चालीसा, आरती और अष्टकम में क्या अंतर है? जानिए इन तीनों का धार्मिक महत्व

aarti or chalisa

हिंदू धर्म या सनातन धर्म में भगवान की उपासना और भक्ति करने के कई तरीके होते हैं। उसी प्रकार से भगवान की स्तुति करने के भी अनेक स्वरूप हैं; कोई मंत्र का उच्चारण करता है तो कोई स्तोत्र का, कोई चालीसा का पाठ करता है तो कोई आरती गता है तो कोई अष्टकम आदि के माध्यम से ईश्वर से जुड़ते हैं। इनमें से चालीसा, आरती, और अष्टकम तीन प्रमुख स्तुति विधाएं हैं, जो स्वर, लय, भाव और उद्देश्य में भिन्न होती हैं।

बहुत से भक्तों को यह दुविधा रहती है कि इन aarti or chalisa mein antar kya hai और किसका क्या महत्व है तो आइये इस लेख के माध्यम से हम इस दुविधा को दूर करने का प्रयास करते हैं।

चालीसा क्या है और इसे क्यों पढ़ा जाता है?

‘चालीसा’ शब्द संस्कृत के ‘चालिस’ यानी चालीस से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘चालीस छंदों या चौपाइयों का संग्रह’। चालीसा एक विशेष प्रकार का स्तुति ग्रंथ होता है जिसमें किसी देवी या देवता की महिमा, प्रसंग, और उपलब्धियाँ पंक्ति बद्ध रूप में वर्णित होती हैं।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • चालीसा के प्रारम्भ में आमतौर पर दोहे होते हैं और इसका समापन भी दोहे से होता है और बीच में 40 चौपाइयाँ होती हैं।
  • सबसे प्रसिद्ध चालीसा है हनुमान चालीसा, जिसे तुलसीदास जी ने रचा था।
    हनुमान चालीसा के अतिरिक्त शिव चालीसा एवं दुर्गा चालीसा भी बहुत लोग गाते हैं।
  • चालीसा का पाठ नियमित रूप से किया जा सकता है, इसके पाठ के लिए किसी विशेष पूजा या पर्व की आवश्यकता नहीं होती।
  • इसका उद्देश्य होता है भक्ति, आत्म-बल, और सुरक्षा की भावना उत्पन्न करना।
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Credit: Tseries-Bhakti Sagar

चालीसा पाठ के लाभ:

  • चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति और एकाग्रता मिलती है।
  • चालीसा का पाठ करने से मन आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है।
  • चालीसा के नियमित पाठ से नकारात्मकता से भी रक्षा होती है।
  • और चालीसा के नियमित पाठ से भगवान की कृपा प्राप्त तो होती ही है।

आरती क्या है और यह क्यों की जाती है?

‘आरती’ को भक्ति या आराधना की अंतिम और विशेष कड़ी कहा जा सकता है। आरती मूलतः दीप, धूप, फूल और गीत के माध्यम से ईश्वर को समर्पण और आभार प्रकट करने की एक पूजा विधि है। आरती, पूजा के समापन में की जाती है और इसमें भक्त भाव, भक्ति और उल्लास के साथ भगवान की प्रशंसा करते हैं।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • आरती में दीपक या दीप को घुमाते हुए भगवान के सामने गाया जाता है।
  • इसमें शब्दों से अधिक भाव और संगीत का प्रभाव रहता है।
  • आरती अधिकतर संक्षिप्त होती हैं और ये चालीसा की तरह लम्बी नहीं होती। ये अधिकतर ८-१० पंक्तियों की होती हैं।
  • आरती के अंत में सभी भक्त दीप से आशीर्वाद लेते हैं।

आरती करने का उद्देश्य:

  • पूजा को पूर्णता देना।
  • सामूहिक भक्ति और एकता की भावना को बढ़ाना।
  • उदाहरण: “जय जगदीश हरे”, “आरती कुंज बिहारी की”, “शिव आरती”, “हनुमान आरती” आदि।
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Credit: Tseries- Bhakti sagar

अष्टकम क्या होता है और यह कैसे भिन्न है?

‘अष्टकम’ संस्कृत का शब्द है, जिसमें ‘अष्ट’ का अर्थ होता है आठ। अष्टकम एक ऐसा स्तोत्र होता है जिसमें आठ श्लोक होते हैं और यह भगवान की किसी विशेष लीला, गुण, या रूप की गंभीर और गूढ़ स्तुति करता है।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • जहाँ आरती या चालीसा सरल हिंदी में होती हैं वहीँ अष्टकम आमतौर पर संस्कृत में रचित होते हैं और इसलिए पढ़ने में ज़रा कठिन होते हैं।
  • अष्टकम का पाठ ध्यानपूर्वक, नियम से और भावनात्मक जुड़ाव के साथ किया जाता है।

अष्टकम के उदाहरण:

  • शिवाष्टकम (शिव जी के लिए)
  • गोविंदाष्टकम (भगवान विष्णु के लिए)
  • लक्ष्मी अष्टकम, हनुमान अष्टकम, आदि
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Credit: Bhaktvatsal

अष्टकम की विशेषता:

  • यह भक्त को एकाग्र करता है और उसके भीतर दर्शनिक गहराई उत्पन्न करता है।
  • उच्चारण और अर्थ की दृष्टि से यह गंभीर और गूढ़ स्तुति होती है।