kaise dubi)

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श्री कृष्ण ने एक क्रूर राजा जरासंध के आक्रमण से अपने नगर वासियों को बचाने के लिए द्वारका नाम का एक नगर बसाया था। किन्तु समय के साथ यदुवंशियों में अहंकार और कलह उत्पन्न हुआ जो कि आगे चलके आपस में लड़ाइयों का कारण बना जिससे कि अंततः समुद्र ने पूरी द्वारका नगरी को जलसमाधि दे दी।

इसमें एक मान्यता ये भी है कि कौरवो की माता गांधारी ने जब यह जाना कि उसके १०० पुत्रो की हत्या में श्री कृष्ण की भी भूमिका है और जब उसने ये देखा कि कैसे उसके कुल में भाई भाई, नाते दार रिश्तेदार आपस में युद्ध करके समाप्त हो गए तो इसी आवेश में आके गांधारी ने कृष्ण को श्राप दे दिया कि जिस प्रकार उसके कुल का नाश हुआ है वैसे ही यदुवंशी भी आपस में एक दूसरे से लड़ झगड़ के समाप्त हो जाएंगे।
श्रीकृष्ण ने भी अपने अवतार कार्य की समाप्ति के पश्चात प्रभास क्षेत्र में एक शिकारी के हाथों लीला संवरण किया।