भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से आठवां ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर महादेव (Trimbakeshwar Jyotirlinga) नासिक, महाराष्ट्र में स्थित है। यह स्थान न केवल शिवभक्तों के लिए एक पवित्र धाम है, बल्कि गंगा नदी (गोदावरी) के पृथ्वी पर आगमन की अद्भुत कथा का भी साक्षी है। Trimbakeshwar Jyotirlinga ब्रह्मगिरि पर्वत के समीप त्र्यंबक में विराजमान है। आज हम त्र्यंबकेश्वर महादेव Trimbakeshwar Jyotirlinga की कथा को विस्तार से जानेंगे।
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ज्योतिर्लिंग क्या होता है? (Jyotirlinga Kya Hota Hai)
‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।
इससे पहले हम और ज्योतिर्लिंगों की कथा बता चुके हैं, अगर आप जानना चाहते हैं कि उनकी उत्पत्ति कैसे हुई तो इस लिंक पर क्लिक करके हमारी वेबसाइट पर जाकर ज़रूर पढ़ें। आइये अब Trimbakeshwar Jyotirlinga Katha जानते हैं।

Trimbakeshwar Jyotirlinga क्षेत्र में दुर्भिक्ष और महर्षि गौतम की तपस्या
प्राचीन समय में, त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में लंबे समय तक वर्षा नहीं हुई। नदियाँ सूख गईं, जलाशय रिक्त हो गए और सभी जीव-जंतु पलायन करने को विवश हो गए। तब महर्षि गौतम ने सभी प्राणियों के कल्याण हेतु भगवान वरुण की तपस्या प्रारंभ की।
छः मास तक कठिन तपस्या के बाद, वरुण देव प्रकट हुए और महर्षि गौतम से एक विशाल गड्ढा खुदवाया। वरुण ने उस गड्ढे को जल से भर दिया, जिससे क्षेत्र में पुनः हरियाली लौट आई और सभी जीव-जंतु वापस आकर बसने लगे। महर्षि गौतम के इस अद्वितीय परिश्रम की सभी ने प्रशंसा की।
अन्य ऋषियों की ईर्ष्या और आरोप
एक दिन महर्षि गौतम के शिष्य झील से जल लेने गए, जहाँ अन्य संतों की संतानें भी जल भरने के लिए आए थे। अब इन ब्राह्मण पुत्रो में यह बहस होने लगी कि पहले पानी कौन भरेगा। वहां पर ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या भी उपस्थित थी तो उन्होंने कह दिया क्यूंकि पहले पानी भरने के लिए गौतम मुनि के शिष्य आए थे इसलिए पहले पानी वही भरेंग।
अब क्यूंकि वहां पर अन्य ऋषियों की पत्नियाँ भी उपस्थित थीं तो उन्हें लगा कि क्यूंकि अहिल्या के पति की वजह से यहाँ पानी आया है इसलिए वे इस बात का फायदा उठा रही हैं। एक छोटी-सी घटना से नाराज होकर, उन महिलाओं ने महर्षि गौतम और माता अहल्या के विरुद्ध अपने पतियों से शिकायत कर दी। संतों ने इस घटना को तूल दिया और महर्षि गौतम से द्वेष पाल लिया।
उन्होंने भगवान गणेश से प्रार्थना की कि वे महर्षि गौतम को लज्जित करें। गणेश जी ने समझाया कि महर्षि ने क्षेत्र का कल्याण किया है, फिर भी संतों के आग्रह पर उन्होंने एक योजना बनाई।
महर्षि गौतम पर आरोप
संतो ने अपनी ईर्ष्या को शांत करने के लिए महर्षि गौतम के पास एक पहले से ही कुपोषित गाय भेजी। गौतम मुनि ने जब उस गाय की हालत देखि तो उन्हें दया आ गई और उन्होंने उसे खाने को चारा दिया। दुर्भाग्य वश जैसे ही उस गाय ने वह चारा खाया उस गाय की मृत्यु हो गई। इतने में ही समीप छिपे हुए सब साधु संत बहार आ गए और महर्षि पर गौ हत्या का पाप लगाने लगे।
उन्होंने कहा कि जब तक महर्षि गौतम यहाँ रहेंगे, देवता प्रसन्न नहीं होंगे। मजबूर होकर महर्षि गौतम अपनी पत्नी अहल्या के साथ त्र्यंबकेश्वर से दूर चले गए, लेकिन संतों ने उनका पीछा किया और उन्हें हर धार्मिक कार्य से वंचित कर दिया।
महर्षि गौतम का प्रायश्चित और तपस्या
अपना अपराध सिद्ध करने हेतु महर्षि गौतम ने तपस्या का संकल्प लिया। संतों ने उन्हें कठिन व्रत और परिक्रमा का आदेश दिया:
- पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करें
- एक महीने तक उपवास करें
- ब्रह्मगिरि पर्वत की 100 बार परिक्रमा करें
- या फिर पृथ्वी पर गंगा नदी का आह्वान करें
महर्षि गौतम और माता अहल्या ने सभी निर्देशों का पालन करते हुए अत्यंत कठिन तपस्या प्रारंभ की। उनके अदम्य संकल्प और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए।
भगवान शिव का आशीर्वाद और गंगा का प्रकट होना

भगवान शिव ने महर्षि गौतम को बताया कि वह निर्दोष हैं; अपराध उन संतों का है जिन्होंने छलपूर्वक उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा। महर्षि गौतम ने विनम्रतापूर्वक प्रार्थना की कि यदि भगवान प्रसन्न हैं तो गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करें।
भगवान शिव ने गंगा से अनुरोध किया। गंगा ने एक शर्त रखी — वे तभी पृथ्वी पर उतरेंगी जब भगवान शिव अपने परिवार के साथ वहीं निवास करें। इस पर भगवान शिव ने सहमति व्यक्त की, और अन्य देवता भी त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र में स्थिर हो गए।
गंगा देवी ने पृथ्वी पर गोदावरी नदी के रूप में अवतरण किया। त्र्यंबकेश्वर में ही गोदावरी का उद्गम स्थल माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना
भगवान शिव ने स्वयं यहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में प्रतिष्ठित होकर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (Trimbakeshwar Jyotirlinga) का सृजन किया। Trimbakeshwar Jyotirlinga की एक विशिष्टता यह है कि इसमें शिव के साथ ब्रह्मा, विष्णु भी स्थित हैं — अर्थात त्रिदेवों का एकत्रित स्वरूप है।
यह स्थल आज भी शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है और विशेष रूप से गोदावरी स्नान व पूजा का महत्व अद्भुत माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर के दर्शनों का महत्व
त्र्यंबकेश्वर महादेव (Trimbakeshwar Jyotirlinga) मंदिर में विशेषकर “कुंभ मेला” का आयोजन होता है जो 12 वर्षों में एक बार होता है। मंदिर की प्राचीन वास्तुकला, गहरे धार्मिक वातावरण और शिव-भक्ति की ऊर्जा हर श्रद्धालु को अद्भुत अनुभूति प्रदान करती है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग आरती समय (Trimbakeshwar Jyotirlinga Timings)

इस ज्योतिलिंग (Trimbakeshwar Jyotirlinga )मंदिर में सुबह 7:00 से लेकर 8: 30 AM तक ब्रह्म देव की पूजा ओर आरती की जाती है।
इसी प्रकार दोपहर में 10: 45 AM से लेकर 12:30 PM तक महादेव की पूजा एवं आरती की जाती है।
और शाम को 7:00 PM बजे से लेकर 8:30 PM तक विष्णु भगवान की पूजा एवं आरती की जाती है।
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