भारत के भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों हैं और इनमे से दूसरा स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) को प्राप्त है। यह दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में श्रीशैलम नामक पवित्र पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। शिवपुराण की कोटि रुद्र संहिता में इस ज्योतिर्लिंग का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। मल्लिकार्जुन केवल ज्योतिर्लिंग ही नहीं है, बल्कि यह शक्ति पीठ भी है — ऐसा विलक्षण संगम पूरे भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
आइये इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुडी हुई कथा (Mallikarjuna Jyotirlinga Katha) जानते हैं।
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ज्योतिर्लिंग क्या होता है?
‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।
हम अपने पहले के एक लेख में प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की कथा जान चुके हैं अब हम द्वितीय ज्योतिर्लिंग की कथा जानते हैं।सोमनाथ ज्योतिलिंग की कथा जानने के लिए हमारा यह लेख पढ़ें।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा (Mallikarjuna Jyotirlinga Katha)
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा भगवान शिव के दोनों पुत्रों भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय से जुड़ी है। एक बार दोनों भाइयों के मध्य इस बात पर विवाद हो गया कि पहले विवाह किसका होगा। माता-पिता के पास पहुँचकर दोनों ने अपनी बात रखी।
भगवान शिव और माता पार्वती ने दोनों को एक चुनौती दी: “जो संपूर्ण पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करेगा, उसी का विवाह पहले होगा।”

जैसे ही यह सुना, भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर संपूर्ण पृथ्वी की यात्रा पर निकल पड़े। परंतु भगवान गणेश का वाहन मूषक (चूहा) था, जो गति में धीमा था। ऐसे में उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग किया। उन्होंने अपने माता-पिता को एक स्थान पर बैठाया और उनकी सात परिक्रमा की। गणेश जी ने यह बताते हुए कहा, “मेरे लिए आप दोनों ही संपूर्ण सृष्टि हैं।”
उनकी इस भावना और विवेक से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती ने गणेश जी का विवाह सिद्धि और बुद्धि से कर दिया।
जब कार्तिकेय अपनी पृथ्वी यात्रा पूरी करके लौटे, तब उन्होंने देखा कि गणेश जी का विवाह हो चुका है। वे निराश और क्रोधित हो गए। उन्होंने क्रौंच पर्वत पर अकेले निवास करने का निर्णय लिया और घर लौटने से मना कर दिया।
माता-पिता को पुत्र की यह उदासी व्यथित कर गई। उन्होंने देवर्षि नारद को भेजा, परंतु कार्तिकेय नहीं माने। अंततः भगवान शिव और पार्वती स्वयं उनसे मिलने निकल पड़े।
जब कार्तिकेय को अपने माता-पिता की यात्रा का पता चला, तो वे उनसे मिलने के लिए स्वयं 36 किलोमीटर की दूरी तय करके आगे बढ़े। उसी स्थान पर भगवान शिव ने एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वहाँ वास करना आरंभ किया।
यह स्थान मल्लिकार्जुन (Mallikarjuna) कहलाया — ‘मल्लिका’ नाम देवी पार्वती का है, और ‘अर्जुन’ नाम भगवान शिव का। अतः यह स्थान माता-पिता और पुत्र के प्रेम की अमर गाथा को दर्शाता है। भगवान शिव का यह पवित्र ज्योतिर्लिंग जिस पर्वत पर स्थापित है उसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है।
मल्लिकार्जुन: शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग — एक साथ

मल्लिकार्जुन (Mallikarjuna) न केवल ज्योतिर्लिंग है, बल्कि यह उन अठारह शक्ति पीठों में भी शामिल है जहाँ सती माता के अंग गिरे थे। मान्यता है कि इस स्थान पर सती का कान गिरा था। इस कारण यह मंदिर शक्ति और शिव दोनों की संयुक्त उपस्थिति का प्रतीक है।
शिव और शक्ति का ऐसा दिव्य संगम भारतवर्ष में और कहीं नहीं मिलता। यहाँ माल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रामरांबा देवी की संयुक्त पूजा की जाती है।
मंदिर घूमने का सही समय
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) की यात्रा वर्ष भर की जा सकती है, परंतु अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना रहता है और पर्वतीय रास्ते सुगम होते हैं।
विशेष पर्व जैसे महाशिवरात्रि, नवरात्रि और कार्तिक मास में यहाँ विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। इन दिनों मंदिर में दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर खुलने का समय:
प्रातः 4:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक
विशेष आरती: प्रातः 5:00 बजे और सायं 6:30 बजे
यात्रा से पूर्व ऑनलाइन बुकिंग और स्थानिक होटल की व्यवस्था कर लेना श्रेयस्कर रहता है। श्रीशैलम मंदिर तक सड़क और हेलीकॉप्टर दोनों मार्गों से पहुँचा जा सकता है।