Kal Bhairav Jayanti: कालभैरव जयंती कब मनाई जाती है? जानें इसकी कथा के बारे में

Kal Bhairav Jayanti

Kal Bhairav Jayanti: काल भैरव जयंती जिसे ‘महाकाल भैरव अष्टमी’ के रूप में जाना जाता है। जो हर वर्ष मार्ग शीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष काल भैरव जयंती 22 नवंबर को मनाई जाएगी। यह पर्व भगवान काल भैरव जो कि भगवान शिव के उग्र और तांत्रिक स्वरूप के रूप में जाने जाते हैं, उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए काल भैरव के रूप में अवतार लिया था।

काल भैरव शुभ मुहूर्त

काल भैरव जयंती में अष्टमी तिथि की शुरुआत 22 नवंबर को शाम 6:07 पर हो रही है, जिसका समापन 23 नवंबर को सुबह 7:56 पर होगा। उदया तिथि की आधार पर इस बार 22 नवंबर को काल भैरव जयंती का यह पर्व मनाया जाएगा। वहीं 22 नवंबर को सुबह 6:50 से लेकर सुबह 10:48 तक काल भैरव की पूजा का शुभ मुहूर्त है।

कालभैरव जयंती का महत्व

काल भैरव भगवान शिव के रौद्र स्वरूप है, इन्हें कालों के कल और विघ्नविनाशक कहा जाता है। यह पर्व उन भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन के संकटों, नकारात्मक ऊर्जा और दुश्मनों से छुटकारा पाना चाहते हैं। शास्त्रों के अनुसार काल भैरव असीम शक्तियों के देवता हैं, इसलिए इनकी पूजा अर्चना करने से अकाल मृत्यु का डर दूर होता है। वहीं, बाबा विश्वनाथ को काशी का राजा कहा जाता है, लेकिन काल भैरव के दर्शन किए बिना विश्वनाथ जी के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं। इसलिए काल भैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।

कालभैरव पूजा सामग्री

काल भैरव जयंती में काल भैरव की पूजा करने के लिए सामग्री में काल भैरव की प्रतिमा या फोटो के साथ पंचामृत (दूध, दही, शहद घी और शक्कर) सरसों का तेल और दीपक, काला तिल, सिंदूर, अक्षत, बेलपत्र, धूप, अगरबत्ती, काले वस्त्र, प्रसाद के लिए गुड़, उड़द से बने पकवान या मिष्ठान जरूर शामिल करें।

कालभैरव पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर नहा कर साफ कपड़े पहने पूजा स्थान को साफ करें और भगवान काल भैरव की प्रतिमा स्थापित करें और व्रत का संकल्प लें और काल भैरव का ध्यान करें। पंचामृत और गंगाजल से भगवान काल भैरव की प्रतिमा का अभिषेक करें। काल भैरव को सिंदूर चावल और काले तिल चढ़ाएं। इसके बाद सरसों के तेल से दिया जलाएं। भगवान को काले वस्त्र पहनाएं और गुड़ और उड़द से बने पकवान उन्हें अर्पित करें। इसके बाद ॐ काल भैरवाय नमः मंत्र का जाप करें। काल भैरव चालीसा और भैरव स्तोत्र का पाठ करें। अंत में आरती करें। कहा जाता है कि भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता है, इसलिए इस दिन कुत्तों को भोजन अवश्य कराएं।

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कालभैरव से जुड़ी कथा

भगवान काल भैरव की उत्पत्ति और उनके महत्व को जानने के लिए पुराने में कई कथाएं मिलती हैं, जिनमें से एक कथा के बारे में जानते हैं। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा और पालन करता विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। दोनों ने एक दूसरे को खुद से श्रेष्ठ बताना शुरू किया। भगवान शिव इस विवाद को देखकर चिंतित हुए और उन्होंने एक विशाल अग्नि का एक स्तंभ प्रकट किया शिव ने कहा जो भी इसका अंत या प्रारंभ खोज पाएगा। वही सबसे श्रेष्ठ होगा।

ब्रह्मा जी ने हंस रूप धारण किया और स्तंभ के ऊपरी भाग को खोजने के लिए निकल पड़े। जबकि विष्णु वराह अवतार लेकर निचले भाग में गए। विष्णु ने सत्य स्वीकार कर लिया कि वे स्तंभ का अंत नहीं पा सके, लेकिन ब्रह्मा ने झूठ बोला और उन्होंने कहा कि स्तंभ का अंत उन्होंने देख लिया। अहंकार और झूठ से भगवान शिव बेहद क्रोधित हुए और उनके तेज से काल भैरव प्रकट हुए। काल भैरव ने वही उसी क्षण ब्रह्मा के पांचवे सिर को अपने त्रिशूल से काट दिया।

इस घटना के बाद ब्रह्मा का अहंकार समाप्त हो गया। इस घटना के बाद भगवान शिव ने काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया और कहा कि जो भी काशी में उनकी उपासना करेगा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।


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