शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः।
विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।।
मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः।
हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।।
वैदिक धर्म में विविध देवी-देवताओं के पूजन का विधान शास्त्रों में वर्णित है। यदि देव पूजा का सम्यक अनुशरण किया जाए तो मनुष्य अपने जीवन को सार्थक दिशा प्रदान कर सकता है। पूजा और अनुष्ठान के माध्यम से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
हिंदू कर्मकांड पद्धति के अनुसार पूजा-अनुष्ठान के बिना कोई भी शुभ कार्य करना पूरी तरह वर्जित माना गया है। यही कारण है कि, कोई भी टेक्निकल काम या वर्कशॉप भगवान विश्वकर्मा की पूजा के बिना शुरू नहीं होती है।
इस आर्टिकल में हम आपको पृथ्वी के सृजन के देवता और इंजीनियर भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। मान्यता है कि, भगवान विश्वकर्मा की कृपा मिलने पर हर तरह की आर्थिक तंगी से छुटकारा मिल जाता है।
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कौन हैं भगवान विश्वकर्मा?
माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्माजी ने जब सृष्टि की रचना की तो उसे सजाने-संवारने का काम विश्वकर्मा जी का सौंपा था। भगवान विश्वकर्मा जी ने ही भगवान कृष्ण जी की द्वारिका नगरी से लेकर शिवजी का त्रिशूल, हनुमान जी की गदा, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल व कवच तक और हस्तिनापुर का निर्माण किया था।
आपको यह रोचक जानकारी भी बता दें कि, भगवान विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि एवं सिद्धि का विवाह भगवान शिव जी के पुत्र गणेश जी के साथ और पुत्री संज्ञा का विवाह ऋषि कश्यप के पुत्र भगवान सूर्य के साथ हुआ था।
भगवान सूर्य की के पुत्र वैवस्वतमनु, यमराज, यमुना, कालिंदी और अश्विनी कुमार हैं। विश्वकर्मा सृजन, निर्माण, वास्तुकला, शिल्प कला और सांसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता माने जाते हैं।
2024 में भगवान विश्वकर्मा की पूजा का शुभ मुहूर्त
- वर्ष 2024 में विश्वकर्मा जयंती 16 सितम्बर दिन सोमवार को मनाई जाएगी।
- कन्या संक्रांति का क्षण होगा – 16 सितम्बर 2024 को सायंकाल 07 बजकर 53 मिनट पर
- पूजा का अभिजीत मुहूर्त – प्रातःकाल 11 बजकर 51 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन कामकाज में आने वाले हर तरह के औजार व यंत्रों की साफसफाई करनी चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विश्वकर्मा जी का चित्र स्थापित कर विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए।
इसके लिए मिठाई, फल फूल, अक्षत, पंचमेवा और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। आरती के बाद प्रसाद अवश्य बांटना चाहिए।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व
मत्स्य पुराण में वर्णित श्वलोक के अनुसार
विश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः।
प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु।
तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।।
अर्थः प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावड़ी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से करियर और कारोबार में वृद्धि होती है। धर्म शास्त्रों में निहित है कि, भगवान विश्वकर्मा की स्तुति करने से आर्थिक तंगी भी दूर होती है।
भगवान विश्वकर्मा जी की करें आरती….
हम सब उतारे आरती तुम्हारी हे विश्वकर्मा, हे विश्वकर्मा।
युग–युग से हम हैं तेरे पुजारी, हे विश्वकर्मा…।।
मूढ़ अज्ञानी नादान हम हैं, पूजा विधि से अनजान हम हैं।
भक्ति का चाहते वरदान हम हैं, हे विश्वकर्मा…।।
निर्बल हैं तुझसे बल मांगते, करुणा का प्यास से जल मांगते हैं।
श्रद्धा का प्रभु जी फल मांगते हैं, हे विश्वकर्मा…।।
चरणों से हमको लगाए ही रखना, छाया में अपने छुपाए ही रखना।
धर्म का योगी बनाए ही रखना, हे विश्वकर्मा…।।
सृष्टि में तेरा है राज बाबा, भक्तों की रखना तुम लाज बाबा।
धरना किसी का न मोहताज बाबा, हे विश्वकर्मा…।।
धन, वैभव, सुख–शान्ति देना, भय, जन–जंजाल से मुक्ति देना।
संकट से लड़ने की शक्ति देना, हे विश्वकर्मा…।।
तुम विश्वपालक, तुम विश्वकर्ता, तुम विश्वव्यापक, तुम कष्टहर्ता।
तुम ज्ञानदानी भण्डार भर्ता, हे विश्वकर्मा…।।
भगवान विश्वकर्मा की जय। भगवान विश्वकर्मा की जय।
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