भारतवर्ष में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) की महिमा अत्यंत विशिष्ट है। आज हम भीमशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा का वर्णन करेंगे। विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि भारत में भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से दो प्रसिद्ध मंदिर हैं — एक महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है, और दूसरा स्थान कामरूप देश से संबंधित माना जाता है जिसे कि हम आज के समय में असम के नाम से जानते हैं।
यह विवाद हमेशा से ही उठता रहा है कि दोनों में से असली ज्योतिर्लिंग कोनसा है किन्तु वेदों पुराणों के ज्ञाताओं ने और स्वयं महाराष्ट्र राज्य की सरकार ने ये साफ़ कर दिया है कि पुणे जिल्हे में स्थित मंदिर ही असली ज्योतिर्लिंग है जिसका उल्लेख शिव पुराण के कोटि रुद्र संहिता में मिलता है।
आइये, शिव पुराण में वर्णित कथा के माध्यम से इस पवित्र ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) की उत्पत्ति का इतिहास जानते हैं।
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ज्योतिर्लिंग क्या होता है? (Jyotirlinga Kya Hota Hai)
‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है—ज्योति यानी प्रकाश और लिंग यानी भगवान शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप। यह एक ऐसा शिवलिंग होता है जिसमें शिव स्वयं अग्नि या प्रकाश के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने अग्नि के विशाल स्तंभ के रूप में प्रकट होकर उन्हें अपनी अनंतता का बोध कराया। उसी दिव्य स्तंभ के प्रतीक रूप में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई।
आइए अब जानते हैं भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga Katha) की कथा। यदि आप हमारी इस ज्योतिर्लिंग की सीरीज के इससे पहले के ज्योतिर्लिंगों की कथा जानना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें हमारे मुख्य पेज पर जाएं, जहाँ से आप सारी कथा पढ़ पाएंगे।

भीम राक्षस की उत्पत्ति और प्रतिशोध की भावना
प्राचीन काल में भीम नामक एक अत्यंत पराक्रमी राक्षस हुआ करता था। वह अपनी माता करकटी के साथ अकेले निवास करता था। जब भीम बड़ा हुआ तो एक दिन उसने अपनी माता से पूछा कि उसके पिता कौन थे और वे कहाँ हैं। माता करकटी ने उसे बताया कि उसके पिता महाबली कुंभकर्ण थे, जिनका वध भगवान श्रीराम ने किया था।
करकटी ने यह भी बताया कि उनके पहले पति विराट थे, जिनकी मृत्यु भी श्रीराम के ही हाथों हुई थी। पति के निधन के बाद करकटी अपने माता-पिता के साथ रहने लगी थी। एक दिन जब उसके माता-पिता ने अगस्त्य मुनि के शिष्य के भोजन के लिए बलि देने का प्रयास किया, तो मुनि ने उन्हें भस्म कर दिया। अपने पिता और परिवारजनों की इस दुर्गति का कारण जानने के बाद भीम के हृदय में विष्णु और देवताओं से प्रतिशोध लेने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हो गई।
भीम की तपस्या और अत्याचार
प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर भीम ने हजार वर्षों तक ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे अपार बल और शक्ति का वरदान प्रदान किया। वरदान प्राप्त करने के बाद भीम ने सबसे पहले देवताओं को परास्त किया और इंद्र को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
इसके पश्चात भीम ने पृथ्वी के राजाओं पर विजय प्राप्त करना प्रारंभ किया। सबसे पहले उसने कामरूप देश के राजा सुदक्षिण पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया और कारागार में बंद कर दिया।
राजा सुदक्षिण की भक्ति और भगवान शिव का प्राकट्य
राजा सुदक्षिण भगवान शिव के परम भक्त थे। कारागार में रहते हुए भी उन्होंने मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उसका अनवरत पूजन और भजन करना जारी रखा। जब भीम ने देखा कि कारागार में भी राजा भगवान शिव की पूजा कर रहे हैं, तो उसे अत्यंत क्रोध आया। उसने अपनी तलवार से राजा द्वारा स्थापित शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया।
जैसे ही भीम ने तलवार चलाई, उसी क्षण शिवलिंग से भगवान शिव स्वयं प्रकट हो गए। भगवान शिव ने अपने पिनाक धनुष से भीम की तलवार को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया। तत्पश्चात भगवान शिव ने केवल अपनी हुंकार से भीम को भस्म कर डाला।
Bhimashankar Jyotirlinga की स्थापना

भीम का वध करने के पश्चात, देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे सदा के लिए उस स्थान पर विराजमान रहें। देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए, भगवान शिव शिवलिंग रूप में उसी स्थान पर स्थापित हो गए। भीम राक्षस से युद्ध करने और उसका संहार करने के कारण, इस ज्योतिर्लिंग को भीमशंकर (Bhimashankar Jyotirlinga) नाम दिया गया।
प्रमुख मंदिर के पास ही यदि आप २-३ किलोमीटर पैदल का रास्ता तय करते हुए जंगलों के बीच से जाएंगे तो आप पहुंचेंगे गुप्त भीमाशंकर गुफा में। जितने भी श्रद्धालु मुख्य Bhimashankar Jyotirlinga के दर्शन करने के लिए आते हैं वो गुप्त भीमशंकर के दर्शन करने के लिए भी ज़रूर आते हैं। यहाँ पर भी गुफा में एक शिव लिंग छुपा हुआ। इसके अलावा यहाँ पास में ही श्री हनुमान जी की माता अंजना माता का अंजनेरी मंदिर भी है तो कई श्रद्धालु समय होने पर वहां के दर्शन भी ज़रूर करने आते हैं।
यात्रा का सर्वश्रेष्ठ समय (Bhimashankar Jyotirlinga Timings)

हालाँकि श्रद्धालु वर्ष भर किसी भी समय मंदिर के दर्शन के लिए आ सकते हैं, किंतु महाराष्ट्र में वर्षा ऋतु (मानसून) के दौरान यहां आना एक अद्भुत अनुभव बन जाता है। बारिश के मौसम में सह्याद्रि पर्वतमाला और मार्ग अत्यंत सुंदर और मनमोहक हो जाते हैं, जो यात्रा को अविस्मरणीय बना देते हैं।
विशेष रूप से शनिवार और रविवार को मंदिर में भारी भीड़ देखी जाती है। इन दिनों दर्शन के लिए 2 से 4 घंटे तक भी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। अतः यदि संभव हो, तो श्रद्धालुओं को सप्ताह के मध्य में यात्रा करने की योजना बनानी चाहिए।
यह लिंग सामान्यतः चांदी की परत से ढका रहता है। केवल प्रातः 4:30 बजे की आरती के समय इस मूल शिवलिंग के दर्शन कर पाना संभव होता है। आरती के बाद लिंग को पुनः चांदी के आवरण से ढक दिया जाता है।
इस Bhimashankar Jyotirlinga की मान्यता इतनी है कि इतहास में ऐसा वर्णन है कि युद्ध से पहले शिवाजी महाराज, शम्भा जी महाराज, यहाँ कि पेशवा भी इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेने के लिए आते थे।
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